झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

सलाम सा’ब

यूं तो दुआ सलाम की परंपरा पिछले कई युगों से चली आ रही है। भारतीय संस्कृति में अब भी छोटे अपने बड़ों का पांव छूकर आशीर्वाद पाते हैं ,तो हम उम्र एक दूसरे को हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं। वैसे पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी हमारे ऊपर काफी पड़ा है ।अब हम हाथ जोड़ने के स्थान पर आपस में हाथ मिलाते हैं। आजकल हाथ उठाकर भी लोग एक दूसरे का अभिवादन करते हैं और अपना मतलब साधते हैं।

 अगर आपको किसी से कुछ काम निकालना है तो उस व्यक्ति को साहब का दर्जा देते हुए सलाम कीजिए, शायद कुछ काम बन जाए ।भले वह व्यक्ति कोई अधिकारी हो या चपरासी ।कहीं का दादा हो या व्यापारी। अगर आपकी अंतरात्मा उसे साहब कबूल नहीं करती है तो कोई बात नहीं, आप सा’ब बोल कर भी अपना काम चला सकते हैं। आप मानिए या ना मानिए, सलाम सा’ब कहने में वो शक्ति है कि अच्छे से अच्छे लोगों की हालत भी पतली हो जाती है।
 “सलाम सा’ब” का अर्थ मुझे वेल्लोर में मालूम हुआ। सन 1992 की बात है ।मेरे पिताजी का इलाज पीएमसीएच वेल्लोर में चल रहा था। इस कारण मुझे अस्पताल के कई चक्कर लगाने पड़ते थे। कई बार दो मंजिले या तीन मंजिले पर जाना पड़ता था। चुकी सीढ़ी के साथ ही साथ लिफ्ट भी थी ,इसलिए मैं ज्यादातर लिफ्ट का प्रयोग करता था। हर लिफ्ट में लिफ्टमैन भी रहता था। जो हमें निश्चित स्थान तक छोड़ता था। पहले ही दिन वह मोटा तगड़ा लिफ्टमैन ने जो लगभग मेरे पिता की उम्र का था, मुझसे कहा ‘सलाम सा’ब’। मैंने भी अभिवादन का जवाब दिया। उसने बहुत ही सहज ढंग से मुझसे चाय के लिए पैसे मांगे ।मैं एक क्षण के लिए  कर्तव्य विमूढ़ हो गया। फिर एक ₹2 का नोट निकालकर दे दिया। तब तक दूसरी मंजिल पर लिफ्ट रूक चुकी थी। मैं लिफ्ट से बाहर आ गया । फिर कोई 2 घंटे बाद उसी लिस्ट से मैं फिर ऊपर जा रहा था। वही मोटा तगड़ा लिफ्टमैन था। मुझे देख कर वह मुस्कुराया और कहा सलाम सा’ब ।कुछ चाय पानी के लिए सा’ब। मैंने कहा अभी कोई 2 घंटे पहले तुमको मैंने रुपए दिए थे। उसने हंसकर कहा साहब 2 घंटे पहले की बात छोड़िए, वह तो उसी समय खत्म हो गया। मैंने हिसाब लगाया कि इस तरह तो एक ही दिन में 10-15 ₹ खर्च हो जाएंगे। मैंने जब लिफ्टमैन के बारे में पता लगाया, तो मुझे ज्ञात हुआ कि लिफ्टमैन का वेतन ₹1000 से कम नहीं है। लगभग इतना ही वेतन वहां की नर्सों को मिलता है। जो कि दिन-रात रोगियों की सेवा में जुटी रहती है। अगर यह लिफ्टमैन दिन भर में लोगों से मांग कर 30-40₹ इकट्ठा कर लेता है ,तो इस हिसाब से वह महीने में हजार -बारह सौ ₹ वैसे ही कमा लेता होगा और वेतन के हजार ₹ तो है ही। वैसे यह अलग बात है कि अस्पताल की दीवारों में कई स्थानों पर साफ एवं मोटे शब्दों में लिखा है ‘टीपिंग इज स्ट्रिक्टली प्रोहिविटेड’ या टिप देना सख्त मना है ।अगर आप चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों को कुछ देना ही चाहते हैं तो इसके लिए अलग से पेटी बनी हुई है। हर साल इस पेटी से मिली हुई धनराशि को चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों में बराबर बांट दिया जाता है।
 मेरे पिताजी की तबीयत बहुत ही खराब थी। उन्हें मेडिकल इंटेंसिव केयर यूनिट में रखा गया था। हम लोग सभी काफी परेशान थे ।इस लिफ्ट में एक दुबला पतला सा लिफ्टमैन था। चेहरे से वह मुझे नेक जान पड़ा। उस लिफ्टमैन से मैंने कहा -दूसरी मंजिल ।उसने दरवाजा लगाया और दो नंबर वाली बटन को दबा दिया। फिर घूम कर मेरी और कहा- ‘सलाम सा’ब’ ।———-
आदमी की जिंदगी में कई ऐसी घड़ियां आती है, जब आदमी डर जाता है। मेरी भी जिंदगी में कई ऐसी घड़ियां आई, जब मैं डर गया। भयभीत हो गया। मेरे पिताजी अंतिम सांस ले रहे थे। मैं एक अज्ञात भय से पीड़ित था । मुझे लग रहा था कि पिताजी की सांसो का तार अब टूटा ,तब टूटा। तो दूसरी ओर मुझे लिफ्ट में चढ़ने में भी घबराहट होती थी कि कहीं लिफ्टमैन फिर से ना कह उठे– ‘सलाम सा’ब’ ।