झारखण्ड वाणी

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जांच रिपोर्ट “एचआईवी पॉजिटिव या नेगेटिव”

चंदा गुमसुम बैठी है। आज 5 वर्षों बाद उसे उपभोक्ता न्यायालय से जीत मिली है। न्यायालय ने डॉक्टर सुरेश प्रसाद को कसूरवार ठहराते हुए उसे ₹15000 का अर्थदंड लगाई है। यह रकम चंदा के खाते में 1 सप्ताह के भीतर जमा करनी है। नहीं तो 2 वर्षों के लिए जेल जाना पड़ेगा। साथ ही न्यायाधीश ने डॉक्टर सुरेश प्रसाद को अपने कार्य को सही ढंग से करने की चेतावनी दी थी, ताकि दोबारा ऐसी गलती ना हो। उपभोक्ता न्यायालय के इस फैसले से चंदा के वकील रामचंद्र सहाय थोड़ी खुश तो जरूर हुए क्योंकि उन्होंने मुकदमा जीत कर सफलता पाई और डॉक्टर सुरेश प्रसाद को अर्थदंड लगा। लेकिन जितने दिनों बाद फैसला आया और अर्थदंड जितने रुपयों की लगी ,उससे रामचंद्र सहाय है संतुष्ट ना थे। चंदा की भी समझ में यह नहीं आ रहा था कि वह इस फैसले से खुश हो या रोए क्योंकि जिस डॉक्टर की एक छोटी सी लापरवाही ने उसकी दुनिया बर्बाद कर दी, हंसते खेलते घर में आग लगा दी, उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी ,उसे 5 वर्ष बाद सजा भी मिली तो मात्र ₹15000 का अर्थदंड ।अगर इसी को न्याय मिलना कहा जाता है ,तो वह 5 वर्ष तक बेकार ही उपभोक्ता न्यायालय का चक्कर काटती रही। मात्र ₹15000 से उसकी जिंदगी संवर जाएगी ।इतना खर्च तो अब 5 वर्षों में वकील, आने जाने का किराया, कागज पत्तर फोटो कॉपी, खाने खिलाने में खर्च कर दी होगी। वकील राम चंद्र सहाय ने चंदा को दिलासा दिलाते हुए कहा आप मायूस ना हो, हम इससे ऊपर के कोर्ट में अपील करेंगे। आपको कम से कम ₹50000 का मुआवजा जरूर दिलवाकर रहेंगे। चंदा उसी तरह गुमसुम बैठे रही। वकील साहब दिलासा देकर जा चुके थे। पति राजधर अभी तक ऑफिस से नहीं लौटे थे। घर में अकेली बैठी हुई थी। घर बिना बच्चे का कैसा सूना सूना लगता है ।पता नहीं इस हादसे से वह कभी उबर पाएगी कि नहीं ?सुने घर में कभी बच्चों की किलकारी गूंजेगी कि नहीं ?अब तो इन सब बातों से डर लगने लगा है। जिंदगी में अब वह रौनक भी नहीं रही ।किसी तरह जीवन काट रही है ।शायद ही कोई चमत्कार हो क्योंकि जिसे कोई नहीं पूछता उसे मौत भी नहीं पूछती।

 चंदा अपने अतीत में खो गई। बचपन से वह पढ़ने लिखने और खेलकूद में तेज थी ।स्वभाव से मिलनसार होने के कारण सभी जगह उसकी पैठ थी। किसी से भी दोस्ती बना लेना और किसी से भी रिश्ते जोड़ लेना, उसके स्वभाव के अनुकूल ही था ।मोहल्ले के लड़कियों के साथ लंगडी खेलना, लगोरी खेलना, छुपा छुपी खेलना, तो लड़कों के साथ गुल्ली डंडा खेलना, लट्टू नचाना, पतंग उड़ाना, क्रिकेट खेलना, उसके जीवन का एक हिस्सा था। मोहल्ले का कोई भी लड़का कभी भी उससे छेड़छाड़ नहीं किया, लेकिन कुछ लड़के उसे ललचाए नजरों से, तो कुछ प्यार भरे अंदाज से टकटकी लगाए रहते थे। उन्हीं लड़कों में से राजधर भी एक था। सब उसे राज कहकर बुलाते थे। ऊपर से