झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

खून अपना अपना

श्याम को आज अस्पताल में पूरे 6 महीने हो गए हैं। दरभंगा के अस्पताल से पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रेफर करने के बाद इस अस्पताल में भी 2 महीने बीत गए हैं। डॉक्टरों का कहना है कि पांव का घाव अगर ठीक नहीं होगा, तो जांघ के पास से बाया पैर काटना पड़ेगा। लंबी बीमारी के कारण पीठ पर बिस्तर में लेटे लेटे  फोड़ा हो गया है। डॉक्टरों का कहना है कि छाती में भी पानी का जमाव हो रहा है और शरीर में खून की भी काफी कमी है। तत्काल दो बोतल खून चढ़ाने की आवश्यकता है ।

श्याम को समझ में नहीं आ रहा है कि उसकी जिंदगी कितनी बची है। डॉक्टर कुछ स्पष्ट नहीं बता रहे हैं ।दिनोंदिन तबीयत बिगड़ती जा रही है। बड़े भैया मुन्नू और छोटे भैया चंदू भी दिन-रात सेवा में लगे हुए हैं ।श्याम एक वन कर्मचारी है ।पांव के अंगूठे में एक बार पत्थर से चोट लग गई ,थोड़ा सा अंगूठा फूट गया था ।दर्द काफी कर रहा था। घर पर एक पुराने कपड़े का टुकड़ा चोट पर बांध लिया, लेकिन डायबिटीज के कारण घाव सूखने का नाम नहीं ले रहा था ।ड्यूटी के वक्त जूता पहनना अनिवार्य था ।जो किसी प्रकार पांव में जूता चढ़ा लेता था, लेकिन बाकी समय हवाई चप्पल ही पहना करता था। गांव में कई बार धूल पानी चला जाता था ,जिससे घाव विकराल रूप लेने लगा। अंत में ड्यूटी भी चप्पल पहनकर जाने लगा ।विभाग के लोगों ने जब घाव देखा तो अविलंब छुट्टी लेकर इलाज कराने की सलाह दी।
 दरभंगा अस्पताल में 4 महीने इलाज कराने के बाद स्थिति सुधरने की जगह बिगड़ने लगी, तो वहां से पटना रेफर कर दिया गया। पटना में एक घर किराए पर लिया गया है और खाने-पीने की अधिकांश वस्तुएं तो घर से ही आ जाया करती है, लेकिन आने जाने, दवा दारू में अब तक हजारों रुपए खर्च हो चुके हैं। भाई भतीजा मां भाभी पत्नी बेटा बेटी सभी लोग बारी-बारी से आते-जाते रहते हैं। छोटी चचेरी बहन आती है तो पूरे शरीर को पानी भीगे कपड़े से पोछकर पीठ के घावों में दवा लगा देती है। शरीर में पाउडर भी अच्छी तरह लगा देती है। मुंह पोछकर सिर में तेल डालकर बालों को कंघी भी कर देती है ।बहन बहन होती है बाकी लोग घाव के कारण ,उससे निकलने वाले बदबू के कारण नाक भौं सिकोडते हैं ।शरीर छूना कोई नहीं चाहता है। मानो अछूत हो। पत्नी को यहां रहने नहीं दिया जाता, बेचारी जब भी आती है, वह भी पूरी निष्ठा के साथ सेवा करती है ।लेकिन बाकी लोग केवल तफरीह करने, मौज मस्ती करने यहां आते हैं।
 श्याम की आंखें भर आई डॉक्टर ने दो बोतल खून की व्यवस्था तत्काल करने को कहा है ।मुन्नू भैया खून के इंतजाम में लगे हैं। होमो ग्लोबिन का स्तर4:00 पर आ गया है । अब तो सांस लेने में भी दिक्कत होती है। बड़े भैया 2 दिनों से खून के इंतजाम में लगे हुए हैं, लेकिन अब तक कोई सफलता हाथ नहीं लगी है। आज भी डॉक्टर राउंड के वक्त खून के बारे में पूछ रहे थे ।डॉक्टर वर्मा ने कहा कि परिवार के इतने लोग यहां रह रहे हैं तो फिर उनमें से कोई भी दो व्यक्ति अपना खून नहीं दे सकता?? खून महिला या पुरुष किसी का भी हो सकता है। जब श्याम ने कहा कि बड़े भैया खून के इंतजाम में लगे हुए हैं ,तो डॉक्टर वर्मा ने कहा कि वह अपना खून क्यों नहीं देते? अच्छे खासे 6 फीट लंबे तगड़े हैं। स्वस्थ शरीर है। दूसरों से खून मांगते फिरते हैं। उन्हें कौन रक्तदान करेगा, जब वह खुद अपना रक्तदान नहीं करते हैं, तो दूसरा क्यों उसके परिवार वालों के लिए रक्तदान करेगा ?