बेच रहे क्यों टुकड़े टुकड़े?
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राजन्! जनता आज हताश।
बेच रहे क्यों टुकड़े टुकड़े, लोगों का विश्वास।।
राजन्! जनता —–
राजा की पहले भी सबने, देखी है मनमानी।
अहंकार में भूल गए जो, सत्ता आनी जानी।
परेशान लोगों को तुमसे, आस लगी थी खास।।
राजन्! जनता —–
बाहर मीठे बोले तुम्हारे, अंदर क्या बतलाओ?
पहले के राजा और तुममें, अन्तर क्या बतलाओ?
आमजनों के घर में फाका, तेरे घर में रास।।
राजन्! जनता —–
भूल गए हो तुम क्यों प्यारे, क्या है फर्ज तुम्हारा?
काम देख तू इतिहासों में, क्या क्या दर्ज तुम्हारा?
तेरे जाने से मुमकिन है, बुझे सुमन की प्यास।।
राजन्! जनता —–
श्यामल सुमन
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