झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

logo

लकड़ी के सौदागर

जमशेदपुर से मात्र आठ 10 किलोमीटर दूर लोकाडीह बस्ती घुप अंधेरा में डूबा हुआ था ।चारों ओर शांति का साम्राज्य छाया था। झींगुर की तीव्र आवाज कानों में गूंज रही थी ।कहीं कोई हलचल नहीं ।यहां आकर लोगों को विश्वास नहीं होगा कि दिन में यही बस्ती कैसा जीवंत बना रहता है। वाद -विवाद लड़ाई -झगड़ा या फिर खड़कपुर माइक सेट पर बस्ती वासियों का नाचना -गाना,  हड़िया और कच्ची -पक्की शराब पीकर नाचना, झूमना एवं एक दूसरे को गाली देना धक्का-मुक्की करना। अभी सुबह होने में थोड़ी देर है ।रात के लगभग 3:30 बजे हैं ।लकड़ी ठेकेदार भरत साहू का छोटा बेटा गणेश साहू अपने मित्र हीरा के साथ मोटरसाइकिल से लोकाडीह बस्ती पहुंचा। मोटरसाइकिल की आवाज से नि:शब्द बस्ती पूरी तरह गुंजायमान हो गया। जिस तरह घड़ी के अलार्म से लोग सवेरे उठते हैं, उसी प्रकार लोकाडीह बस्ती के लोग फटाफट उठ गए ।थोड़ी देर में कई घरों में ढिबरी और लालटेन जल गए ।मोटरसाइकिल मनी होरो के झोपड़ी के पास रुका। गणेश साहू आवाज देता, उससे पहले ही दरवाजा खुल गया। मणि होरो ने जोहार कर दोनों लोगों का अभिवादन किया। हीरा ने कहा जरा जल्दी करो मनिया, दुर्गा, शंभू, करिया, मंगिया ,भोलू और लखन से जल्दी तैयार होकर चलने कहो। तुम सबको लेकर अड्डा पर पहुंचो, वही बता देंगे आज किस तरफ चलना है। जल्दी करो ,सवेरा होने में मात्र 2 घंटा बाकी है। मनी होरो ने गर्दन हिलाकर कहा- हां मालिक, सब को लेकर तुरंत पहुंच रहे हैं ,आप चिंता ना करें, आप आगे  बढ़े ।

ठंड से कांपते लगभग एक दर्जन लोग बस्ती के कोने में जमा हो चुके थे। किसी के बदन पर साबुत कपड़े भी तो नहीं थे। लखनुआ ने बीड़ी सुलगाई तो माचिस तीली के रोशनी में एकबारगी उसका चेहरा दमक उठा ।काली  दाढ़ी, खिचड़ी बाल और उम्र 35 के आसपास ,लेकिन देखने में 45 का लगता है। गाल पिचका, नाक जरा मोटा और फैला हुआ, रंग काला, आंखें थोड़ी छोटी और धसी हुई। लोकाडीह बस्ती में अभी तक बिजली पहुंची नहीं है। आसपास के 5 बस्तियों में कलुआ के पास एक जनरेटर और खड़कपुर सेट है ,यानी 4 बड़े बड़े साउंड बॉक्स और जो बड़ा चोंगा। खुशी का माहौल हो या गम का, सभी अवसर पर कलुआ का जनरेटर और माइक सेट भाड़ा पर उपलब्ध है ।लाल कार्ड भी अभी तक नहीं बना है और ना ही किसी को इंदिरा आवास मिला है ।यह बात नहीं है कि यहां के लोग इस बात को जानते नहीं, बल्कि ना किसी के पास सरकारी दफ्तरों में चक्कर काटने की फुर्सत है और ना ही बड़ा साहेब को क्या बोलना होगा ?कैसे बोलेंगे और कौन बोलेगा? यही बात अटक जाती। 5 बस्तियों में पीने का एकमात्र साधन पश्चिमी छोर पर बना एक कुआं है। वैसे ज्यादातर लोग बस्ती के किनारे से बहने वाले नाला से अपना काम चलाते हैं। कपड़ा धोने, बर्तन मांजने, नहाने पीने का काम ,इसी नाला के पानी से चलता है ।
