झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

परबतिया: लड़का लड़की

गोपालगंज के चीनी मिल का सायरन बज रहा था। शिवा ने अपनी घड़ी देखी, शाम के 4:00 बज रहे थे। छुट्टी का समय हो चला था। शिवा ने अपनी गमछी संभाली और साइकिल लेकर चल पड़ा घर की ओर ।घर से मील की दूरी कोई 8 कोस है। उबड़ खाबड़ रास्ते में पैडल मारते मारते दम निकल जाता है। पूरे 1 घंटे लगते हैं जाने में। सवेरे 7:00 बजे से काम शुरू हो जाता है, तो घर से 6:00 बजे से थोड़ा पहले ही निकलना पड़ता है। उम्र के साथ तो शरीर भी धीरे-धीरे जवाब देने लगा है। लक्ष्मी बेटियां ने जाते समय कहा था कि लौटते समय पढ़ने के लिए कोई किताब लेते  आइएगा। अब किताब के पैसे तो लगेंगे ही, पुरानी किताबें खरीद लूंगा तभी भी ₹10 से कम में नहीं आएगी। मैट्रिक के बाद उसकी पढ़ाई छुड़ा दी है, तो अब कहती है खाली समय में मन नहीं लगता। शुक्रवारी भी आगे पढ़ने की जिद ठाने हुई है। मैट्रिक का रिजल्ट निकल गया है। अब वह कॉलेज में पढ़ना चाहती है। अर्थाभाव के कारण पेट भरना मुश्किल है तो आगे बढ़ाने की बात कौन सोचे। मैट्रिक तक तो पढ़ा दिए हैं। सोमवारी को तो बी ए भी करा दिए हैं, लेकिन शादी के लिए लड़का मिले तभी ना। बेटी तो किसी राजकुमारी से कम नहीं है, पर दहेज के लिए लड़का वाले इतना बड़ा मुंह फाड़ देते हैं कि बात बनते बनते अंत में बिगड़ जाती है। यही सब सोचते सोचते शिवा घर पहुंच जाता है। प्यास से गला सुखा हुआ है। मन करता है कि जल्दी से चापाकल का एक लोटा पानी पीकर प्यास बुझा लें। परंतु यह क्या मेरे घर के सामने भीड़ क्यों लगी है? घर से परबतिया के रोने की आवाज आ रही है। बच्चे सभी रो रहे हैं ,दरोगा बाबू भी दिखाई पड़ रहे हैं। शिवा का कलेजा जोर-जोर से धड़कने लगा। सिर तो ऐसा घूमने लगा मानो वही मूर्छित होकर गिर पड़ेंगे। घर के अंदर पहुंचे तो देखें कि शुक्रवारी की लाश जमीन पर पड़ी है। दरोगा बाबू पंचनामा बना रहे हैं। शुक्रवारी ने जिंदगी से हताश और निराश होकर फांसी लगा ली थी ।वह आगे पढ़ना चाहती थी। वह भरपेट अच्छा खाना चाहती थी। मकई ज्वार बाजरा की रोटी खाते खाते मन उब गया था। फटे फ्राक को सी सीकर पहनते पहनते मन में वितृष्णा हो गई थी ।वह नया सूट पहनना चाहती थी ।वह अपने हम उम्र सहेलियों के साथ हंसी ठिठोली करना चाहती थी, लेकिन जिंदगी में अंधेरे के सिवा और कुछ नहीं था। एक भाई के लिए 6 बहनें। यानी कुल 7 भाई बहन। नाम तो माता-पिता ने काफी सुंदर सुंदर रखे थे, लेकिन लोगों ने इसे सप्ताहिक बना दिया था। पहले छह बहनों के नाम क्रमश सोमवारी मंगली बुधिया लक्ष्मी शुक्रवारी और शनिचरी रखा ।जब भाई हुआ तो उसका नाम रवि रखा । घर पर नाम मात्र की जमीन, वह भी बंजर। पिता को चीनी मिल से कितना तनख्वाह मिलता, मात्र ₹800। भाई-बहन माता-पिता और दादी को मिलाकर कुल 10 लोगों का परिवार। इतने रुपयों में घर चले तो कैसे चले।

