झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

अपनी-अपनी होली

राजवंशी चुपचाप कुर्सी पर बैठा अतीत में खोया हुआ था। आज होली है और बाहर से युवाओं की हुडदंग सुनाई पड़ रही है। घर में भी टीवी पर रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे गीत सुनाई पड़ रही है। दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। बेटा विपुल ने दरवाजा खोला और पड़ोस के छोटे-छोटे बच्चों का एक झुंड अंदर घुसा। सभी के पास रंग बिरंगी गुलाल के पैकेट थे। बच्चों ने घर के सभी बड़ों के पैर पर अबीर देकर प्रणाम किया। सभी ने बच्चों को आशीर्वाद दिया। खाने के लिए मालपुआ अर्चना ने दी।

 उसने राजवंशी से कहा -अजी सुनते हो ,यूं ही चुपचाप बैठे रहोगे या कुछ बाजार से खरीद कर भी लाओगे। घर में हरी सब्जी आलू प्याज सब कुछ खत्म है। अभी घर पर कई लोग आएंगे, उन्हें क्या खाने के लिए देंगे? राजवंशी यह सुनकर झुंझला गया,- कहा मेरे पर्स में मात्र ₹10 हैं, इससे क्या होगा? कल चेक जमा करूंगा, तो 1 दिन बाद चेक क्लियर हो कर खाते में आएगा, उसके बाद ही मैं कुछ रूपए निकाल पाऊंगा। तब अर्चना ने प्यार से कहा सुनिए जी ,मेरे पास एक ₹100 का नोट है। उससे 2 किलो आलू 1 किलो प्याज और थोड़ी हरी सब्जी ले लीजिएगा। घर में तो बाकी राशन पानी है ही, चिंता छोड़िए, जल्दी से ले आइए। मुझे अभी बहुत कुछ करना बाकी है। तब तक मां ने आवाज दी,- बेटा राज बाजार जा रहे हो तो थोड़ी मिठाई ले लेना। कुलदेवी को आज भोग लगता है बेटा। राजवंशी झुंझला गया और कहा एक ₹100 में क्या सारा बाजार उठा  लाऊं? मां मुस्कुरा दी ,वह जानती है कि जब राज के जेब में पैसे नहीं रहता है तो वह ऐसे ही बिगड़ता है। मां ने कहा- राज बस 10 लड्डू ले आना, कितने रुपए लगेंगे? राज जरा नरम स्वर में कहा 25 से ₹30 तक लग सकते हैं। मां ने अपनी बटूवा से एक ₹50 का नोट निकाल कर देते हुए बोली, इसमें से ₹10 का रंग भी खरीद लेना, विपुल पिचकारी लिए बैठा है। उसका रंग खत्म हो गया है।
 इधर राज बाजार की ओर गया, उधर अर्चना भी रसोई में जुट गई। थोड़ी देर में ही ननंद नंदोई और उनके बच्चे सब आ जाएंगे, सभी कहेंगे मामी पुआ छोला दही वाड़ा पूरी कटहल की सब्जी खाते खाते मन भर गया है, मुझे यह सब नहीं खाना है ।अर्चना मन ही मन मुस्कुराई ।कल ही उसने उड़द दाल चावल फुलाकर पीस ली थी। नारियल भी विपुल ने घिसकर रख दिया था ।बच्चों को अप्पम और डोसा बनाकर खिलाएगी ।छोटी ननंद को चार्ट बहुत पसंद है। उसके लिए आलू की टिकिया भी तैयार हो गई है ।अब बस चाट के ऊपर पपड़ी दही और पपीता गाजर आदि को घिसकर तैयार करना है। छुटकी ननद जरूर कहेगी- भाभी आप बहुत चालाक है, होली के दिन भी आप जरा हटकर कोई ना कोई ऐसी चीज बना लेते हैं ,जो सभी खाना पसंद करते हैं ।मुझे तो अप्पम दोसा चाट सब कुछ पसंद है। अर्चना मन ही मन मुस्कुराई तभी उसे मझली ननद की याद आ गई। माथे पर थोड़ी शिकन उभर आई। वह जरूर कहेगी -भाभी अप्पम तो अच्छा बना है, जब अप्पम में नारियल दी है, तो फिर नारियल की चटनी बनाने की क्या जरूरत थी और डोसा तो बहुत अच्छा बना है, लेकिन पेट में जगह ही नहीं है कि कम से कम 2 डोसा खा सके। आप भी भाभी बहुत चालाक है ,होली के दिन में ही इस तरह के आइटम बनाइएगा ताकि ननंद सब खूब खा ना सके। चाट में थोड़ा नमक कम है, नींबू के रस की जगह थोड़ा इमली का पानी डालते ,तो चाट और अच्छा लगता ।
तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी। विपुल दौड़ कर दरवाजा खोल आया। पड़ोस में रहने वाले किसुन की मां थी ,चूँकि वह रामखेतारी गांव की रहने वाली थी, इसलिए सभी लोग रामखेतारी काकी उसे कहते हैं। अर्चना ने झट से सिर का पल्लू ठीक किया और अपनी सास को रामखेतारी काकी के आने की बात कही। राम खेतारी काकी आते ही शुरू हो गई। क्या करें ,बच्चा सब हमारी बात नहीं सुनता है। घर में बराबर कोई न कोई सामान चोरी हो जाती है। वह घर के सामने रहने वाली लल्लन की मां का काम है। वह ओझा गुनी भी मेरे घर में करवाती है। उनका, भी तबीयत खराब रहता है। उनको, ओझा से झाड़ फुकवा देना चाहते हैं, लेकिन वह तैयार ही नहीं होते हैं। गुसाई कुटीर गए थे। वहां बाबा घोंगामल ने कहा कि जब तक उनको, कुटी नहीं लाओगे, तब तक वह ठीक नहीं हो पाएगा। अपने पास से फूल भभूत बाबा ने दिया है, लेकिन वह तो लगाते ही नहीं है।