मनिया ने कहा कि जरा जल्दी करो, अपना -अपना साइकिल लो और कुल्हाड़ी लेकर जल्दी से अड्डा चलो ।महेश ,लखनुआ की बीड़ी पर टकटकी लगाए हुए था। कब लखनवा बीड़ी का एक सूटा मारने दे ,जो थोड़ी ठंड से मुक्ति मिले। मनिया की बात सुनकर, बीड़ी का लालच छोड़कर महेश भी अपनी साइकिल निकालने चल पड़ा। ज्यादातर साइकिल चढ़कर पेडल मारने लायक नहीं थी, इसलिए सभी लोग पैदल ही साइकिल ठेलते हुए चले जा रहे थे ।शंभू ने कहा -करिया दादा ,जब पार्लियामेंट से हम लोगों का लकड़ी काटने का कानून बन गया है ,तो काहे को ठंडा में इतना सुबेरे सुबेरे हम लोग लकड़ी काटने के लिए जाते हैं? करिया मुर्मू जब तक कुछ जवाब देता, तब तक दुर्गा सोरेन डपट कर कहता है, चुप कर ?ज्यादा चबर -चबर मत बोल, हम लोग अभी भी अपने से लकड़ी काटेगा ,तो जंगल का पुलिस पकड़ कर फिर जेल में डाल देगा। साइकिल कुल्हाड़ी सब छीन लेगा ,वह तो गणेश बाबू पहले से सेट किया रहता है, इसलिए वहां से वह लोग हट जाता है। तुमको मालूम है कि नहीं भोलवा अपने अकेले लकड़ी काट रहा था, कैसा बेदर्दी से मारा था, वह लोग सरकारी अस्पताल में महीने भर से ज्यादा  पड़ा रहा। वह तो धन बोलो डॉक्टर साहेब का ,उसका जान बचा दिया। बेचारा ₹10 का लकड़ी नहीं काटा और दवाई मरहम पट्टी में हजार से ऊपर का खर्चा हो गया। घर का बर्तन, घरवाली का पायल, बिछिया सब कुछ बिक गया। तब करिया ने कहा- दुर्गा ठीक कहता है, अपना लोगों को यह समझाने का नहीं कि कहीं भी अकेले काम नहीं करना है, नहीं तो पैसा भी नहीं मिलेगा, धमकी और मार भी ऊपर से पड़ेगा।
 शंभू को करिया दादा और दुर्गा की बात कुछ जमी नहीं। उसने कहा कि करिया दादा ,जो नया कानून बना ,उससे हम गरीब आदिवासी का क्या फायदा हुआ? हां पहले वनरक्षक को दुगो रुपया नहीं देने पर वह पकड़ कर जेल में डाल देता था’ जमानतदार नहीं रहने और पैसा नहीं होने के कारण बोका बेसरा 7 साल से अधिक जेल में रहा। बोका की औरत खाना-पीना के अभाव में बच्चा सहित दूसरा घर बैठ गया, लेकिन अब नया कानून में हम लोगों को अपनी जरूरत के मुताबिक लकड़ी काटने की छूट है, फिर हमें क्यों जंगल वाला पकड़ेगा? हम लोग अपने लिए लकड़ी काटेंगे तो ऐसे जंगल का जंगल साफ तो नहीं करेंगे? छोटा बड़ा सभी पेड़ जड़ से तो नहीं काटेंगे? जो सूखी डाली और पेड़ होंगे, केवल उसी से काम चलाएंगे और अगर इसी रफ्तार से ठेकेदार के लिए लकड़ी काटेंगे तो कुछ दिनों बाद अपने घर में भी चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी नहीं मिलेगा ?वैसे भी  डेढ़ 2 क्विंटल प्रति दिन लकड़ी हम अपने- अपने साइकिल में चढ़ाकर ठेकेदार की टाल तक पहुंचाते हैं। 8 से 10 किलोमीटर दूर इतने चढ़ाव और ढलान पर, इतनी भारी बोझा को साइकिल पर रखकर ठेलते -ठेलते ऐसा कभी-कभी लगता है कि मेरे प्राण अब -तब में निकल जाएंगे। लकड़ी टाल तक पहुंचते-पहुंचते शरीर का पूरा खून निकल जाता है और मजदूरी में हमें मिलता क्या है ?