गंभीर दिखने वाला राज अंदर से एकदम शर्मिला और लड़कियों के मामले में डरपोक था। कभी किसी लड़की से बात भी करता तो आंखों में आंखें डाल कर नहीं, बल्कि इधर-उधर देखकर, नजरें चुराकर बातें करता। उसकी इस अदा पर लड़कियां खूब ठहाका लगाती। धीरे-धीरे चंदा को लगने लगा कि राज हर पल उसी की ओर टकटकी लगाए रहता है। हर वक्त उसी का इंतजार करते रहता है। यह बात मोहल्ले के लड़के और लड़कियां भी महसूस कर रहे थे ।वह राज को एक दोस्त ,साथी के अलावा और कुछ भी नहीं समझती थी। राज के लिए क्या उसे मोहल्ले के किसी लड़कों के लिए भी कोई ऐसी वैसी बातें मन में ना थी ।जहां लड़के उसे देखकर अब कानाफूसी करने लगे ,वहीं उसकी सहेलियां भी उसकी  चुटकीयां लेने लगी ।उम्र का तकाजा भी था। इसलिए सभी के माता-पिता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी लड़के लड़कियों पर अपनी नजर रखे हुए थे। इसी बीच चंदा के पिता का स्थानांतरण हो गया और अचानक ही सभी साथियों से दूर हो गई। कुछ दिनों तक आस पड़ोस के सभी लोगों की याद आती रही। खासकर राज की याद अब कुछ ज्यादा आने लगी थी। उसे याद कर मन कैसा कैसा होने लगता, लेकिन समय की परत स्मृति के हर रंग पर चढ़ जाती है और फिर कुछ भी याद नहीं रहता।
 चंदा ने स्नातक की डिग्री हासिल कर ली थी ।साथ ही संगीत में भी वह मास्टर डिग्री ले चुकी थी। पिताजी शादी के लिए दौड़-धूप कर रहे थे। सगे संबंधियों की ओर से कई रिश्ते भी आ रहे थे। अचानक पिताजी ने एक दिन चंदा को एक लड़के का फोटो दिखा कर पूछा, ‘इसे तुम पहचानती हो?’ चंदा ने कुछ देर तक फोटो को देखा ,आंखें कुछ पहचानी सी लगी, लेकिन घनी मूंछ और हल्की दाढ़ी वाले युवक को पहचान ना सकी। तब पिताजी ने बताया कि वह अपने पुराने मोहल्ले का रहने वाला राजधर है ।सरकारी विभाग में क्लर्क है ।दोनों परिवार जब एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं ,तो फिर क्यों नहीं इस जानी पहचानी परिवार में रिश्ता किया जाए। दहेज की कोई बात ना थी। लड़का को लड़की बचपन से ही पसंद थी। लड़की के लिए लड़का नौकरी पेशा वाला था और लड़की के पिता ने यथाशक्ति अपनी बेटी और दामाद को घर बसाने के हर आवश्यक समान दिए ।इससे लड़के के माता-पिता भी खुश थे ।बारातियों का भी भव्य स्वागत हुआ और देखते देखते पूरी ,शिमला ,गोवा का त्रिवेणी चक्कर लगाते हुए हनीमून का सफर भी दोनों ने मस्ती में पूरा किया। घर में नए मेहमान आने की सूचना ने सभी को भावविभोर कर दिया।
 राज की मां ने बहू से कहा, ‘जा बहू किसी अच्छे डॉक्टर से अपना चेकअप करा ले, राज अभी आता ही होगा,जल्दी से तैयार हो जा’। चंदा भी यही चाह रही थी। राज के साथ उसने एक गायनोकोलॉजिस्ट से अपना चेकअप कराइ। डॉक्टर ने होमो ग्लोबिन ,शूगर, ब्लड ग्रुप, यूरिन सहित कई टेस्ट लिख दिए। राज के साथ उसने एक पैथोलॉजी में जाकर सभी टेस्ट करवाए ।डॉक्टर ने सभी टेस्ट रिपोर्ट देखी। अचानक एक रिपोर्ट देखकर वो उछल पड़ी। राज ने पूछा क्या ,हुआ डॉक्टर ?