झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

शर्त

लगाओ शर्त, मैं बिना रुके इस तालाब के एक तरफ से दूसरी तरफ पार कर जाऊंगा। मनोज ने उत्साह भरे शब्दों में अपने साथियों से कहा ।अगर मैं एक बार में पार नहीं कर सका, तो एक ₹100 की पार्टी मेरी ओर से और अगर शर्त जीत गया तो मुझे एक ₹100 तुम लोगों को मिलकर देना होगा और देखते-देखते मनोज तालाब में छलांग लगा दिया। तालाब के बीच में काफी गहराई थी ।लगभग डेढ़ बांस नीचे जमीन का तल था ।वहां का पानी हरा नीला रंग का दिखाई पड़ता था। काफी अंदर दूर तक पानी के नीचे साफ-साफ शीशे के समान झलकता था। उसी स्थान पर मनोज डूबकिया खाने लगा। उसका दम जवाब देने लगा था। वह काफी बहादुरी के साथ पानी में हाथ पहुंच चला रहा था। गोलू, श्याम, सुरेश, कुंदन ,जयंत सभी दोस्त ये दृश्य को देख रहे थे। अचानक मनोज डुबकिया खाने लगा। सभी दोस्त हल्ला करने लगे। बस्ती के आस-पड़ोस के घरों से लोगों ने दौड़ लगा दी। मनोज को डूबता देख पड़ोस के रतन बाबू घर से रस्सी लाने दौड़े ।कुछ लोग तालाब में कूदकर मनोज को बचाना भी चाहते थे, लेकिन जहां मनोज डुबकियां खा रहा था ,वहां की गहराई से सभी लोग परिचित थे।  किसी का साहस नहीं था ,वहां पहुंचकर मनोज को बचा ले और दूसरी बात, जो एकाध लोग कपड़ा खोलकर तालाब में कूदने की तैयारी कर रहे थे, उसे बड़े बुजुर्गों ने जाने नहीं दिया क्योंकि जो भी इस बड़े तालाब के बीच तक पहुंचता है ,वह थक कर इतना चूर हो जाता है कि फिर वापस लौट नहीं पाता और जल में ही उसकी समाधि हो जाती है। तब तक रतन बाबू घर से मोटा रस्सा लेकर पहुंच गए ।तालाब के चारों ओर काफी भीड़ लग चुकी थी ।इधर मनोज धैर्य पूर्वक हाथ को मारते हुए तालाब का बीच वाला भाग पार कर चुका था। अब वह तेजी से किनारे की ओर बढ़ रहा था। लगातार 45 मिनट तैरने के बाद मनोज तालाब के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की। वह थक कर चूर हो गया था ।हालांकि उसके चेहरे से आत्मविश्वास की लकीरें साफ दिखाई पड़ रही थी, लेकिन उसके दोस्तों का बुरा हाल था। सभी का कलेजा बुरी तरह से धड़क रहा था। अभी कुछ हो जाता ,तो वे लोग अपना मुंह किसको दिखा पाते ?इसलिए किनारे पर भी मनोज की जय कार किसी ने लगाई और ना कोई बढ़कर शाबाशी दिया। बाहर निकलते ही सभी दोस्त उससे लिपट गए ।गोलू और सुरेश तो मनोज से लिपट कर रोने लगे ।कई लोगों ने तो देवी मां के मंदिर में प्रसाद चढ़ाने से लेकर सत्यनारायण भगवान की पूजा तक की मन्नत कर डाली। जब गांव वालों को पता चला कि दोस्तों के बीच एक ₹100 की शर्त लगी थी तालाब पार करने को लेकर ,तो वे लोग मनोज सहित सभी दोस्तों पर खूब बिगड़े। यह जान की पड़ी है और चले हैं शर्त लगाने। मां-बाप ने कितने परिश्रम से पाल पोस कर बड़ा किया और यह लोग जान प्राण की कीमत कुछ समझते नहीं। बात आई ,गई, हो गई ।

