झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

सेक्शन 498 और सौदा

शांत वातावरण में घड़ी की टिक टिक स्पष्ट रूप से पूरे कमरे में सुनाई पड़ रही थी. रात के 2:00 बजे हैं .अकरम की आंखों से नींद कोसों दूर है .अम्मी भी जरूर दूसरे कमरे में जाग रही होगी और वह यह भी अच्छी तरह जानती होगी कि उसका बेटा भी तन्हाई में खोया खोया कुछ सोच रहा होगा .कुछ पढ़ रहा होगा या फोटो एल्बम पलट रहा होगा.

 फोटो भी क्या गजब की चीज होती है एक बार नजरों के पास से गुजरती है तो मानो उस पल की एक एक घटना जीवंत हो जाती है. ऐसा लगता है हम फिर से वही हो गए हैं जो फोटो में दिखाई पड़ रहा है. दिल को सबसे अधिक   छू लेने वाला फोटो एल्बम शादी का है .मन कहता है इसे मत देखो और दिल कहता है सिर्फ एक बार प्लीज.

अकरम ने शादी फोटो एल्बम का पहला पन्ना पलटा. अपने सिर पर बंधा चेहरा देखकर मन ही मन मुस्कुराया.. लाल गुलाब और रजनीगंधा के फूलों से सेहरा सजा है.. यह बारात निकलने से पहले का है. साथ में अपनी बहन शकीला ,सायरा और उनके बच्चे साथ खड़े मुस्कुरा रहे हैं. इस फोटो में तो बड़े मामा, चाचा जान ,बहनोई मुख्तार आदि लोग खड़े हैं. दूसरे पेज में अनवर चिंटू राज और सुभान अली दिख रहे हैं. सभी लोग ठहाका लगा रहे हैं. अकरम इस फोटो को देखते हुए ना जाने कहां खो गया. अनवर ने चुटकी ली आखिर अकरम मियां ने सेहरा बांध लिया. निकाह के नाम से यार बड़ा भागता फिरता था. चिंटू ने कहा अपने को कुंवारा कहलवानी का शौक जो ठहरा था और सुभान में अपनी टोपी थोड़ी सी खिसकाई. फिर खुद भद्दा सा मुंह बनाया, फिर कहा, बरखुरदार निकाह के बाद ही पता चलेगा, जब बीवी एक एक बात की खोज खबर रखेगी, बात बात पर एक एक चीज की फरमाइश करेगी और नहीं लाने पर झगड़े करेगी. मैं तो निकाह करने के बाद फस गया हूं. कमबख्त बड़ी बुरी बला चीज है. ना रखते बनता है ,ना फेंकते ही. सुभान की बातें सुनकर सब हंस पड़े .

