ये मत समझो सिर्फ आपको, गीत सुनाने आए हैं।
लोक-जागरण प्रण आजीवन, लोक जगाने आए हैं।।
आपस में बतियाते हम सब, जंग को माया कहते हैं।
पर चुपके से माया धन की, अर्जन करते रहते हैं।
हम शब्दों के बने आईना, को दिखलाने आए हैं।
लोक-जागरण प्रण आजीवन —–
जरा सोचना नींव का पत्थर, अपने घर का कौन रखा।
देख बेबसी उनकी फिर भी, हमने खुद को मौन रखा।
आनी जानी इस दुनिया का, बोध कराने आए हैं।
लोक-जागरण प्रण आजीवन —–
जीने का ढंग अलग सुमन पर, इक समान हम दिखते हैं।
नहीं बराबर सुख सुविधा क्यों, इस अन्तर को लिखते हैं।
इस कारण से जंग धरा पर, उसे मिटाने आए हैं।
लोक-जागरण प्रण आजीवन —–
जीने का ढंग अलग सुमन पर, इक समान हम दिखते हैं।
नहीं बराबर सुख सुविधा क्यों, इस अन्तर को लिखते हैं।
इस कारण से जंग धरा पर, उसे मिटाने आए हैं।
लोक-जागरण प्रण आजीवन —–
मशालें भी जलाते हम
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छुपे हो तुम कहाँ सूरज, पता दो उस ठिकाने का
अँधेरा जो घना उससे, इरादा आजमाने का
हमें आता है लड़ना भी, हमहीं लड़ना सिखाते हैं
ये सदियों की लड़ाई है, सभी को हक दिलाने का
कलम को भी चलाते हम, मशालें भी जलाते हम
तुम्हें जो चाहिए, थामो, मगर है साथ आने का
लहू भी एक सा अपना, हवा, पानी भी इक जैसा
सभी इन्सान इक जैसे, यही रिश्ता निभाने का
भला सोचो सुमन हमको, जरूरत क्या है बँटने की
अगर कुछ सोच से अँधे, उसे रस्ता दिखाने का
पहले खुद को नंगा देख
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अपने भीतर गंगा देख
पहले खुद को नंगा देख
खुशी खुशी तू गम को जी
तब जीवन सबरंगा देख
भारत सोने की चिड़िया
भटक रहे भिखमंगा देख
लोकतंत्र के मंदिर में
कुछ सियार हैं रंगा देख
कह करके भाई, भाई
करवाते क्यों दंगा देख
खुद जी ले, जीने भी दे
यार सभी को चंगा देख
सुमन विश्व भर में हमसब
फहरा रहे तिरंगा देख?
हाथ बिहारी के मशाल है
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एक सियासी यह कमाल है
हाथ बिहारी के मशाल है
आगे बढ़ता है बिहार जब
रोक सके किसकी मजाल है
परिवर्तन की आँधी लाकर
साथ देश के कदमताल है
पढ़े लिखे कम होने पर भी
सत्ता से करता सवाल है
लोक-जागरण की ये धरती
सचमुच भारत में मिसाल है
लफ्फाजों की शामत आयी
निम्न-वर्ग की आँख लाल है
सदा बिहारी संविधान को
रखा सुमन माथे संभाल है
तब अच्छे दिन आएंगे
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किसी तरह से लोग जोड़ना, तब अच्छे दिन आएंगे
बन्द करो अब झूठ बोलना, तब अच्छे दिन आएंगे
सीधे-साधे लोग फँसे बस, लोक-लुभावन नारों में
सीखा जैसे आँख खोलना, तब अच्छे दिन आएंगे
तुम जिसकी निन्दा करते थे, वही लोग अब साथ तेरे
अपने भीतर जरा झाँकना, तब अच्छे दिन आएंगे
लोकतंत्र में कुछ दिन खातिर, जनता देती सिंहासन
तेरा निश्चित अभी उतरना, तब अच्छे दिन आएंगे
लोक-जागरण हुआ देश में, सुमन रहेगा जारी भी
करने लायक वादे करना, तब अच्छे दिन आएंगे
मरता है व्यक्तित्व
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श्रम से हासिल यश टिके, यश नाटक का खाक।
अगर सुमन चालाक तू, दुनिया भी चालाक।।
कुछ दिन नाटक से कहीं, मिले किसी से प्रीत।
कब छिन जाए क्या पता, व्यर्थ भरम यह जीत।।
नकली जीवन से सदा, मरता है व्यक्तित्व।
जीते जी खुद देखता, संकट में अस्तित्व।।
परिवर्तित होते रहें, हम सबके हालात।
अपनेपन के बोध का, मरे नहीं जज़्बात।।
केवल शब्दों से नहीं, मुमकिन असली प्यार।
हरदम दिखना चाहिए, जीवन में व्यवहार।।
अपना भी कहते मगर, करते हैं शक लोग।
ऐसे लोग समाज में, हैं संक्रामक रोग।।
दिखलाते चालाक ही, खुद को नित नादान।
झाँक गौर से आँख में, मिले सही पहचान।।
राष्ट्र उचित या देश बता दे?