मधुबनी जिले के मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर एक गांव है रामपुर। यहां की आबादी मुश्किल से 500 लोगों के आसपास होगी। इस गांव में एक मिडिल स्कूल है, थोड़ी दूर पर बगल के गांव में हाई स्कूल है, मैट्रिक से आगे पढ़ाई करने के लिए दरभंगा जाना पड़ता है ।आस-पास कोई कॉलेज है नहीं। जहां एकाध कॉलेज है, अभी वहां रहकर पढ़ाई करने की व्यवस्था नहीं है ।रामपुर के लोग अपनी जरूरत के सामान ज्यादातर खुद ही पैदा कर लेते हैं ।नमक ,कपड़ा, किताब कॉपी जैसी वस्तुओं के लिए वह बाजार जाते थे। पूरे गांव में एक बड़ा तालाब और एक मध्यम आकार का तालाब ,एक चापाकल, 4-5 कुएं ‘थोड़ी दूर पर एक नहर थी ।गांव में एक मिडिल स्कूल, एक देवी मां का मंदिर , एक छोटा सा बाजार है ।जहां से आपको तांगा और रिक्शा की सवारी मिलती ,जो आपको 15 किलोमीटर दूर बस अड्डा और रेलवे स्टेशन तक पहुंचा सकता है। इस शांत गांव में वैसे मनोरंजन के कोई साधन नहीं थे ,लेकिन यहां की युवा कुछ-कुछ कार्यक्रम आयोजित कर अपने साथ दूसरों का भी मनोरंजन करते। गांव का जो सबसे युवा वर्ग होता, वह दूसरे गांव के हाई स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद दरभंगा आगे की पढ़ाई करने को चला जाता है ।यही क्रम पिछले कई वर्षों से चल रहा था। वैसे इस गांव के बच्चे पढ़ने लिखने में काफी अच्छे थे ।वही शरारत करने में भी काफी आगे थे ।
अभी पिछले दिनों की बात है सुरेश और जयंत ने सभी को चढ़ा दिया कि भैंसा दौड़ आयोजित किया जाय। कुछ दोस्तों ने विरोध भी किया कि घोड़ा और ऊंट की दौड़ होती है। भैंसा पर बैठकर कौन दौड़ लगाएगा और वैसे भी भैंसा यमराज की सवारी है ।जब इस दौड़ में किसी ने भी हिम्मत नहीं दिखाई ,तो मनोज ने कहा लगाओ एक ₹100 की शर्त ,मैं दौड़ में भाग लूंगा ।सभी लोग मना करते रह गए और मनोज ने सुनवा के घर से भैंसा लाकर पहले बड़ी मुश्किल से उसके नाक को रस्सी से कसा और भैंसा के ऊपर सवार हो गया। गांव भर के लोग इन लोगों की बेवकूफी देखने के लिए जमा हो गए क्योंकि गांव में लड़के लोग इसी तरह के मनोरंजन कार्यक्रमों का आयोजन करते थे। वह भैंसा एक बार मनोज को पीट से जोर से उछाल दिया, मनोज फुर्ती के साथ भैंसा की पीठ पर पकड़ बनाए रखा ।हालांकि चार पांच बार वह नीचे भी फेंका गया ,लेकिन उसी फुर्ती के साथ वह फिर भैंसा की पीठ पर सवार हो गया ।सभी लोग हंस हंस कर लोटपोट हो गए। मनोज पढ़ने में जितना होशियार था, उतना ही वह शरारती और हिम्मत वाला लड़का था। गांव में रहकर भी वह ओझा भूत प्रेत जैसे बातों पर विश्वास नहीं करता था।
 गांव की सीमा पर ही स्थानीय श्मशान घाट और कब्रिस्तान भी था। सूर्य ढलने के बाद उस रास्ते से कोई भी नहीं जाता था। बांस के घने झुरमुट, जुगनू की टीम टीम, सियार की दिल दहलाने वाली आवाज और अचानक पक्षियों का पंख फड़फड़ाना ,अच्छे अच्छे लोगों की हालत बिगाड़ देने के लिए काफी था। दिन के समय गाय भैंस चराने वाले उस रास्ते से जाते थे या फिर किसी की मौत हो जाने पर सभी लोग उस बीहड़ में प्रवेश करते थे।