हमारी लकड़ी को तो टाल मालिक मनमानी कीमत पर बेचता है, हम लोगों में कोई बीमार पड़ता है या किसी को चोट लगती है, तो टाल मलिक दवा -दारू तक का खर्चा नहीं देता। बोलो दादा, ऐसा कब तक चलेगा ?जो हम लोगों के फायदा के लिए सरकार ने जंगल कानून बनाया ,उसका फायदा यह लकड़ी के सौदागर उठाते हैं, हम लोगों की स्थिति में सुधार होने की जगह और बुरी हो गई है ।लखनवा और मनिया ने भी शंभू की बात में हां में हां मिलाई ।भोलू ने कहा कि मेरी पत्नी को बुखार हुआ था तो दवा के लिए टाल मालिक से एक सौ रुपए उधार मांगा, तो नहीं दिया। 17 दिनों तक बिस्तर पर पड़ी रही ।अब जाकर किसी तरह से सम्भली है। कमजोरी के मारे उसे चक्कर आता है। ठेकेदार कहता था की मजदूरी टाइम से दे देता हूं, वही बहुत है। यहां तो बड़ा-बड़ा ऑफिस में भी टाइम से पेमेंट नहीं मिलता ।
सभी लोग अड्डा तक पहुंच चुके थे। ठेकेदार मालिक भरत साहू आज खुद अड्डे पर पहले से मौजूद था ।वह बहुत कम ही अड्डे पर आते हैं। पूरा काम अड्डे का उनका बेटा गणेश साहू देखता है। मालिक भरत साहू टाल पर ज्यादा बैठते हैं। अड्डे पर सभी मजदूरों की हाजिरी बनाई गई। जोगन ,कृष्णा, जितेंद्र ,विनय और भगत के गैरहाजिर रहने पर भरत साहू थोड़े गुस्साए हुए थे ।सभी लोगों को भरत साहू ने बताया कि रेलवे लाइन से पूरब की ओर वाले जंगल पर आज से काम करना है। ऊपर के लोगों को ₹60हज़ार इस काम के लिए दिया गया है और ₹60हज़ार 10 दिनों बाद देना है ,10 दिन के अंदर वहां का पूरा पेड़- पौधा काटना है। ऐसे नागा करने से काम नहीं चलेगा और मजदूरों को लाना पड़ेगा। कुछ समझे तुम लोग? भरत साहू ने मजदूरों को घुड़का।  करिया दादा ने जरा हिम्मत कर कहा -माई बाप, रेलवे लाइन से पूरब वाला जंगल तो यहां से काफी दूर है और फिर उसे टाल तक पहुंचाना और ज्यादा मुश्किल है? फिर जितना मजुरी अभी मिलता है, उससे तो पूरा नहीं पड़ता है। साइकिल का भी रिंग टायर ट्यूब बराबर बदलना पड़ता है ।इस पर भी थोड़ा ध्यान दो मालिक। यह सब सुनकर गणेश साहू हत्ते से उखड़ गया और गुस्सा से कहा- जितना पैसा देता है ,उतना ज्यादा चर्बी चढ़ जाता है? फिर अपने पिताजी की ओर मुड़ कर उसने कहा -पिताजी हम पहले से ही कह रहे थे कि इन लोगों को छोड़िए, अपना किशुनवा के पास ट्रेक्टर है और कुछ ऐसे लोगों को भी जानता हूं ,जिसके पास इलेक्ट्रिक आरा मशीन है। जो बैटरी से चलती है। ज्यादा आवाज भी नहीं करेगा ,लकड़ी भी सुंदर ढंग से कटेगा और 2 घंटे का काम आधे घंटे में करेगा। फिर ट्रैक्टर से लादकर की टाल तक पहुंचा देगा। आप कब तक इन लोगो के भरोसे रहेंगे? सब जगह विकास हो रहा है और हम अभी तक इन जाहिल कामचोर मजदूरों के भरोसे काम कर रहे हैं ?यह बात सुनकर भरत साहू कुछ गंभीर हो गए ।लखनवा से यह अपमानजनक बात बर्दाश्त नहीं हुई ।उसने कहा जाहिल कामचोर केकरा कहते हो छोटे बाबू ?अपनी जवानी का 20 बरस यही लकड़ी काटने में लगा दिया ।