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सौर ऊर्जा से बनी बिजली से लहलहा रहे खेत, सिंचाई हुई आसान

लोहरदगा जिले में सोलर आधारित जलापूर्ति योजना ने किसानों की तकदीर बदलने का काम किया है. कृषि में बिछड़ते किसानों के लिए सोलर आधारित जलापूर्ति योजना ने रोजगार की असीम संभावनाएं पैदा कर दी है. अब किसान अपने खेतों की ओर वापस मुड़ चुके हैं. सिंचाई की समस्या समाप्त होने से किसानों के लिए एक आदर्श माहौल बन गया है.
लोहरदगा: सौर ऊर्जा वर्तमान समय में न सिर्फ ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण और असीमित माध्यम है, बल्कि सौर ऊर्जा के माध्यम से अब कृषि कार्य को भी बढ़ावा मिलने लगा है. लोहरदगा जिले में सूरज की रोशनी से खेतों में हरियाली आ रही है. कभी रोजगार की तलाश में पलायन करने वाले किसान आज फिर से खेती से जुड़ने लगे हैं. यहां 30 एकड़ क्षेत्र में सौर ऊर्जा सिंचाई योजना के माध्यम से खेतों को पानी मिल पा रहा है. आने वाले समय में लगभग 200 एकड़ में सिंचाई योजना के माध्यम से खेतों को पानी मिल पाएगा. लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड के घाटा गांव के किसानों ने जिला प्रशासन से गांव में स्थित चेक डैम के माध्यम से सिंचाई योजना को एक अलग रूप प्रदान करने की फरियाद की थी. ग्रामीणों की इस गुहार को उपायुक्त दिलीप कुमार टोप्पो ने समझते हुए नई योजना के माध्यम से क्षेत्र की तस्वीर बदलने की कोशिश की. यूं तो बिजली मोटर पंप और डीजल पंप के माध्यम से भी सिंचाई हो सकती थी, लेकिन जिला प्रशासन ने इसके लिए प्रदान संस्था के साथ मिलकर सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई योजना स्थापित कराने की योजना बनाई. स्थानीय ग्रामीणों को शुरुआत में यह थोड़ा अटपटा लगा. उनको लगा कि पता नहीं योजना सफल होगी या नहीं. कितने खेतों में पानी पहुंच पाएगा और ना जाने कितने सवाल किसानों के दिमाग में चल रहे थे. जब योजना धरातल पर उतरी तो किसानों के चेहरे खिल उठे
लोहरदगा के झालजमीरा पंचायत के घाटा गांव में सोलर आधारित लिफ्ट सिंचाई योजना का शुरुआत जब हुई तो किसानों के लिए सपने पूरा होने जैसा लगा. अट्ठारह सोनल पैनल के माध्यम से साढे़ पांच हजार वाट की ऊर्जा पैदा होती है, जिससे एक दिन में अधिकतम सात एकड़ भूमि की सिंचाई की जा सकती है. इस योजना को कृषि विभाग ने वित्तीय सहयोग और प्रदान संस्था ने तकनीकी सहयोग प्रदान किया है. योजना शुरू होने के बाद एक सौ हेक्टेयर भूमि में सरसों और 22 एकड़ भूमि में गेहूं की खेती भी शुरू कर दी गई, साथ ही मटर, आलू, मूली और सरसों की पैदावार भी शुरू हो गई और इससे किसानों को मुनाफा भी मिलने लगा. महज साढ़े नौ लाख रुपए की यह योजना किसानों के लिए बिल्कुल अलग और नई थी. किसानों को इसमें लगभग 95 हजार रुपये का अंशदान देना पड़ा है. शेष पैसा प्रशासन की ओर से मिला है. इस क्षेत्र में पानी के स्टोरेज की व्यवस्था होने के बावजूद यहां पर किसान सिंचाई संसाधनों के अभाव में खेती नहीं कर पाते थे. अब तो कई ऐसे खेतों तक पानी पहुंच पा रहा है, जहां कभी जमीन बंजर थी. किसान पूरी तरह से खेती से जुड़ चुके हैं.