झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

जिन्दा इक इन्सान हो

नए साल में सकल विश्व की पीड़ा का अवसान हो
मिले कहीं विपरीत सोच तो उसका भी सम्मान हो

इस जीवन का मूल प्रेम है दुनिया चलती प्रेम से
प्रेम-सुधा बरसे हर दिल में ऐसा नित भगवान हो

सबके घर में दुख से लड़के ही खुशियाँ आ पातीं हैं
मिल के कोशिश अगर करें तो हर चेहरे मुस्कान हो

मानव और पशु की चर्या लगभग एक समान है
बस विवेक से श्रेष्ठ है मानव सबको इसका ज्ञान हो

कोशिश में है सुमन हमेशा ऊँच नीच का भेद मिटे
आदम-रूप में सबके भीतर जिन्दा इक इन्सान हो

*लेकिन अप्पन गाम जगाबू*

रहू कतहु आ कतहु कमाबू।
लेकिन अप्पन गाम जगाबू।।

पढ़ल लिखल सब बाहर गेल।
सचमुच गाम पिछड़िये गेल।
अक्सर बोली सुनबय टेढ़।
काज बिना बस गप्पक ढेर।
अनुशासन केर घोर अभाव।
टेढ़-बोलिया केर बढ़ल प्रभाव।
कोशिश करू, विराम लगाबू।
लेकिन अप्पन —–

मरनी हरनी, व्याहक भोज।
ओहि पर चर्चा सुनबै रोज।
बहुत लोक केँ छन्हिं अवकाश।
झुण्ड बना कऽ खेलथि ताश।
महिला सभहक हाल, बेहाल।
कम्मे लोक रखय छथि ख्याल।
मिथिला, मैथिल नाम बचाबू।
लेकिन अप्पन —–

सुनल, सुनाओल नहि छी बात।
भोगल सत्य, हृदय आघात।
गाम बचत तऽ बचतय देश।
संस्कारित भेटत परिवेश।
मिथिला संस्कृति केर पहचान।
डेग डेग पर पसरल ज्ञान।
ज्ञान सुमन अविराम बढ़ाबू।
लेकिन अप्पन —–

*गीत जिनगीक रोज गाबय छी*

किछ पाँति लिखय छी काटय छी
गीत जिनगीक रोज गाबय छी

खेल नेनपन मे जे सीखेने छल
आब हुनके एखन खेलाबय छी

भीड़ चहुँओर अछि मनुक्खक के
लोक अप्पन ओहि मे ताकय छी

ज्ञान एत्तऽ कहू छै कम किनका
तैयो जबरन हमहुँ सुनाबय छी

चोरि घूसखोरी कऽ धनिक भेलाऽ
हुनके जयकार बस लगाबय छी

मेल आपस के गेल खटाई मे
तैयो हम नित कलह बढ़ाबय छी

आब कत्तेक दिना सुमन सूतब
आबिकय रोज हम जगाबय छी

श्यामल सुमन