हमें लोगों के बल पर तुम्हारा टाल इतना बड़ा बना है, बड़े मालिक से पूछो ,कैसे चुपके- चुपके पहले जंगल के अंदर से लकड़ी काटकर टाल तक पहुंचाता था। वनपाल पकड़ने पर मालिक 2-4 गो रुपैया देकर कैसे हम लोगों को छुड़ाता था ?आज हम जैसे लोगों के खातिर सरकार ने नया कानून बनाया, तो उसका पूरा लाभ भैया तुम ही लोग उठाओगे ?हम लोग अब मजुरी से भी गए? इतना सुनते ही गणेश साहू का मित्र हीरा ने लखनवा को दो तमाचा जड़ दिया। अरे तुम हमलोगों से जुबान लड़ आता है? सभी लोगों को हम लोगों के खिलाफ भड़काता है? भरत साहू ने हीरा को और मारने से रोका और लखनवा के फूटे मुंह को अपने रुमाल से पोछा। फिर कहा, देखो समय बदल गया है। जमाना के साथ अगर हम नहीं चलेंगे ,तो पिछड़ जाएंगे ।तुम लोगों का साथ बहुत ही वर्षों से है ,इसलिए कुछ व्यवस्था हम तुम लोगों के लिए करेंगे। अच्छा अब चलो तुम लोग, हम लोग थोड़ी देर में पहुंचते हैं। देखना कोई भी पेड़ पौधा छूटना नहीं चाहिए। ऊपर काफी रुपैया देना पड़ा है, समझ गए ना ?
मंगिया से अब रहा नहीं गया ।उसने कहा- बड़े सरकार ,यह जंगल हमारी माता के समान है। यहीं से हमें घास लकड़ी पत्ता आदि सब मिलता है ।अगर हम ही लोग इस जंगल को उजाड़ देंगे ,तो हमारे गाय गोरु कहां से चरेंगे, बकरी मुर्गा मुर्गी कैसे पालेंगे ,अब और पाप हम लोगों से मत कराइए ।छोटा- छोटा पेड़ -पौधा को अब हम नहीं  उखाड़ेगे ,हमारे बाप दादा ने बचपन से हमको बताया कि पेड़ पौधा में भगवान का निवास रहता है। जीवित पेड़ -पौधे को मत काटो, जो पेड़ पौधा सूख गया है, टूट गया है ,उसका बदली तुम 10 पौधा लगाओ, तभी हम सब का कल्याण होगा, अच्छी वर्षा होगी ,अन्न खूब-उपजेगा। यह सब सुनकर ठेकेदार भरत साहू अपना आपा खो बैठे ।खूब गरज कर उसने कहा -भागो तुम लोग यहां से ?यहां काम करने वालों की कमी नहीं है ? खूब उपदेश तुम लोगों का सुन लिए, भागता है कि नहीं?
 ठेकेदार भरत साहू का लकड़ी का धंधा दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रहा है। लकड़ी काटने वालों की संख्या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, लेकिन आपने दुर्गा ,शंभू ,करिया, मंगिया, भोलू और लखनवा को कहीं देखा है? क्या कहा, नहीं देखा? नहीं- नहीं, हम उन्हें पहचानते नहीं हैं? उन लोगों को आखिर कैसे पहचानेंगे? उन लोगों को कभी देखा नहीं? अरे जनाब, आप दुर्गा ,शंभू ,करिया ,मंगिया, भोलू और लखनुआ को बराबर देखते हैं, लेकिन उन्हें उनके नाम से नहीं पहचानते हैं ।वह आपके आस-पास ही रहते हैं। बता दें उसकी पहचान ?अच्छा बताता हूं ,जो लोग दूसरों को पेड़ काटने से रोकते हैं, लोगों को पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, कई बार कहीं -कहीं से छोटा- सा पौधा लाकर आप लोगों को बांटते हैं, आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ वातावरण, सुंदर पर्यावरण देने के लिए चिंतित -परेशान रहते हैं, कभी भाषण, कभी चित्रांकन, तो कभी नुक्कड़ नाटक के माध्यम से पेड़ बचाने की बात करते रहते हैं, बस—– यह वही हैं ।