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महालया अमावस्या आज, मलमास  के कारण एक माह बाद शुरू होगी नवरात्रि

महालया अमावस्या पितृ पक्ष का आखिरी दिन होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन माह की अमावस्या को महालया अमावस्या कहते हैं। इसे सर्व पितृ अमावस्या, पितृ विसर्जनी अमावस्या एवं मोक्षदायिनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस बार महालया अमावस्या की समाप्ति के बाद शारदीय नवरात्रि आरंभ नहीं हो सकेगा। आमतौर पर महालया अमावस्या के अगले दिन प्रतिपदा पर शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाते हैं। लेकिन इस बार अधिकमास के कारण नवरात्रि पितृपक्ष की समाप्ति के एक महीने बाद आरंभ होगा। इस तरह का संयोग 19 साल पहले 2001 में बना था जब पितृपक्ष के समाप्ति के एक महीने बाद नवरात्रि शुरू हुआ। अधिक मास 18 सितंबर से शुरू हो रहा है जो 16 अक्टूबर को समाप्त होगा।

महालया का महत्व

शास्त्रों में महालया अमावस्या का बड़ा महत्व बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि जिन पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती है उन पितरों का श्राद्ध कर्म हिमालय अमावस्या के दिन किया दाता है। इस दिन अपने पूर्वजों को याद और उनके प्रति श्रद्धा भाव दिखाने का समय होता है। पितृपक्ष के दौरान पितृलोक से पितरदेव धरती अपने प्रियजनों के पास किसी न किसी रूप में आते हैं। ऐसे में जो लोग इस धरती पर जीवित है वे अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पितृपक्ष में उनका तर्पण करते हैं।

तर्पण से मतलब होता है उन्हें जलदान, भोजनदान कर उनका श्राद्ध करने से होता है। मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरदेव धरती पर पशु पक्षी और ब्राह्राणों के रूप में अपने प्रियजनों से मिलने आते हैं। ऐसे में पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए पवित्र नदियों में तर्पण, पिंडदान और ब्राह्राणों को भोजन करवाया जाता है। पितृपक्ष में तर्पण करने से पितृदोष और तमाम तरह के कष्ट दूर होते हैं और महालया अमावस्या के दिन वे अपने लोक पुनः वापस चले जाते हैं।

कब से शुरू होगी नवरात्रि

इस साल नवरात्रि पर्व 17 अक्टूबर से प्रारंभ हो रहा है जो 25 अक्टूबर तक चलेगा। राम नवमी 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्र पर्व शुरू होता है जो नवमी तिथि तक चलते हैं।

क्या होता है मलमास

जिस चंद्रमास में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती उसे ही अधिकमास या मलमास कहा गया है। जिस चन्द्रमास में दो संक्रांति पड़ती हो वह क्षयमास कहलाता है। सामन्यतः यह अवसर 28 से 36 माह के मध्य एक बार आता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य के सभी बारह राशियों के भ्रमण में जितना समय लगता है उसे सौरवर्ष कहा गया है जिसकी अवधि 365 दिन 6 घंटे और 11 सेकेण्ड की होती है। इन्ही बारह राशियों का भ्रमण चंद्रमा प्रत्येक माह करते हैं जिसे चन्द्र मास कहा गया है।

एक वर्ष में हर राशि का भ्रमण चंद्रमा 12 बार करते हैं जिसे चंद्र वर्ष कहा जाता है। चंद्रमा का यह वर्ष 354 दिन और लगभग 09 घंटे का होता है। परिणामस्वरुप सूर्य और चन्द्र के भ्रमण काल में एक वर्ष में 10 दिन से भी अधिक का समय लगता है। इस तरह सूर्य और चन्द्र के वर्ष का समीकरण ठीक करने के लिए अधिक मास का जन्म हुआ। लगभग तीन वर्ष में ये बचे हुए दिन 31 दिन से भी अधिक होकर अधिमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के रूप में जाने जाते हैं