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झारखंड उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश संजय मिश्रा और न्यायाधीश आनंद सेन की खंडपीठ में राकेश झा द्वारा दायर जनहित याचिका WP (PIL) 2078/ 2018 की सुनवाई हुई

आज झारखंड उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश संजय मिश्रा और न्यायाधीश आनंद सेन की खंडपीठ में राकेश झा द्वारा दायर जनहित याचिका WP (PIL) 2078/ 2018 की सुनवाई हुई

पिटीशनर के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने न्यायालय को बताया कि आदेशानुसार सारे हलफनामे दायर हो चुके हैं अतः माननीय खंडपीठ अब इस मामले की मेरिट पर सुनवाई कर सकती है। पिटीशनर ने अक्षेस के हलफनामा के खिलाफ अपना प्रत्युत्तर दायर किया अदालत ने अधिवक्ताओं को हलफनामों का सॉफ्ट कॉपी दायर करने को कहा सुनवाई के दौरान एक अधिवक्ता ने पिटीशन के समर्थन में हस्तक्षेपकर्ता बनने की इजाजत चाही जिसे खंडपीठ ने मंजूर कर लिया। चूंकि सारे हलफनामे ऑन रिकार्ड नहीं थे इसलिए खंडपीठ ने अंतिम सुनवाई की तारीख 06.07.2023 को तय की।
ज्ञातव्य है कि पिछली सुनवाई में माननीय खंडपीठ ने अक्षेस के माननीय अदालत के 2011 के अवैध निर्माणों को गिराने के आदेशों की लगातार 10-11 वर्षों से अवहेलना करने पर नाराजगी जाहिर करते हुए अक्षेस को स्टेटस रिपोर्ट दायर करने को कहा था।
ज्ञातव्य है कि अक्षेस ने 2011 की तरह ही अदालत को गुमराह करने के लिए फर्जीवाड़ा करते हुए बिना किसी कारवाई के उन्हीं 46 अवैध निर्माणों को फिर से चिन्हित कर कारवाई करने का आश्वासन अदालत को दिया है जिन्हें 2011 के उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद सील कर उन तमाम अवैध निर्माणों को गिराने का आश्वासन अक्षेस ने 2011 में माननीय उच्च न्यायालय को दिया था जिसे अदालत की प्रक्रिया रूकने के बाद अक्षेस ने फर्जीवाड़ा करते हुए बिना किसी कारवाई के सील हटा लिया और उन अवैध निर्माणों को रेगुलराइज घोषित कर दिया था।

पिटीशनर के अधिवक्ता ने बताया कि अक्षेस ने अधिकतम G+1 से 4 तक के लिए नक्सल स्वीकृत किया है जबकि सारे 1246 भवन अवैध रूप से G+6 से 9 तक बनाये गये हैं, सारे अवैध भवनों में पार्किंग की जगह को कामर्शियल उपयोग के लिए बेची गयी है जमीन के प्लॉट के अधिकतम 50% तक निर्माण की जगह 100% या उससे अधिक निर्माण किया गया है किसी भी भवन में Water harvesting और Ground Water
Recharging और विद्धुत तड़ित चालक (Lightening Conductor) की व्यवस्था नहीं है। अक्षेस ने खुद माना है कि उसने सिर्फ 578 आवेदनों में सिर्फ 18 भवनों को Occupancy Certificate और Competition Certificate निर्गत किया है लेकिन सारे अवैध भवनों में टाटा स्टील ने उपायुक्तों और अक्षेस के विशेष अधिकारियों की मिलीभगत से अपने व्यवसायिक हित के लिए बिजली पानी मुहैया करवा दिया और सारे अवैध भवनों के फ्लैटों को बिल्डरों ने अवैध तरीके से बेच दिया। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने उन्हें व्यक्तिगत तौर पर भी हलफनामे सौंपे हैं अतः वे अगली सुनवाई से पहले एक नया हलफनामा दायर कर यह सारे दस्तावेज और तथ्यों को उच्च न्यायालय की खंडपीठ के संज्ञान में लायेंगे। पिटीशनर की तरफ से अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव और रोहित सिंहा ने पैरवी की।