झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

ईंट ईंट को जोड़ना

ईंट ईंट को जोड़ना
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नर नारी का भेद क्यों, नहीं उमर की बात।
घर के मुखिया के हृदय, हो विवेक जज्बात।।

सबको घर इक चाहिए, घर अपनी पहचान।
हैं मकान लाखों मगर, घर कितने श्रीमान??

घर टूटे तो टूटता, सब आपस का प्यार।
बिना प्यार किसका बना, सुन्दर सा संसार??

सबमें गुण दुर्गुण मगर, विकसित अगर विवेक।
भले झोपड़ी ही सही, घर बन जाता नेक।।

ईंट ईंट को जोड़ना, इसमें कितना दर्द?
घर के मुखिया के लिए, अन्त कौन हमदर्द??

मुखिया मुख सों चाहिए, घर हो चाहे देश।
सहयोगी परिजन मिले, तब सुन्दर परिवेश।।

चाहत एक सलाह की, मिले सुमन भरमार।
घर के मतलब को समझ, तब समझोगे प्यार।।

श्यामल सुमन