 तभी राज बाजार से सामान लेकर लौट आया। आते ही कहा गोर लगे छी रामखेतारी काकी। रामखेतारी ने कहा- खुश रहो बउआ क्या बात है काकी, बड़ा परेशान दिख रहे हैं? क्या फिर से कोई ओझा ने सौ का नोट ठग लिया? राम खेतारी काकी उछल पड़ी, बउआ तो हमारा हरदम टोन कसे छी। नहीं नहीं तुम्हारे काका का तबीयत ठीक नहीं है। यही कह रही थी। तब राज ने कहा कि -अगर काका की तबीयत ठीक नहीं रहती है, तो उसे डॉक्टर से दिखाइए, अगर आप एमजीएम अस्पताल में दिखाइएगा, तो अच्छे डॉक्टर देखेंगे भी और देखने की फीस भी नहीं लगेंगे। फीस के पैसे से दवा खरीद लीजिएगा। उतना पैसा तो आप ओझा गुनी को पैसे भी दे डालती हैं।
 तभी पिछवाड़े में जोर का हल्ला हुआ। शर्माइन की चीख सुनाई पड़ रही थी। हाय रे दद्दा, कहां से सिर, हाथ पैर तोड़ाकरआकर आए हो? तभी राज ने देखा, शर्मा जी शराब के नशे में है। उनके शरीर के कई हिस्से से खून बह रहा है। सभी लोग पूछने लगे, क्या हुआ शर्मा जी ?यह चोट आपको कहां से आई ?शर्मा जी ने बताया कि पड़ोस के राम ठाकुर के साथ थोड़ी पी लिए थे ,साइकिल से आ रहे थे। तभी सामने से एक तेज रफ्तार में और हॉर्न बजाते हुए मोटरसाइकिल गुजरी। मैं साइकिल को किनारे किया, तो साइकिल खंभे से टकराकर नाली में गिर पड़ी। इतना चोट लग गया कि साइकिल को वही नाली में छोड़कर किसी तरह घर आ गए। मारे देह -हाथ दर्द कर रहा है। तब तक राज अपना मोटरसाइकिल लेकर बाहर आ गया ।उसने कहा -चलिए शर्मा जी, आप को अस्पताल ले चलते हैं।
 सवेरे से अब शाम हो चला था। सड़क के किनारे ढोल झाल हारमोनियम लेकर कुछ लोग फ़गुवा गा रहे थे। गाने में साथ देने के लिए लोगों की भीड़ बढ़ती चली जा रही थी। पास के सिन्हा जी अपनी तरफ से भांग शरबत बटवा रहे थे। ढोलक और झाल की आवाजें तेज होती जा रही थी। सभी लोग झुम रहे थे। कुछ नाच भी रहे थे। आने जाने वालों के ऊपर अबीर गुलाल उड़ाया जा रहा था। तभी मोहल्ले का दादा छोटन ने लक्ष्मीया को सड़क से जाते देखा। छोटन इससे पहले भी कई बार लक्ष्मीया पर फिकरा कसा करता था, लेकिन लक्ष्मीया सिर झुकाए चुपचाप ट्यूशन पढ़ने चली जाती थी। आज छोटन को अपना रुतबा दिखाने का अवसर मिला। छोटन ने नाचते-नाचते कमर से रिवाल्वर निकालकर हवा में दो फायर कर दिया। गोली चलने से अफरा-तफरी मच गई। रंग में भंग पड़ गया। सिन्हा जी चकराए, आखिर ये हुआ क्या? तब तक किसी ने पुलिस को फोन कर दिया ।पुलिस मौके पर पहुंच गई और छोटन को गिरफ्तार कर उसका रिवाल्वर जप्त कर लिया। छोटन का पूरा नशा उतर गया। फगुवा का आनंद उठाने आए लोगों ने पुलिस की उपस्थिति में ही मौका देखकर छोटन पर अपना हाथ साफ करने लगे। पुलिस किसी तरह छोटन को लेकर वहां से निकली। थोड़ी देर में ही भीड़ वहां से छठ गई।
 पड़ोस में रहने वाले चक्रवर्ती दादा आज सवेरे से नहीं दिख रहे थे। सभी लोग उन्हें रंग डालने के लिए खोज रहे थे। तभी उनके घर पर मोटरसाइकिल से थाने के दरोगा और एक हवलदार पहुंचे ।चक्रवर्ती दादा घर पर ही थे। पुलिस को देख कर घबरा गए, लेकिन पुलिस वालों ने बताया कि आपका बेटा जिस कंपनी में काम करता है। वहीं से जांच करने का निर्देश आया है। तब तक आसपास के कई लोग जमा हो गए। पास खड़ा शरारती पप्पू ने पुलिस पर पिचकारी से रंग फेंका और मोहन ने अबीर डाला। सभी मोहल्ले के लोग घबरा गए, पता नहीं दरोगा साहब क्या बोले। तभी दोनों पुलिस वाले बच्चों की शरारत पर हंस पड़े और कहे कि- हमारी होली भी तो आप लोगों की ड्यूटी बजाते हुए होती है। तब तक किसी ने पुआ दही वाड़ा का थाल पुलिस की ओर बढ़ाया। सिन्हा जी ने भांग की ठंडाई बढ़ाई ,तभी किसी ने सभी के ऊपर अबीर उछाल कर कहा- होली है———