अकरम ने एक पेज और पलटा. जुबेदा इस फोटो में कितनी मासूम, कितनी प्यारी लग रही है. गोरी चिट्टी जुबेदा की नीली आंखें ऐसा एहसास दिलाती है, मानो दो सुंदर तालाबों में पाक साफ जल भरा हो. इस शांत जल में कितनी ज्वाला छुपी थी ,वह यह नहीं जान सका था. अब्बू ने जब दुनिया छोड़ी थी तब वह मुश्किल से 15 -16 वर्ष का था. मम्मी तो एकदम से टूट गई थी. कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या करें, घर कैसे चलेगा, दो छोटी छोटी बहनें शकीला, सायरा की पढ़ाई लिखाई और फिर उसकी अपनी पढ़ाई लिखाई का क्या होगा ?अब्बू को मिट्टी देने के बाद अपने सगे संबंधियों ने तो जैसे मुंह मोड़ लिया. 1 साल तो किसी तरह खींचतान कर चला, फिर किसी प्रकार बड़े मामू ने मम्मी को समझा बुझाकर बाहर काम करने के लिए तैयार कर लिया. अब्बू जिस ऑफिस में काम करते थे ,वही दाई का काम मिला .चाय पानी पिलाना, साफ सफाई करना ,यही तो काम था .पेट के खातिर तो सब कुछ करना ही पड़ता है. जहां अब्बू बाबू थे, वही अम्मी को दाई का काम करना पड़ता था ,लेकिन ऑफिस के लोगों ने हिम्मत बंधाई, सहायता की और अम्मी ने धीरे-धीरे अपने इस नियति को स्वीकार कर ली. वह खुद भी तो साकची के फुटपाथ पर दुकान लगाया करता था. कभी खिलौना, कभी जूता चप्पल, तो कभी कपड़ा लत्ता. उस समय मंगला हाट नहीं लगता था. बड़े दुकान वाले अपने दुकान के आगे फुटपाथ पर बैठने उसे नहीं देते थे. किसी कोने में अगर दुकान लगा ली तो वहां के दादाओं का रौब अलग सहना पड़ता. कभी धमकी ,कभी गाली, तो कभी रंगदारी. ऊपर से दो-तीन सिपाही अलग-अलग आकर ₹2 या ₹3 या ₹5 अलग से वसूलते थे. कभी-कभी थाना की गाड़ी बाजार में घुसती थी तो फुटपाथ पर सामान समेट कर तुरंत कहीं ओट में छिपने पढ़ता था. गलती से रोड में दिखाई पड़ जाने से सिपाहियों की लाठी सटासट चलती .उसमें कई बार ऐसे सिपाही भी होते, जो थोड़ी देर पहले वसूल कर गए होते. हालांकि उसकी लाठी देह पर कम, पोल खंभे, खड़ी गाड़ियां आदि पर ज्यादा चलता. कुछ इंसानियत उनके दिल में भी होती. लेकिन दूसरे सिपाही तो कसाई के समान लाठी चलाते. दुकानदारी के साथ पढ़ाई भी चलती रही. आइकॉम, बीकॉम और अंत में एमकॉम. कंपनी के काम से घर की आर्थिक स्थिति ठीक होती गई .पहले अपना घर बना, फिर शकीला और सायरा की निकाह भी हो गई. घर में मम्मी और वह. अम्मी जितना बोलने वाली ,उतना ही वह खामोश रहने वाला. अम्मी को हर कुंवारी लड़की में अपनी बहू की झलक दिखाई पड़ती और उससे वह कहती, अकरम बेटा जल्द से तुम भी निकाह पढ़ वाले ,मुझे एक अच्छी सी बहू ला कर दे, अब घर पर अकेला अच्छा नहीं लगता. तुम तो घर से हमेशा बाहर रहते हो. जब तक मैं ड्यूटी करती थी, तो घर और बाहर के काम में इतनी व्यस्त हो गई थी कि पता ही नहीं चला कि 20 वर्षों का समय कैसे कट गया. रिटायर होने के बाद अब करने को कुछ काम ही ना रहा. घर अब काटने को दौड़ता है. बात करने के लिए भी मन तरस जाती है .अपने सुख दुख की बात किससे करूं, शकीला और सायरा भी थी, तब उससे मन की बातें कर लेती थी .मुझे भी बड़ी इच्छा है कि अपने पोते पोतियो को अपनी गोद में खिलाए ,इस शरीर का क्या भरोसा, कब साथ छोड़ दे. अकरम भी निकाह करना तो चाहता था, लेकिन उसे आजकल की लड़कियां पसंद नहीं आती थी. ना सही ढंग से यह लड़कियां कपड़े लगते पहनती है और ना इनका चाल चलन उसे ठीक लगता था. लड़कों से उन्मुक्त होकर ठाकर लगाना ,जींस और तंग कपड़ों में बाइक चलाना, लड़कों के साथ घूमना फिरना, खाना-पीना करना, अकरम को यह सब नागवार लगता. कभी कोई सीधी-सादी लड़की का रिश्ता आता, तो उसे लगता कि वह जमाने के हिसाब से फिट नहीं है. जरूरत पड़ने पर वह कहीं बाहर काम नहीं कर सकती .कोई बाहर काम करने वाली लड़की का ऑफर मिलता, तब उसे यह कचोटता कि यह लड़की, जो मुझ से दुगुना वेतन पाती है, यह मुझे क्या मान देगी. कोई ज्यादा स्मार्ट दिखती, तो उसे उसके चाल चलन पर शक लगने लगता. एक-एक कर 20-25 रिश्ते हाथों से निकलते गए. अब तो लड़की वाले आते भी नहीं. इसी बीच अपने रिश्तेदारों के सहयोग से एक रिश्ता आया. नाम था जुबेदा.

 अकरम ने फोटो एल्बम का एक पेज और पलटा. जुबेदा का मुस्कुराता चेहरा और शर्म से झुकी झुकी नीली आंखें. किसी को भी दीवाना बना सकता था. यह फोटो निकाह के बाद दूसरे दिन का था. साली सालों के बीच, उसके सामने बैठी जुबेदा नीचे निगाहें कर ,कैसे धीरे-धीरे मुस्कुरा रही थी. उसकी यह अदा देखकर अकरम का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा. अम्मी ने इस बार उसकी एक न सुनी थी. कहा था सभी लड़कियों को कोई ना कोई बहाना कर छांट जाते हो, अब मैं जिस लड़की से तेरी निकाह करवा रही हूं ,चुपचाप कर लो .दोनों बहनों ने भी जोर दिया .इस बार निकाह से पहले उसने लड़की को देखा भी नहीं था. फोटो देख कर ही वह इतनी प्यारी और मासूम लगी थी कि वह अपनी अम्मी को निकाह करने से मना नहीं कर सका.

