झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

मां का आशीर्वाद

समय रात के 9 बजकर15 मिनट।स्थान वेल्लोर के वेलकम लॉज में रूम नंबर 12 के पास दूर से बैसाखी की खटखट करती आवाज दरवाजे के पास रूकी ।दरवाजे का सांकल दो बार खटखटाया ।दरवाजा खुला ,आगंतुक ने हाथ जोड़कर कहा ‘मैं मनोज कुमार मिश्र, इतिहास के प्रथम पृष्ठ पर अपनी बात कहता हूं, आप घबराइएगा नहीं क्योंकि मैं भी घबराता नहीं, मुझे ब्लड कैंसर है’ चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए बैसाखी के सहारे व रूम के अंदर आता है। उम्र यही कोई 27- 28 वर्ष, गोरा रंग, गोल चेहरा बीमारी के कारण सिर के बाल कुछ उड़ा हुआ, मन में आशा उमंग का भाव, कुछ कर गुजरने की ललक, पल-पल को खूब अच्छी तरह जीने की उत्साह। उस रूम में मैं और मेरे माता-पिता थे। मनोज को मेरे चाचा जी ने मेरे रूम का पता दिया था। मैंने झिझकते हुए कहा, माँ ने चाय बनाई है, क्या आप चाय पी सकते हैं? वह मां के हाथ से चाय लेकर खुशी-खुशी पीने लगा और मुझे बताने लगा कि मुझे कुछ नहीं हो सकता, मुझे मां का आशीर्वाद प्राप्त है ।दूसरे दिन अस्पताल के अपने बेड का पता बता कर मुझसे आने को कहा। जब धड़कते दिल से उसके कमरे में दाखिल हुआ तो वह बहुत ही खुशी के साथ मुझे अपने पास बैठा कर बातें करने लगा ।मुझसे वह पूछने लगा कि वेस्टर्न म्यूजिक सुनोगे या ग़ज़ल ।फिर कुछ चुने हुए कैसेट से एक अपनी पसंद का ग़ज़ल लगाकर मुझसे पूछने लगा ,यह ग़ज़ल तुम्हें पसंद आया और फिर प्लेट में चनाचूर ,क्रीम बिस्कुट आदि निकाल कर मेरे सामने रखकर मुझसे खाने का आग्रह करने लगा। फिर मुझसे चाय के लिए उसने पूछा, मैंने कहा ‘मैं चाय नहीं पीता’ इस बीच मैंने पाया कि वार्ड के सभी डॉक्टर, मनोज से काफी प्रभावित हैं और उसका काफी ध्यान रखते हैं। वार्ड के अधिकांश मरीज और उसके साथ आए लोगों की जान पहचान मनोज से है। प्राय: लोगों से घिरा ,उसे बातें करता रहता है ।किसके लिए क्या किया जाए, किस की क्या समस्या है और उसका निराकरण कैसे हो, वह इसी सब मे लगा रहता ।

उसे जब पता चला कि मेरे पिताजी को ऑपरेशन के लिए दो बोतल खून और चाहिए तो उसने मुझसे कहा ‘राज तुम घबराना मत, कम से कम एक बोतल खून का इंतजाम तो मैं कर ही दूंगा। वैसे दो बोतल खून के लिए मैं कोशिश करूंगा।’ वेल्लोर में सबसे ज्यादा दिक्कत खून की व्यवस्था करने में होती है ।खैर मैंने एक बोतल खून की व्यवस्था किसी तरह से कर ली और मनोज ने भी एक बोतल की व्यवस्था कर दी, जबकि उसे सप्ताह में खुद ही एक बोतल खून की जरूरत पड़ती है।
 शाम के समय वैशाखी टेकते हुए वह पिताजी के बेड के पास अचानक एक दिन आया। पिताजी अस्पताल में उस समय भर्ती थे। मां भी पास बैठी थी। मैंने मनोज को स्टूल बैठने के लिए दिया। वह बहुत ही श्रद्धा पूर्वक मेरे माता-पिता को प्रणाम कर कहा ‘चाचा जी ,मुझे डॉक्टरों ने मुक्ति दे दी ।अब मैं सब कुछ खा पी सकता हूं ,कहीं भी घूमने जा सकता हूं ।’मनोज के चेहरे पर एक अजीब सी शांति छाई थी। चेहरे पर अभी भी मंद मंद मुस्कान थी। मां ने खुश होकर कहा ‘यह तो बहुत ही खुशी की बात है, भगवान करे तुम खूब खुशी पूर्वक अपना जीवन जीओ’, तब तक पिताजी के चेहरे पर विषाद की हल्की छाया आ गई। उन्होंने अवरुद्ध कंठ से मां को मनोज की बातों को समझाया कि डॉक्टरों ने अब जवाब दे दिया है। जितना इलाज भी कर सकते थे, कर दिया ।आगे अब कुछ नहीं है उनके पास करने को। मां की आंखों में आंसू छलक आए। मैंने भरे हृदय से मनोज को पूछा ‘अब आगे तुम क्या सोचते हो?’ उन्होंने कहा कि दिल्ली में सुना कि ब्लड कैंसर का आयुर्वेदिक इलाज है। अब यहां से सीधे दिल्ली जाऊंगा। अरे हां, तुम जो बॉल फेंककर प्लास्टिक गिलास गिराने के खेल के बारे में बताए थे ना, वह खेल मैंने अस्पताल के चैरिटी मेले में लगाया था। इस खेल से मुझे ₹124 मिले। जिसे मैंने अस्पताल के चैरिटी फंड में जमा करवा दिया। फिर वह उठकर गुड बाय कह कर जाने लगा। मैंने पूछा दिल्ली कब जा रहे हो ।मनोज ने कहा ‘कल ही बेगूसराय अपने घर होता हुआ दिल्ली चला जाऊंगा, अरे यार, तुम इतना मायूस क्यों होते हो ?मुझे कुछ नहीं होगा ।मुझे मां का आशीर्वाद प्राप्त है।’
उसके जाने के पांचवे दिन मुझे बेगूसराय से फोन पर सूचना मिली कि मनोज अब इस संसार में नहीं रहा। उसकी तबीयत काफी खराब हो गई थी। मरते वक्त उसके शरीर का एक-एक नस अंदर ही अंदर फटने लगा था और वह चिल्ला रहा था डॉक्टर, मुझे बहुत ही दर्द हो रहा है ।मुझे बचा लीजिए डॉक्टर।
 डॉक्टर ने उस रूम से सभी रिश्तेदारों को बाहर कर दिया था और कहा था आधे घंटे में सब कुछ शांत हो जाएगा। धीरे-धीरे चीख़ की आवाज कम होती गई और मनोज सदा के लिए शांत हो गया।
 डॉक्टर ने उसके शरीर पर चादर डालते हुए कहा ‘मनोज एक जिंदादिल इंसान था। उसे सचमुच अपनी मां का आशीर्वाद प्राप्त था, नहीं तो आज से 5 साल पहले ही मर जाता। इतनी खराब परिस्थिति में भी वह कभी हिम्मत नहीं हारा ।अपनी जिंदगी का रोना ना रोकर, दूसरे की जिंदगी को खुशनुमा बनाने, कम से कम समय में भी दूसरों की जिंदगी में कुछ उत्साह आनंद लाने के लिए, समाज को कुछ देने के लिए वह हमेशा तत्पर रहा। वह कैंसर से नहीं अपनी मौत मरा है।’