उन्हें कहिए कि एक बोतल तुरंत वे अपना रक्त दान करें और परिवार का कोई दूसरा सदस्य एक बोतल रक्तदान करें। आज तीसरा दिन हो गया है। ऐसी स्थिति रही तो हम मरीज को बचा नहीं सकते। ताज्जुब है कि पढ़े लिखे हो कर भी रक्तदान करने से इतना घबराते क्यों है? जब मन्नू भैया शाम को घूम फिर कर वापस आए तो उनका चेहरा उतरा हुआ था। काफी कोशिश करने के बाद भी पटना में कोई ऐसा परिचित व्यक्ति नहीं मिला, जो रक्तदान कर सके।
 इधर श्याम की स्थिति और बिगड़ गई । परिवार के सभी सदस्य खून देने से डरते थे, इसलिए किसी ने भी मुन्नू भैया को डॉक्टर वर्मा की यह बात नहीं बताई कि डॉक्टर वर्मा ने उन्हें ही रक्तदान करने के लिए कहा है।
 श्याम अपने बड़े भैया को कुछ कह नहीं सकते थे। वह अपने बड़े भैया की इज्जत छोटे से ही किया करते थे। घर पर सबसे पहले नौकरी उसे ही मिली थी। वह अपने गांव के सभी पान दुकान ,चाय दुकान ,सत्तू की दुकान आदि में कह रखा था कि बड़े भैया से कभी पैसे नहीं लोगे, जो भी बिल होगा ,वह मैं दूंगा ।बड़े भैया अपने मित्र साथियों के साथ चाय दुकान पर चाय पिए या पान दुकान पर पान खाए या फिर सत्तू का शरबत लस्सी या झिल्ली मुड़ी का शौक अपने साथियों के साथ फरमाए। श्याम पीछे-पीछे सभी लोगों का बिल अदा करते चलता था। गांव के लोग बाग भी कहा करते थे कि भाई भाई में प्रेम हो तो ऐसा हो ।सरकारी नौकरी लग गई तो क्या हुआ ,छोटे भाई में थोड़ा भी घमंड नहीं है और तो और बड़े भाई और उनके दोस्तों के शौक का खर्च भी छोटा भाई चुपचाप उठाता है और किसी को खबर तक नहीं होने देता है।
 श्याम ने करवट बदली। मुंह से आह निकल गया ।शरीर का एक-एक अंग फोड़े के समान दुख रहा था ।शरीर में मानो अब थोड़ी भी ताकत नहीं बची थी। बाया पैर को हिलाना भी दुश्वार था। किसी भी करवट चैन ना थी। एक ओर जिंदगी और मौत के बीच वह जी रहा था। दूसरी ओर डॉक्टर जान बचाने के लिए पैर काटने की बात कर रहे थे। वही सीने में पानी भरने की बात भी कही जा रही थी और होमो ग्लोबिन के स्तर को 4 से ऊपर ले जाने के लिए तुरंत खून चढ़ाने की आवश्यकता थी ।जिसका इंतजाम अब तक नहीं हो पाया था।
 मुन्नू भैया ने अपने छोटे चचेरे भाई राज को फोन लगाया और श्याम की स्थिति से से अवगत कराया ।राज अपने श्याम भैया की स्थिति सुनकर काफी दुखी हुआ और मन्नू भैया से कहा कि पहले उसने श्याम भैया के बीमारी की जानकारी क्यों नहीं दी। मन्नू भैया ने राज से 2 बोतल खून की व्यवस्था करने को कहा ।पहले ही 3 दिन का समय निकल चुका था। अचानक अपने दोस्तों को जमशेदपुर से लेकर पटना जाने का कोई अवसर ना था ।राज ने मन्नू भैया से कहा ,भैया अगर जमशेदपुर की बात होती, तो दो बोतल खून की जगह 10 बोतल खून का इंतजाम मैं कर देता ।यहां के लोग रक्तदान के प्रति काफी जागरूक हैं ।महिला हो या पुरुष ,कोई भी रक्तदान करने से नहीं घबराता। कई लोग तो अपने जन्मदिन पर या शादी की सालगिरह पर या किसी के स्मृति में प्राय: रक्तदान करते हैं ।जमशेदपुर में कई ऐसे लोग हैं जो 100 बार से भी अधिक बार रक्तदान कर चुके हैं ।