झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

बेमिसाल बिहार की धरती को नमन

*तेजस्वी* – तुम्हें जीत की अग्रिम बधाई और अशेष शुभकामनाएं। लेकिन महागठबंधन के *संकल्प पत्र* की बातों को कभी दरकिनार मत करना प्यारे, वरना तुम भी अगले चुनाव तक कर दिए जाओगे किनारे। क्योंकि यह बिहार है जिसने हमेशा देश को नयी दिशा दी है।

मत भूलना कि हम साहित्य / संस्कृति कर्मी हमेशा *समाज सापेक्ष* होते हैं और बिना भय के शासक को आईना दिखाते ही रहते हैं और दिखाते ही रहेंगे। हम तुमसे भी बेख़ौफ़ सवाल करेंगे और कोशिश करेंगे कि तुम भी अन्य शासको की तरह अहंकारी मत बनो।

*नीतिश भैया* – सचमुच आपने अपने शासन के पूर्वार्द्ध में जो उल्लेखनीय कार्य किया है उसे बिहार की जनता कभी भूल नहीं सकती। उन दिनों आपने सही अर्थों में अपने लिए *सुशासन बाबू* का प्रतिमान गढ़ा, प्रतिष्ठित भी हुए और बिहार की जनता ने आपको माथे पर बिठाया भी। सिर्फ इतना ही नहीं आपने अपनी *सैद्धांतिक प्रतिबद्धता* का बहुत वर्षों तक पालन भी किया क्योंकि आप एक महान आन्दोलन से निकले एक महान कार्यकर्ता के रूप में बिहारियों के सामने आए।

लेकिन 2015 में महागठबंधन के साथ चुनाव लड़कर कुछ महीने बाद ही आपने जो *आत्मघाती पलटी* मारी थी वो आपके पूरे *धवल राजनैतिक जीवन* का सबसे *कलंकित* पहलू रहा और बिहार की जनता की नजरों में आप ऐसे गिरे कि आप शायद ही कभी उठ पाएं! बस एक मात्र आशा की किरण मुझे दिखाई देती है कि आप पुनः अपनी पुरानी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता का सम्मान फिर से करें।

*मोदी सर* – आप भलीभांति जानते हैं कि पूरी दुनिया को पहला लोकतंत्र बिहार ने ही दिया। बुद्ध, महावीर, बाबा विद्यापति, राजेंद्र बाबू आदि अनेकानेक विभूतियों की यह धरती देश को हमेशा नया रास्ता दिखाने का काम किया है। आदि शंकराचार्य को भी यहीं के धरती-पुत्र *मंडन मिश्र* ने घुटने टेकने को विवश किया और गांधी बाबा ने भी आजादी के आन्दोलन की शुरुआत इसी पवित्र धरती से किया था। याद कीजिए *सर जी* इसी बिहार ने *जेपी* आन्दोलन के माध्यम से तत्कालीन *निरंकुश व्यवस्था* से देश को मुक्ति दिलायी थी। यह भी याद कीजिए आदरणीय *मोदी जी* कि 2015 के विधान सभा के चुनाव में इसी बिहार की जनता ने आपके *विजय रथ* को भी रोका था और इस बार भी बिहार आते आते आपका वो *विजय रथ* रुक ही गया समझें।

सच कहता हूं *मोदी सर* देश की जनता ने आपको अकूत प्यार दिया लेकिन आप और आपके समर्थक उस प्यार को *पचा* नहीं पाए और उसका घनघोर अपमान करते हुए इस स्तर के *अहंकारी* बन गये कि *आमलोगों* को निरन्तर *तिरस्कृत* करने से भी बाज नहीं आए। मुमकिन है इस आलेख के लिए आपके कुछ अज्ञानी समर्थक आज भी टिप्पणी के माध्यम से अपनी *चोंचलेबाजी* शुरू कर दें। लेकिन कलम को आजीवन *हथियार* बनाकर चलनेवाले मुझ जैसे लोगों को इसकी परवाह नहीं रहती। लोक-पक्षीय कार्यों के लिए आपको भारत की जनता ने इतना प्यार दिया लेकिन आपने *साम्राज्य विस्तार* की दिशा में अपनी सहमति दी।

बिहार ने फिर एक बार क्रांति की मशाल को जला दिया है आपकी नीतियों के खिलाफ। अगर वक्त रहते नहीं संभले तो इसका भी *परिणाम* आप 1924 आते आते स्वतः देख ही लेंगे। मैं न तो किसी राजनैतिक दल का सदस्य हूं *मोदी जी* और न कोई ज्योतिषी पर इस नाचीज़ कलमकार की *भविष्यवाणी* को याद रखियेगा और इसे तरजीह देते हुए *समाज हित* के लिए अभी से काम करना शुरू कीजिए, जन-भावनाओं का सम्मान कीजिए वरना इतिहास आपको कभी माफ नहीं करेगा।
रपट: श्यामल सुमन