झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

नाटक का यश खाक

नाटक का यश खाक
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श्रम से हासिल यश टिके, नाटक का यश खाक।
अगर सुमन चालाक तू, दुनिया भी चालाक।।

कुछ दिन नाटक कर कहीं, मिले किसी से प्रीत।
कब छिन जाए क्या पता, व्यर्थ भरम यह जीत।।

नकलीपन से ही सदा, मरता है व्यक्तित्व।
जीते जी खुद देखता, संकट में अस्तित्व।।

परिवर्तित होते रहें, हम सबके हालात।
अपनेपन के बोध का, मरे नहीं जज्बात।।

केवल शब्दों से नहीं, मुमकिन असली प्यार।
हरदम दिखना चाहिए, जीवन में व्यवहार।।

अपना भी कहते मगर, शक भी करते लोग।
सचमुच ऐसे लोग हैं, इक संक्रामक रोग।।

कहते जो चालाक हैं, खुद को नित नादान।
झाँक गौर से आँख में, तब सच की पहचान।।

श्यामल सुमन