 शुक्रवारी ने मरने से पहले एक पत्र पिता के नाम लिखी थी। पत्र में उसने लिखा था बाबूजी, हम दोबारा आपके घर तभी जन्मऊंगी,जब मैं आपकी अकेली लाडली बेटी रहूंगी। मैं जानती हूं पिताजी कि आप अपनी जिंदगी से कितने लाचार हो गए हैं। जवान होते बेटियों की चिंता, घर का खाना खर्चा टूटी झोपड़ी से चमकते चांद सितारे और आप की बढ़ती उम्र। आपको तो कोई हाथपेच भी नहीं देता क्योंकि आप उधार चुकता नहीं कर सकेंगे। फिर हम बेटियों की शादी आप कैसे कर पाएंगे? मैं तो आपकी कुछ मदद भी नहीं कर सकती। उल्टे आप पर बोझ बन कर बैठी हुई हूं। मुझे मेरे नासमझी के लिए माफ कर देना बाबू जी ,क्योंकि जब जीवन में कोई उमंग ना हो, चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा लगता हो ,दाने-दाने के लिए तरसना पड़ता हो, वैसी जिंदगी से बेहतर हसीन और रंगीन, मुझे मरना ही अच्छा रास्ता लगा ।आपका थोड़ा बहुत वह जरूर हल्का होगा, बस पिताजी मुझे यहां से दूर बहुत दूर ,चांद सितारों से भी आगे जाने की अनुमति दें ।
पत्र का एक-एक शब्द शिवा के कलेजे पर हथौड़े के समान पड़ा। उसके आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया ।गांव के मुखिया जी ने शिवा को संभाला ।चेहरे पर पानी का छींटा दिया। हाथ पंखा डोलाया और आंख खुलने पर पानी पिलाया ।
शिवा अपने परिवार का अकेला बेटा था। उसकी एक बहन थी, जो शादी के बाद बच्चे को जन्म देने के क्रम में काल के गाल समा गई ।जच्चा बच्चा दोनों की मौत हो गई थी। उसके बाद से ही माता-पिता का दबाव बढ़ता गया। घर सूना सूना है ,हमें बच्चे चाहिए। ज्यादा से ज्यादा बच्चे। एक-एक कर तीन बेटियां हुई। शिवा इसी से ही काफी खुश था, लेकिन माता-पिता घर का चिराग चाहते थे ।जिससे वंश आगे बढ़े। मरने पर बेटा मुखाग्नि दे। शिवा के पिता कहते थे कि बेटा मैं जब मरूंगा, तब तुम मुझे मुखाग्नि दोगे, लेकिन तुम्हें कौन देगा? इसलिए घर में कम से कम एक बेटा होना बहुत जरूरी है। पिताजी तो चले गए ,लेकिन अपने पोते का मुख नहीं देख सके ।मां की भी वही रट रहती ।तब तक 4 बेटियां हो चुकी थी। पांचवा पेट में था। इस बार बहुत उम्मीद थी कि लड़का होगा। परबतिया तो कहती थी कि इस बार सभी लक्षण अलग-अलग लग रहे हैं। पहले 4 बच्चे कोख में रहे ,तो पता नहीं चला। इस बार काफी दर्द रहता है। बच्चा तो पेट के अंदर खूब तेजी से हाथ पांव चलाता है। हे छठ मैया, हे काली मैया, इस बार लड़का का मुख दिखला दे, बैंड बाजा के साथ तेरी पूजा करूंगी ।चारों बहनों को भी इस बार भाई आने की उम्मीद हो गई थी ।सभी बहने भाई के लिए सभी तरह के त्याग करने के लिए तैयार थी। कोई अपने हिस्से का भोजन देने की बात करता था, तो कोई अपने पुराने फ्रॉक से भाई के लिए कमीज बनाने की बात करता था । इस बीच शहर से शिवा का चेहरा छोटा भाई राज आया। उसने परबतिया से कहा- यह क्या भाभी, चार चार बच्चों के बाद भी आप पेट से हैं? कैसे पालिएगा इतने बच्चों को? परबतिया ने कहा -इस बार जरूर हमको बेटा होगा और भगवान ने मुंह चीर के जब बच्चों को भेजा है, तो दाना पानी का भी इंतजाम वही करेगा ।