झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

डोर रिश्तों की

बालों को मेहंदी से  रंगते हुए वंदना ने अपने चेहरे को शीशे में गौर से देखा। पूरे शरीर में एक हल्की सी झुरझुरी दौड़ गई ।बड़ी बड़ी आंखों के नीचे अब काला पड़ने लगा है। काले लंबे घने बालों ने भी अब अपना रंग बदलना शुरू कर दिया है। गोरे गोरे लाल गालों पर हल्की-हल्की झुरियां यौवन की बिदाग़री का संदेश देना शुरू कर दी है । देखते ही देखते 40 बसंत कब के पार हो गए, पता ही नहीं चला ।वैसे तो शादी के 12 वर्ष गुजर गए। बबलू भी 8 साल का हो गया और वे तो अभी से ही बूढ़े दिखने लगे हैं । बढ़ी हुई तोंद और खिचड़ी बाल बबलू के पिता बिंदेश्वर प्रकाश को अपनी उम्र से कहीं ज्यादा बना दिया है ।जब भी वंदना अपने बालों को रंग कर, चेहरे की झुर्रियों को मेकअप से छुपाकर, हरी वाली बनारसी साड़ी पहन निकलती है, तो देखने वालों को बिंदेश्वर प्रकाश और वंदना पिता-पुत्र की जोड़ी लगती है। 42 वर्ष होने के बावजूद वंदना की बदन सुगठित और कसी हुई है। चंचल नैन और मुस्कुराते ओठ जल्द लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती हैं ।पति ने सुख-सुविधा के सारे सामान जुटा दिए हैं, मगर कुछ नहीं दिया तो वह है समय। काम की अधिकता ने सभी संबंधों को अंदर ही अंदर खोखला बना दिया है।

वंदना ने पुकारा, ‘अरे सुनो इधर, क्या नाम है तुम्हारा’ जी ,बनवारी’ बनवारी मोहन। इसी सामने वाली गली के बाएं छोर पर रहता हूं।’ ‘किस क्लास में पढ़ते हो’ वंदना ने बनवारी को गौर से देखते हुए पूछा ।गोरा ,लंबा,  इकहरा शरीर और शर्मीला स्वभाव। ‘जी मैं अभी आइ ए सेकंड ईयर में गया हूं, क्या मैं आप के बगान से एक अमरूद तोड़ लूँ।’ बनवारी ने पूछा। एक क्यों चार, तोड़ लो, दो तुम खा लेना और मुझे दो दे देना।’ वंदना ने मुस्कुराकर कहीं। पता नहीं क्यों यह लड़का मुझे हमेशा आते जाते घूर घूर कर देखता है। देखते समय पलकें एक बार भी नहीं झपकते ।आज तो मुझसे बातें करके बनवारी के पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे हैं ।’यह लीजिए अमरूद’ बनवारी ने वंदना को चौंका दिया। पता नहीं कब आकर बनवारी वंदना के पीछे खड़ा होकर उसे निहार रहा था। ‘अरे इतने सुंदर अमरुद मेरे लिए, तुमने खाया अमरुद’ वंदना ने बनवारी से पूछा ।’जी हां, मैंने खा लिया है और एक अपनी छोटी बहन बिंदु के लिए ले जा रहा हूं’ बनवारी ने कहा ।’तुम तो बहुत ही अच्छे लड़के हो ,अपनी बहन का भी बहुत ख्याल रखते हो’ वंदना ने मुस्कुरा कर कहा। ‘आप भी मुझे बहुत अच्छी लगती है. बहुत बहुत सुंदर और प्यारी’ बनवारी जरा शर्माते हुए कहा। अब बंदना से रहा नहीं गया ।बंगले की इस बड़े बागान में इस समय कोई भी नहीं था। बबलू अपने कमरे में सोया हुआ था। घर का नौकर बाजार सब्जी लाने गया था। वंदना अपने शरीर में एक अजीब सी सिहरन महसूस कर रही थी ।वह अपनी लाज और संकोच को छोड़कर बनवारी का हाथ धीरे से अपने हाथ में ले ली। बनवारी भी वंदना को एकटक  निहार रहा था। वंदना अब अपने आप को रोक न सकी। बनवारी को अपने अंक में भर लिया। चेहरे को चुमकर बनवारी के सिर को अपने सीने के ऊपर रखते वंदना ने कहा ‘बनवारी मैं तुझे चाहती हूं’ बनवारी ने भी वंदना के आंचल में सिमटते हुए कहा ‘आपको भी मैं हरदम देखते रहना चाहता हूं ,मैं सपने में भी आपको ही देखता हूं, आप बिल्कुल मेरी मां के समान लगती है ,वैसे ही बड़ी-बड़ी आंखें, लंबी नाक ,मुस्कुराता चेहरा और गोरे गाल ।
मां को मरे आज 10 साल हो गए ,लेकिन आज फिर लगता है कि मुझे मां का आंचल मिल गया ।’बनवारी भावावेश में ना जाने क्या क्या बोले जा रहा था ।वंदना को अब कुछ सुनाई नहीं दे रही थी। उसे लग रहा था कि अनजाने में वह कितनी बड़ी मूर्खता करने वाली थी ।वह कोई बच्ची भी नहीं है। वह केवल बबलू की ही मां नहीं है, बनवारी और अड़ोस पड़ोस के सभी बच्चों की मां है।  वंदना का ममत्व जाग उठा। धीरे से बनवारी का चेहरा अपनी हथेली में उठाकर वंदना ने चूमा और बनवारी से कहा ‘उठो बनवारी, अब तुम बच्चे नहीं हो ,आइ ए सेकंड ईयर के छात्र हो, मन लगाकर पढ़ो और अपनी मां को अगर खुश देखना चाहते हो, तो कुछ करके दिखाओ और हां अपने छोटे भाई बबलू का भी ध्यान रखना, उसे भूल मत जाना।’ वंदना के नेत्र सजल हो गए ।आज उसे एक और बेटा मिल गया और बनवारी की खुशी का ठिकाना ना था ।आज उसे एक नया रिश्ता मिला। एक ऐसा रिश्ता जो हर रिश्ते से ऊंचा है, हां, आज उसे फिर से मां मिल गई।