झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

काश हमारे हाथ बंधे नहीं होते: डॉ सुचेता भुइया

वह करुण रुदन आज भी मेरी आत्मा को हिला देता है, जब मेरी माँ तुल्य सासु माँ ने अपने बगल वाले मरीज के फोन से हमें रोते हुए बताया कि मैं पेशाब में दो दिनों से पड़ी हूँ कोई नहीं सुन रहा. यह सुनकर कलेजा फट गया कि एक सेवानिवृत शिक्षिका जिसने समाज में कितने को शिक्षित किया आज उनकी यह दुर्दशा क्योंकि उन्हें कोरोना हो गया है और शहर के प्रतिष्ठित अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में है मैं आज भी उस मनहूस घड़ी को कोसती हूँ जब रात को अचानक मेरी माँ को पसीना आने लगा और उन्हें सांस लेने मे तकलीफ होने लगी… हम आधी रात के समय शहर के एकमात्र प्रतिष्ठत अस्पताल ले गये. एक 82वर्षीय बुजुर्ग महिला जो अर्थरायटिश की मरीज थी उन्हें हमसे अलग कर आइसोलेशन वार्ड में भेज दिया गया मैंने हाथ पैर जोड़ा कि बिना अटेंडर के वह अपना काम कैसे करेंगी? कृपया मुझे भी उनके साथ रहने दीजिये ,पर अस्पताल के प्रोटोकॉल का नाम लेकर मेरी माँ को मरणास्न्न में भेज दिया ।शरीर इतना कमजोर हो गया था कि बिस्तर से उठकर लैट्रिन बाथरूम बिना किसी सहारे के नहीं जा पाती थी खुद को घसीट घसीट कर टॉयलेट तक किसी तरह पहुँचती थी.एक दिन उन्होंने फोन कर बताया कि वह दो दिनों से भूखी हैं खाना पहुँचाया जाता है पर इतनी दूर कि वहां से अपनी थाली उठा कर नहीं ला सकती. शरीर बेजान हो गया. कोई नहीं है जो खाना मेरी बेड तक पहुंचा दे । मुझे यहाँ से ले जाओ माँ कि दुर्दशा सुनकर जब अस्पताल फोन किया कि आपलोग अपने प्रोटोकॉल का पालन कर रहे है घर का अटेंडअर रहने नहीं देते और अस्पताल में मरीज की देखभाल की कोई व्यवस्था भी नहीं है । मुझे कोई जवाब नहीं मिला
ये कैसा प्रोटोकॉल जहाँ बुजुर्गो को तड़पा कर मरने के लिए छोड़ दिया गया फिर एकदिन बगल वाले बेड के मरीज ने ख़बर किया कि आपकी माँ खाना पीना छोड़ दी है । ताकि उनको लैट्रिन और बाथरूम नहीं जाना पड़े । लैट्रिन तक घसीटते हुए जाना उनके लिए मौत के समान था । एक दिन अस्पताल से फोन आया कि आपका मरीज रिस्पांस नहीं कर रहा है ।अगले दिन ख़बर आया कि उन्हें आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया है और नहीं जाने कितनी डराने वाली खबरें मैं अपने परिवार के साथ घर मैं कैद सामर्थ होते हुए भी माँ की कोई मदद नहीं कर पाने की तड़प मुझे रोज मार रही थी ।
और वहां माँ रोज मौत के करीब जा रही थी , देखभाल के अभाव में अपनों से दूर वह जब तक रिस्पांस दे रही थी घर आना चाहती थीं । बाईस दिनों का संघर्ष अंत में समाप्त हुआ और मेरी माँ को प्लास्टिक में पैक कर शमशान पहुंचा दिया गया ।उनको घर नसीब नहीं हुआ और हमें उनका अंतिम दर्शन.
मेरे मानस पटल पर कई सवाल आज भी घूमते रहते हैं ।अगर मुझे भी मेरी माँ के साथ अस्पताल में आईसोलेट कर रखा जाता तो मैं उन्हें भूखा नहीं रहने देती उन्हें अपना सहारा देकर लैट्रिन बाथरूम करवाती लैट्रिन नहीं जाना पड़े इस कारण उन्होंने खाना छोड़ दिया था मेरी उपस्थित ऐसा नहीं होने देती, मैं जब घर में उनके साथ कांटेक्ट में थी तो मुझे माँ के साथ अस्पताल में क्यों नहीं रखा गया । अस्पताल में 82 बर्ष के बुजुर्गो की देखभाल के लिए आखिर अस्पताल प्रबंधन ने क्या इंतजाम रखा है।
कोरोना को लेकर समाज में इतनी भ्रांतियां क्यों है इतना डर क्यों है.. क्या ये जरूरी है..
शहर के प्रतिष्ठित अस्पताल में बुजुर्ग कोविड मरीज नहीं मर रहे बल्कि वहां मानवता को मारा जा रहा है
आखिर कब तक? मैंने अपनी माँ को खो दिया फिर क्यों मैं ये आर्टिकल लिख रही हूँ हां लिखने की वजह है अब और चुप्पी नहीं अब और ख़ामोशी नहीं प्रशासन तक अपनी गुहार को पहुँचाना कि बहुत हुआ अब तो कुछ कीजिए एमजीएम में जब घर के अटेंडर अपने मरीज की देखभाल कर सकते हैं तो इस निजी अस्पताल में क्यों नहीं ,इनकी मनमानी पर अब तो विराम लगे। अब तो उस परम पिता परमेश्वर से ही प्रार्थना है कि अस्पताल प्रबंधन को सद्बुद्धि दे कि बुजुर्ग कोरोना मरीज की देखभाल के लिए घर का अटेंडर रहने की अनुमति दे , और दिखा दे कि वह मानवता की हत्या नहीं अपितु मानवता की सेवा के लिए है।
यदि ऐसा हुआ तो ये मेरी माँ को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।