एक दिन की बात है। मनोज ,जयंत ,गोलू, सुरेश और श्याम विद्यालय से घर की ओर लौट रहे थे। इस पर गोलू ने कहा -यार मनोज ,तुम्हें भूत प्रेत से डर नहीं लगता, मनोज ने अपनी धोती को ठीक करते हुए कहा- नहीं ;यार यह सब मन का वहम है। भूत प्रेत कुछ नहीं होता। बचपन से ही नानी दादी की कहानियों में भूत प्रेत का जिक्र सुनकर हमारे मन का भूत हमारे अंदर बैठ गया है। अच्छा बताओ डर लगने पर हनुमान चालीसा क्यों पढ़ते हो या फिर भगवान का नाम क्यों लेते हो। इसलिए ना कि भगवान का नाम लेने से भूत प्रेत पास नहीं फटकेगा और मन का भूत बाहर नहीं निकल पाएगा ।इस पर सुरेश ने मनोज से कहा कि अगर इतना बहादुर बनते हो तो रात के ठीक 12:00 बजे श्मशान घाट से घूम कर आ जाओ ,तभी हम लोगों को तुम्हारी बात पर विश्वास होगा। मनोज ने कहा लगाओ एक ₹100 की शर्त। तुम लोग जितने समय में कहोगे ,उतने बजे हम श्मशान और कब्रिस्तान से घूम कर आ जाऊंगा। इस पर जयंत ने कहा कि यह कैसे पता चलेगा कि तुम सही में शमशान से घूम कर आ रहे हो ?अच्छा यह बांस का खूंटा पकड़ो, इसे रात ठीक 12:00 बजे श्मशान में गाड़ कर आना, तब हम मानेंगे। मनोज तैयार हो गया ।
एक अमावस की रात में सभी दोस्त एक स्थान पर इकट्ठा हुए। किसी के पास टॉर्च था, तो कोई लालटेन लेकर आया था ,बीच-बीच में सियार की हुआ हुआ रात को और डरावनी एवं रहस्यमय बना रही थी। मनोज धोती कुर्ता पहने और कंधे पर गमछा लटकाए एक हाथ में मिट्टी खोदने के लिए सब्बल और दूसरे हाथ में बांस का खुटा लेकर शमशान की ओर आगे बढ़ा ।सभी लोग उसे देख रहे थे ।वैसे मनोज भी मन ही मन थोड़ा घबरा रहा था ।अंधेरी रात में हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था ।जुगनू की टीम टीम और पेड़ और बांस के झुरमुट में विभिन्न प्रकार बनती बिगड़ती रहस्यमई आकृति देखकर उसका मन घबरा रहा था। ईश्वर का नाम लेकर वह शमशान के बीचो-बीच सब्बल से गड्ढा खोदने लगा। इसी बीच कहीं पक्षी की चिखने जैसी आवाज आई। मनोज घबरा गया। वह खुटा डालकर जल्दी-जल्दी गड्ढे में मिट्टी भरने लगा। मिट्टी भरने के बाद जब वह उठने लगा तो उसे लगा कोई उसे जबरदस्ती नीचे बैठा रहा है। दोबारा तिबारा वह उठने की कोशिश की, लेकिन नीचे से कोई खींच रहा था। मनोज की धड़कन तेज हो गई और अचानक वह गिर पड़ा। काफी रात होने के बावजूद भी मनोज को वापस ना आया देखकर सभी दोस्त चिंतित हुए। पूरे गांव में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। तड़के सुबह सभी लोग हाथ में लालटेन टॉर्च भाला फरसा हथियार लेकर शमशान की ओर चले। वहां पहुंचते-पहुंचते सुबह हो गई थी। सभी लोगों ने देखा कि सामने खुटा गड़ा है। मिट्टी डालने की हड़बड़ी में उसने धोती का एक किनारा गड्ढे के अंदर गाड़ दिया है। मनोज की आंखें और मुंह खुली पड़ी है। उसके शरीर में अब सांसे नहीं है ।सभी लोग समझ गए कि खूटे के साथ धोती का किनारा अंधेरी रात में घुस जाने के कारण उसे भूत प्रेत का वाहन हुआ होगा ,जिसे उसने कभी माना नहीं था। उसी में उसकी जान गई ।सभी लोग आंसू भरी आंखों से एक दूसरे को देख रहे थे ।अब कौन कहेगा –  ‘शर्त लगा लो एक ₹100 का’।