शब्द नर्तकी उलट के देखो
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जी कर जीवन-संघर्षों में, नव-जीवन बन जाता है।
शब्द नर्तकी उलट के देखो, वो कीर्तन बन जाता है।
जंगल, पर्वत, धरती, नदियाँ और समन्दर का पानी।
सज्जन-दुर्जन, मूरख के सँग अक्सर मिलते हैं ज्ञानी।
इक सीमा में जीना मरना, वही वतन बन जाता है।
शब्द नर्तकी उलट के देखो
जीवन से लड़ना है जिसको, उसने रोना छोड़ दिया।
जिसके दिल में सोना चाहत, उसने सोना छोड़ दिया।
चिन्तन नेक अगर अंधे का, वही नयन बन जाता है।
शब्द नर्तकी उलट के देखो
कर्मों से क्यों नीचे जाना, है चढ़ने को सीढ़ी भी।
वर्तमान के साथ बचाना, हमको अगली पीढ़ी भी।
दर्द चुभन का सहकर खिलता, वही सुमन बन जाता है।शब्द नर्तकी उलट के देखो
श्यामल सुमन
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