झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

समाज और सिंदूर का रिश्ता

“शांति” यही नाम था उस औरत का। सुबह आठ बजे से लेकर शाम सात बजे तक बाजार के आटा चक्की में वह आपको मिल जाएगी। चक्की के पास मुख्य रूप से वह गेहूं फटकने का काम करती है। वैसे चक्की में पीसने में आने वाले हर वस्तु की सफाई वह करती है ,पर यह काम वह आज से नहीं बल्कि पिछले 20 वर्षों से कर रही है। अभी अगर शांति को कोई देखे, तो यह बात जरूर समझ जाएगा कि आज से 20 वर्ष पहले शांति कितनी सुंदर और जवान रही होगी। सचमुच इस उम्र में भी शांति का गोरा चेहरा खिला रहता है। खासकर उसकी मांग का सिंदूर उसके चेहरे में और भी निखार ला देता है। पर है वह बहुत बातूनी। दरअसल वह बातचीत करके ग्राहकों से एक रिश्ता जोड़ लेती है ताकि ग्राहक दोबारा भी उसी से ही गेहूं साफ करने के लिए दें। मुझसे कहेगी, ‘राज बाबू, आप अपनी शादी में मुझे जरूर बुलाएगा और हां आपकी शादी में मेरे को एक बढ़िया साड़ी चाहिए’, मैं कहता, ठीक है साड़ी तो दूंगा ही, परंतु घर का सब काम भी तुम्हें संभालना पड़ेगा। इस पर शांति खुशी से झूमते हुए बोलती है ‘राज बाबू, हम एक सप्ताह पहले से ही आपके यहां काम करना शुरू कर देंगे। सबसे पहले घर की सफाई भी तो करनी होगी।’ मैंने कहा ठीक है मेरी शादी में अपने पति और बच्चों को भी लाना। मेरी बात सुनकर शांति थोड़ी गंभीर हो गई ।फिर कहा, ‘मेरे बच्चे तो है नहीं। एक साथ काम करने वाली की बेटी को ही मैं अपनी लड़की समझती हूं। जब मैं थक कर घर लौटती हूं तो वही मेरा भी खाना बना देती है और मेरा पति तो है नहीं।’ मैं चौक गया। पर तुम तो मांग में अभी भी सिंदूर लगाई हुई हो ।मैं यह बात कह कर उसके सिंदूर भरी मांग की ओर गौर से देखा। वह जमाने भर का अनुभव अपने चेहरे पर लाकर कहीं, ‘राज बाबू, मेरा आदमी मुझे बीस-बाइस वर्ष पहले ही छोड़ दिया और एक दूसरी लड़की का हाथ थाम लिया। बाद में सुना की किसी बीमारी से वह मर गया ।मैं उसी समय से बाजार में गेहूं साफ करने का काम कर रही हूं। उस समय से लेकर आज तक कई लोगों की बुरी नजर मेरे ऊपर पड़ी ।सच मानो राज बाबू ,इस उम्र में भी कई लोग मेरे ऊपर बुरी नजर डालते हैं। परंतु मांग का यह सिंदूर ,किसी रक्षा कवच की भांति सभी बुरे नजरों से मेरी रक्षा कर करता है।’ शांति की आवाज सुनकर समाज और सिंदूर का यह रिश्ता मेरी समझ में आ गया। मैंने फिर सिर उठाकर शांति का चेहरा देखा। वह गेहूं फटकने में व्यस्त थी और उसके मांग में सिंदूर चमक रहा था।