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ब्रह्मा, विष्णु, महेश बता दे
क्यों लोगों को क्लेश बता दे?
बिना भलाई के राजा जी
बाँटे क्या संदेश बता दे?
कौन देश का वो प्रधान जो
घूमे सदा विदेश बता दे?
क्यों चिल्लाते राष्ट्रवाद पर
राष्ट्र उचित या देश बता दे?
ठाट बाट देखो सेवक के
ऐसा एक नरेश बता दे?
जो बाँटे हैं नित अंधियारा
खुद को कहें दिनेश बता दे?
पीड़ा में हैं सुमन चमन के
बदले कब परिवेश बता दे?
ऐसी भी क्या लाचारी है?
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अभी आपकी मुख्तारी है
बेचें, जो भी सरकारी है
रेल, सेल संग कोल बेचना
ऐसी भी क्या लाचारी है ?
एरोड्रम, नव-रतन कम्पनी
पता नहीं किसकी बारी है?
देशभक्त हैं आप अनूठा
यही आपकी खुद्दारी है?
खुसफुस लोग करे आपस में
यह जनता से गद्दारी है
जनहित में अब रुके बेचना
आगे जो भी तैयारी है
मित्र सुमन को मान सोचिए
या फिर करिए जो प्यारी है
जीवन सजता बस विचार से
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वाहे गुरु, जीसस, अल्ला या राम को नित परनाम करो
सफल तभी अच्छी बातें जब, कुछ वैसा ही काम करो
स्वारथ में हम सब कुदाल हैं, खुरपी बनना सीख जरा
कोशिश से कम करो जरूरत, बांट उसे फिर नाम करो
सतत कर्म करते रहने से, इस जीवन को अर्थ मिले
जो कर सकते, करते रहना, नहीं बैठ आराम करो
बीते कल से आज बना है, और आज से कल होगा
दोनों कल से करके कल कल, आज नहीं बदनाम करो
मत समझो उपदेश है प्यारे, बात सुमन के अनुभव की
जीवन सजता बस विचार से, सुबह करो या शाम करो
पीढ़ी दर पीढ़ी यादों में
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गीत, गजल, कविता में हमने, अपना ही विश्वास लिखा
हमको भी इतिहास लिखेगा, हमने भी इतिहास लिखा
अपनी ही तारीफ को खुद से, लिखते, पढ़ते अगर कहीं
भीड़ वहाँ शब्दों की सचमुच, बस हमने बकवास लिखा
वक्त गुजरते रहते सबके, समय मगर इन्साफ करे
पीढ़ी दर पीढ़ी यादों में, किसने, कितना खास लिखा
नियम टूटते जब सामाजिक, तब मानवता घुटती है
खून के आँसू जिन आँखों में, उसपर क्यूँ परिहास लिखा
आमजनों की दुखती रग को, सहलाना साहित्य सुमन
लोक-जागरण यज्ञ साथ में, हर लोगों में आस लिखा
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