झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

कैदी की जेल वापसी

कहते हैं कि मुक्ति के दिन कैदियों को भी भोजन अच्छा नहीं लगता।  सचमुच आज सुबह से बागुन होरो ने कुछ ना खाया था। उसके साथ काम करने वाले कैदी साथियों ने उसके पीठ थपथपाई ,मुबारकबाद दी और साथ खाने का आग्रह किया ।परंतु बागुन ने अन्न का एक दाना भी मुंह में ना लिया। उसका चेहरा फक पड़ गया था ।चेहरे पर रिहा होने की खुशी ना थी, बल्कि एक अज्ञात भय से वह  कांप रहा था । पूरे 10 साल बाद आज वह  नए-नए  चेहरों को देख सकेगा । मोटर गाड़ी, रेल, ठेला, टमटम की आवाज सुन सकेगा, देख सकेगा ।इस छोटी सी दुनिया में बागुन सब कुछ भूल गया था।

 सुबह से लेकर रात तक काम, काम और बस काम ही था उसके पास। कभी जेलर साहब की गाड़ी को साफ करो ,कभी किचन का सामान स्टोर में ढोकर पहुंचाओ, तो कभी जेल के दादा हीरा का बदन दबाओ।
 हां हीरा ने जेलर साहब से कह सुनकर बागुन को रसोईया के काम में लगा दिया था ।उस दिन से बागुन को खाने पीने में कोई दिक्कत नहीं होती थी। दूसरे कैदियों को भले ही पानी वाला दाल और नाम मात्र की सब्जी मिले, परंतु बागुन को खाने पीने की कोई चिंता ना रहती थी ।
परंतु आज के बाद बागुन का क्या होगा? वह कहां रहेगा? क्या खाएगा?
 बागुन को अतीत की वे बातें आज भी बखूबी याद है। काम की तलाश में भटकता बागुन जब दयाल सिंह के पास गया तो उसने दो वक्त की रोटी और ₹50 महीने पर रखा। उसकी उम्र उस समय यही कोई 20 -22 वर्ष था। सुबह से लेकर शाम तक बागुन दयाल सिंह के खेत में काम करता और शाम को 2 मील दूर अपनी झोपड़ी में लौट आता। उसका अपना पेट तो भर जाता था, लेकिन एक छोटी बहन और उसके मां बाप को पानी भात पर ही गुजर करना पड़ता था ।बहन की शादी तो किसी तरह कर दिया, परंतु बागुन कर्ज के बोझ से दब गया और एक दिन पैसे को लेकर हुए झगड़े में बागुन जेल चला आया। मां यह सदमा बर्दाश्त न कर पाई। 10 दिन के बाद ही वह संसार छोड़ दी। पिता पुत्र के आस में पुलिस ,वकील, पत्रकारों के पीछे दौड़ते रहे। इसी आशा में कि बेटा मेरा जेल से जल्दी छूट जाएगा। दो वर्ष बाद पिता ने भी संसार छोड़ दिया।
 आज सुबह जेलर साहब ने पुकारा, बागुन होरो ,तो बागुन ने उपस्थित कर अपनी हाजिरी बनवाई। जेलर साहब ने कहा कि एक स्वयंसेवी संस्था ने एक अभियान चलाया है कि जिस व्यक्ति का कोई जमानतदार नहीं है और जो कई सालों से बिना वजह जेल में है, ऐसे व्यक्तियों को मुक्ति दिलाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। उन्हीं लोगों की कृपा से आज तुम्हें जेल से रिहा किया जा रहा है। यह बात सुनते ही बागुन जेलर साहब के पांव पकड़कर कहा “साहब ,बाहर मुझे कौन काम देगा ?जो आदमी 10 साल जेल खट्टा हो, उसे कौन अपने साथ रखेगा ?मुझे आप यही रहने दीजिए ,हम आपकी सेवा में अपना पूरा जीवन गुजार देंगे। जेल के बाहर तो साहब हम भूखे मर जाएंगे ।यहां तो कम से कम खाना तो मिलता है। बाहर हमें कौन दो रोटी देगा? भीख भी मांगने से हमें कोई ना देगा” और बागुन  गिड़गिड़ाता ही रह गया, लेकिन साहब ने बागुन को जेल में रहने की स्वीकृति ना दी।
 जेलर साहब ने कहा ‘तुम्हें जेल में और रख कर क्या मुझे अपनी नौकरी गंवानी है ,तुम तो अपने डूबे हुए हो, हम सबों को भी ले डूबोगे। बागुन ने गिड़गिड़ा कर कहा ‘साहब आप ही कुछ कीजिए ,आप ही से कुछ हो सकेगा। जिससे हम जेल में रह सके।’ जेलर साहब कुछ पिघले और कहा ‘बागुन होरो तुम एक अच्छे लड़के हो, परंतु मैं तुम्हारी कठिनाई समझता हूं। तुम्हें तो आज जेल से जाना ही होगा,  लेकिन एक तरीका में तुम्हें बता देता हूं ,जिससे तुम फिर से यहां वापस आ जाओगे और तुम्हें मैं फिर से रसोईया रख लूंगा।’ बागुन ने कहा, ‘साहब, आपकी बहुत मेहरबानी। आप मुझे वह तरीका बताइए ,मैं सब कुछ करने के लिए तैयार हूं।’ जेलर साहब ने कहा तुम जेल से छूटने के बाद अपने इलाके के थाने में जाकर सभी पुलिस वालों को गंदी गंदी गालियां दो, तो तुम फिर से यहां वापस पहुंच जाओगे ।दूसरे दिन उसके कैदी साथियों को आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। बागुन होरो सचमुच फिर से “वापस”  जेल आ गया था।