डॉक्टर ने बताया कि वैसे तो ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट नॉर्मल है ,लेकिन एचआईवी की रिपोर्ट पॉजिटिव है ।ऐसा कीजिए राजधर जी ,एचआईवी की जांच आप भी अपना करवा लीजिए ।डॉक्टर की बात सुनकर चंदा और राज दोनों के होश उड़ गए ।घर में जब यह बात राज के माता-पिता को मालूम हुई तो उन्हें भी जोर का झटका लगा। अब सबकी नजर राज पर लगी हुई थी। तनाव और परेशानियों के कारण चंदा और राज रात भर सो नहीं सके। दूसरे दिन राजधर ने अपना एचआईवी टेस्ट कराया, लेकिन उसका रिपोर्ट नेगेटिव आया। इसी एक रिपोर्ट ने चंदा की दुनिया बर्बाद कर दी।
 राजभर के माता पिता यहां तक कि खुद राज भी चंदा को शक की नजरों से देखने लगे। वह पूछने लगे ,बता शादी से पहले तुम्हारा किसके किसके साथ संबंध था ?चंदा रोती गिड़गिड़ाटी रही ।मैं निर्दोष हूं ।पता नहीं कैसे पॉजिटिव रिपोर्ट आ गया ।अंत में चंदा के माता पिता को बेटी ले जाने के लिए खबर किया गया ।चंदा के पिता आए। जब बेटी के एचआईवी पॉजिटिव होने की बात पता चली, तो पिता ने भी दुत्कारते हुए कहा, ‘बेटी यह तुमने क्या कर डाला था?’ पिता का विश्वास भी बेटी के ऊपर छूट गया और उसे अपने साथ ले जाने से इंकार कर दिया। चंदा का रोते-रोते बुरा हाल था। उसने खाना पीना भी छोड़ दिया। पति और सास ससुर ने भी घृणा से मुंह फेर लिए। आस-पड़ोस और समाज में जल्दी यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई ।अड़ोस पड़ोस के लोग चंदा की सास ससुर को तरह-तरह की सलाह देने लगे ।किसी ने उसे घर से निकालने की ,तो किसी ने राजधर की दूसरी शादी की सलाह देने लगे। चंदा के मामा को जब सारी बातें मालूम हुई ,तो चंदा को विदा कराकर अपने घर ले आए। मामा को अपनी भगिनी पर पूरा विश्वास था। उसने चंदा की जांच सरकारी अस्पताल और एक विख्यात पैथोलॉजी में कराई ।दोनों जगह रिपोर्ट एचआईवी नेगेटिव आई ।चंदा अवाक रह गई ।एक गलत रिपोर्ट ने उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी थी । इस बीच समय से काफी पहले चंदा ने मृत बच्चे को जन्म दी। समय से नहीं खाने पीने और मानसिक हादसे का कुप्रभाव बच्चा पर पड़ा था ।पति और सास ससुर ने तो पहले ही मुंह फेर लिया था। आने वाले बच्चे की जो आस थी, वह भी खत्म हो गई। चंदा दुखी होकर आत्महत्या करने की कोशिश की, लेकिन मामा मामी ने उसे बचा लिया ।जब ससुराल वालों को सभी बातों का पता चला ,तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। चंदा के माता-पिता को भी संतोष हुआ कि मेरी बेटी निर्दोष है। राजधर ने आकर चंदा से माफी मांगी और उसे अपने साथ वापस घर ले गया। सास ससुर ने भी हिम्मत दी। चंदा अंदर से पूरी तरह टूट चुकी थी। पति ने गलत रिपोर्ट देने वाले डॉक्टर पर उपभोक्ता न्यायालय में केस किया। 5 वर्षों बाद जीत भी गई, लेकिन डॉक्टर की एक छोटी सी लापरवाही से बनी जांच रिपोर्ट ने उसके पूरे परिवार को जो जख्म दिया है ,वह क्या कभी भर पाएगा??