यह मुर्दों की बस्ती है
****************
व्यर्थ यहाँ क्यों बिगुल बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है
कौवे आते, राग सुनाते. यह मुर्दों की बस्ती है
यूँ भी शेर बचे हैं कितने, बचे हुए बीमार अभी
राजा गीदड़ देश चलाते, यह मुर्दों की बस्ती है
गिद्धों की अब निकल पड़ी है, वे दरबार सजाते हैं
बिना रोक वे धूम मचाते, यह मुर्दों की बस्ती है
साँप, नेवले की गलबाँही, देख सभी हैं अचरज में
अब भैंसे भी बीन बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है
दाने लूट लिए चूहे सब समाचार पढ़कर रोते
बेजुबान पर दोष लगाते, यह मुर्दों की बस्ती है
सभी चीटियाँ बिखर गयीं हैं, अलग अलग अब टोली में
बाकी सब जिसको भरमाते, यह मुर्दों की बस्ती है
हैं सफेद अब सारे हाथी, बगुले काले सभी हुए
बचे हुए को सुमन जगाते, यह मुर्दों की बस्ती है
श्यामल सुमन
सम्बंधित समाचार
छह अगस्त मित्रता दिवस के अवसर पर प्रवीण सिंह स्मृति सेवा संस्थान के द्वारा भगवती इन्कलेब में होने वाले रक्तदान शिविर को ऐतिहासिक बनाने को लेकर एक अहम बैठक हुई
*जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने पूर्वी सिंहभूम जिला अवस्थित जमशेदपुर कॉपरेटिव लॉ कॉलेज को लॉ कॉलेज की मान्यता प्रदान करने संबंधी मामला विधानसभा में उठाया *
*महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा जयपुर ‘सी-20’ परिषद में आध्यात्मिक शोध प्रस्तुत सफल जीवन के लिए सात्त्विक जीवनशैली आवश्यक – शॉन क्लार्क*