महिलाएं भी अब पीछे नहीं है, 50 से अधिक बार रक्तदान करने वाले कई महिलाएं भी हमारे शहर में है। मैं खुद ही कई बार रक्तदान कर चुका हूं। यहां के लोग खून की कमी से नहीं मरते हैं। यहां थैलीसीमिया के मरीज, कैंसर के मरीज भी बड़ी तादाद में है ,क्योंकि यहां कैंसर के अस्पताल हैं ।जहां भारत के विभिन्न स्थानों से लोग आते हैं, लेकिन उन्हें खून की दिक्कत नहीं होती। यह सब एक दिन में नहीं हुआ ।इस शुभ कार्य में कई लोग निरंतर लगे रहे। कुछ संस्था बनाकर और कुछ खुद व्यक्तिगत तौर पर गांव-गांव जाकर लोगों को बताते कि रक्तदान महादान है। रक्तदान करने से किसी तरह की कोई कमजोरी नहीं होती ।जितना हम रक्तदान करते हैं, उतना हमारा शरीर 24 घंटे के अंदर उसे पूरा कर लेता है। रक्तदान करते रहने से हमारा रक्त ज्यादा स्वस्थ बना रहता है ।हमें 3 महीने के बाद ही दोबारा रक्तदान करना चाहिए और जब हम 100 से भी अधिक बार रक्तदान करने वालों को भला चंगा देखते हैं, तो हमारा आत्मविश्वास और बढ़ जाता है ।भैया यहां तो रक्तदान शिविर का उद्घाटन खुद उपायुक्त, आरक्षी अधीक्षक, उप विकास आयुक्त जैसे बड़े प्रशासनिक अधिकारी अपना रक्तदान कर करते हैं। मन्नू भैया इसमें घबराने वाली कौन सी बात है? आप खुद क्यों नहीं रक्तदान करते हैं। मन्नू भैया ने राज से फोन पर कहा, देखो राज मुझे डर लगता है। मेरा लंबा तगड़ा शरीर देखकर सभी लोग मुझे रक्तदान करने के लिए उकसाते हैं। लेकिन हम जानते हैं कि अगर हम रक्तदान करने गए ,तो जरूर मेरा बहुत सारा खून यह लोग निकाल लेंगे। मुझे तो लगता है कि शरीर का सारा खून निचोड़ लेंगे ।तुम्हें नहीं मालूम राज इस शरीर को बनाने के लिए हम कितना कुछ करते हैं। दूध दही अंडा मछली मांस हरी सब्जी कितना कुछ खाते हैं। इतनी मेहनत और खर्चा करके इस शरीर को पोसते हैं, तो अपना खून निकाल कर कैसे दे देंगे ?राज ने अपना सिर पीट लिया। बड़े भैया को समझाना बेकार था। वह अपने सहोदर छोटे भाई, जो हरदम उनका ध्यान रखता था ।आज जरूरत के समय एक बोतल खून नहीं दे सकता। जिससे उसकी जान बच सके। राज ने मन्नू भैया से कहा ,भैया चिंता मत कीजिए ।मेरे एक दो मित्र और शुभचिंतक पटना में है ।मुझे विश्वास है कि वे लोग तुरंत दो बोतल खून का इंतजाम कर देंगे। राज ने पटना में अपने शुभचिंतकों से बातचीत कर दो बोतल खून की व्यवस्था कर दी और मन्नू भैया को उनका फोन नंबर देकर कहा की उन्हें आप जहां बुलाएगा ,वहां जाकर रक्तदान करेंगे।
 समय बीतता गया। उस दिन पटना से कोई सूचना नहीं मिली कि खून चढ़ाया गया या नहीं। लेकिन दूसरे दिन सवेरे ही पता चला कि श्याम भैया नहीं रहे। खून नहीं चढ़ाने, सीना में पानी भर जाने और पांव का घाव असाध्य रूप ले लेने के कारण उनकी मौत हो गई ।सांस लेने में वैसे भी पहले से दिक्कत हो रही थी ।अंत में ऑक्सीजन सिलेंडर लगाने पर भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। राज के आंखों में आंसू आ गए। श्याम भैया की मौत खून के अभाव में हो गई। आज भी लोग इतने पढ़ लिख लेने के बावजूद रक्तदान करना नहीं चाहते ।अगर हम अपने परिवार के लोगों को रक्तदान नहीं करेंगे ,तो दूसरा क्यों आपके परिवार के लिए रक्तदान करेगा। हम यह कब समझेंगे कि रक्तदान करने से स्वास्थ्य की कोई भी समस्या नहीं उत्पन्न होती है और हम किसी की जिंदगी को बचा लेते हैं ।आखिर हम कब इस बात को समझेंगे ?आखिर कब ?