 अकरम ने फोटो एल्बम का एक और पेज पलटा. रिसेप्शन के समय का फोटो था. जुबेदा लाल कुर्सी पर खामोश बैठी थी. साथ में परिवार दोस्त और सगे संबंधियों के फोटो हैं. निकाह के 15 दिनों बाद ही वह अपने मायके चली गई थी. खूबसूरत जुबेदा की ओर अकरम के मन में शक का कीड़ा कुल बुलाने लगा. वह मायके से अभी ससुराल आना नहीं चाहती थी और इधर अकरम को लगने लगा कि जरूर जुबेदा का चक्कर मायके में किसी से है. तभी तो उससे छुप छुपा कर ना जाने रात में वह किस से किस से बात करती थी. अब उसको जुबेदा की हर बात हर गतिविधि संदिग्ध लगती. बड़ी मुश्किल से उसने जुबेदा को मायके से अपने यहां लाया था. दोनों की तकरार बढ़ती गई और अंत में जुबेदा कि भाई सलमान ने थाने में सेक्शन 498 के तहत दहेज के लिए बहन को प्रताड़ित करने का मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस मुकदमें में सभी लोगों का नाम डाल दिया. पति सास ननंद नंदोई का वारंट लेकर पुलिस घर पहुंची और अकरम के साथ उसके बहनोई मुख्तार को पकड़ कर जेल में डाल दिया. अकरम अंदर से टूट सा गया. लड़की के वकील ने कई तरह से फंसाने के लिए नई-नई बातें केस में जोड़ने लगे. इस मुकदमे में रिश्ते के साथ दिल को भी तोड़ दिया. अब अकरम को अपना शक सही लगने लगा. हालांकि अम्मी अभी भी सब कुछ भूल कर बहू को अपनाने के लिए तैयार थी, लेकिन अकरम अब किसी भी सूरत में जुबेदा को दोबारा अपनाने के लिए तैयार नहीं था.

 अकरम ने फोटो एल्बम का एक पेज और पलटा. जुबेदा के साथ बिताए गए फोटो ने याद को फिर जीवंत कर दिया. अकरम जेल में 2 महीने से अधिक रहा. जमानत होने की सूरत नजर नहीं आ रही थी. पुलिस ने केस डायरी अभी तक कोर्ट में जमा नहीं की थी. 90 दिन होने पर इसी आधार पर जमानत हो जाने की गुंजाइश थी. जमानत के बाद फिर इस केस में होने जाने वाला कुछ नहीं था. तब लड़की वालों की संबंधी और उसके वकील ने एक ‘सौदा’ किया. अगर ₹10 लाख अकरम देने को तैयार हो जाए, तो वह केस उठाने के साथ तलाक देने को भी तैयार है. अकरम ने कहा कि मेहर की रकम तो एक मात्र 21 हज़ार ही रुपए तय हुई थी. तब साले सलमान ने कहा कि निकाह में जो खर्च हुआ, आपको मैंने जो सामान और गाड़ी दी, उसका खर्च कौन देगा. सौदा अंत में ₹5 लाख में तय हुआ और अकरम को जेल से जमानत मिल गई. अकरम ने निकाह में मिले सभी सामान लौटा दिए, लेकिन जुबेदा के घरवालों ने ना सामान, गहना कपड़ा लौट आया और ना तलाक के कागज में जुबेदा से हस्ताक्षर करवाया. जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, एक-एक पल और जीवंत होता जा रहा है. अकरम का खून और खौलता जा रहा है. उसे नफरत सी हो गई थी लड़की का सौदा करने वाले परिवार से. लड़की वाले अब चाह रहे हैं कि तलाक वाले मामले को किसी प्रकार लटकाए रखा जाए ,ताकि अकरम मियां दूसरा निकाह नहीं कर सके. इधर अकरम का मन निकाह से टूट गया है. वह सपने में भी दूसरे निकाह की बात सोच नहीं पाता. एक ही नहीं इतना ज़ख्म दिया कि अब इस जिंदगी में दूसरे के बारे में सोचना भी वह गुनाह समझता है. अकरम ने घड़ी की ओर देखा. सुबह के 4:30 बज रहे थे. आंखों ही आंखों में रात कट गई थी. अम्मी शायद थोड़ी देर पहले ही सोई होगी, क्योंकि उसके खासने की आवाज कुछ देर से सुनाई नहीं पड़ी थी. फोटो एल्बम में अब कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था. आंखों के आगे कभी जुबेदा का मुस्कुराता चेहरा, कभी उसकी नीली आंखें ,कभी तकरार करती हुई तस्वीर नाच रही है. कभी हाथ में हथकड़ी पहने जेल जाते हुए पुलिस गाड़ी में बैठा वह खुद को देखता, तो कभी अपने साले सलमान को वकील के साथ मिलकर ‘सौदा’ पटाते देखता. ₹10 लाख, नहीं ₹7 लाख से कम नहीं लूंगा, मेरी बहन की जिंदगी की बात है. उसकी दूसरी शादी करूंगा, रुपए नहीं दोगे, तो मुक्ति नहीं मिलने वाली।