राज थोड़ा नाराज हो गया। उसने कहा- भाभी, मान लो यह पांचवा बच्चा भी बेटी हो गई तो, आप क्या करेंगे? लड़के के लिए छठा सातवां आठवां दर्जन भर बच्चे पैदा करेंगे? भगवान के नाम पर बच्चे पैदा करते जाइए और फिर इन बच्चों को भरपेट भोजन नहीं मिलेगा? इसकी पढ़ाई लिखाई नहीं होगी? तन ढकने के लिए ये कपड़ों के लिए तरसेगी, तब आप क्या करेंगे? परबतिया का चेहरा यह सब सुनकर मुरझा गया और बाद में इसी शुक्रवारी का जन्म हुआ था। शिवा को पुलिस थाना दाह संस्कार करने में ₹1000 से ज्यादा का खर्चा हो गया। परबतिया का पायल और हाथ में पहनी चांदी का कड़ा उतारकर बेचना पड़ा। गांव भर के लोग अफसोस कम और उपहास ज्यादा कर रहे थे। बच्चों को पालने की ताकत ना थी ,तो इतने बच्चे पैदा क्यों किए। शहर में तो बहुत अनाथ आश्रम है ,वही अपने बच्चों को डाल आते। शिवा खामोश खून का घूंट पीकर रह गया। वह लाचार था। उसे अब अपनी बेवकूफी पर पछतावा हो रहा था। उसे राज के कहे हुए शब्द याद आ रहे थे। भैया, आप भी कैसे अपने माता-पिता के बातों में आकर इस अंधविश्वास में फंस गए। शहर की बात छोड़िए, अब गांव के लोग भी काफी जागरूक हो गए हैं। वह भी दो बच्चों से ज्यादा पैदा नहीं करते। चाहे वह लड़की हो या लड़का। अब लड़का और लड़की को समान दर्जा दिया जाने लगा है, फिर आप किस चक्कर में पड़ गए। वैसे भी देखने में यही आता है कि माता-पिता का ध्यान लड़का से ज्यादा लड़की रखती है। यहां तक कि शादी के बाद भी लड़की अपने माता-पिता की हर तरह से मदद और सेवा के लिए तैयार रहती है। शिवा के आंखों से पश्चाताप के आंसू बह रहे थे। राज ने कहा था- भैया, अपनी छह बेटियों के बाद बुढ़ापा अवस्था में एक बेटा पा ही लिए, अब आपको अपने मुखाग्नि की चिंता नहीं होगी। आपका वंश  बढ़ेगा, लेकिन कभी आपने सोचा है कि अपने बेटे रवि के साथ आपने कितना बड़ा अत्याचार किया है ।आप मर जाएंगे तो आपका यह बेटा क्या कर पायेगा? अपनी बड़ी बहनों को देखेगा या घर में कमा कर लाएगा? जबकि अभी उसकी उम्र मात्र 5 वर्ष है। शिवा ने इस बात पर कभी सोचा नहीं था। वह तो अपने इस बेटे का सही ढंग से पालन पोषण भी नहीं कर पा रहा था। एक दिन डायरिया की चपेट में रवि आ गया और दूसरे ही दिन इस संसार से विदा हो गया।
 कितने दिनों बाद आज राज गांव आया है। शिवा भैया और भाभी को प्रणाम कर टूटी खाट में बैठ गया ।रवि की मौत का समाचार सुनकर राज की आंखों में आंसू आ गए। जिस लड़के के लिए इतनी मेहनत और इतने बच्चे पैदा हुए, वहीं ना रहा। घर में दरिद्रता की स्थिति है। राज ने सोमवारी को बुलाकर पूछा- तुम लोग दिनभर क्या करती हो? जवाब मिला- कुछ नहीं। कुछ सिलाई का काम जानती हो? सोमवारी ने चहक कर कहा -हां जानती हूँ, लेकिन पास में सिलाई मशीन नहीं है। राज उसी शाम को एक सिलाई मशीन लाकर सोमवारी को देते हुए कहा- सभी बहनें मिलकर सिलाई का काम करो और भी मैं कुछ रास्ता निकालता हूं ।अपने को कमजोर और असहाय मत समझो। तुम लोग बेटे से किसी भी मायने में कम नहीं हो। भगवान ने बुद्धि ,स्वस्थ शरीर और काम करने के लिए दो हाथ दिए हैं। इसका उपयोग करो। मैं कल शहर जा रहा हूं ।वहां से लौटने के बाद आगे की योजना पर विचार करूंगा। शिवा का अचानक चेहरा खिल उठा ।परबतिया को भी समझ में आ गया कि लड़का लड़की में भेद करना ठीक नहीं है।