झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

देश की स्वतंत्रता की सौवीं वर्षगांठ (2046) तक राष्ट्र को अंधविश्वास (डायन प्रथा ) मुक्त बनाया जाय

  • डायन प्रथा प्रतिषेध कानून के दो दशक

फ्री लीगल एड कमिटी की स्थापना1977ई. में कोल्हान के चार समाजसेवी मानवाधिकार लोगों के प्रयास से बनाया गया था । जिसमें जी .एस.जायसवाल, जवाहर लाल शर्मा, अंजली बोस एवं प्रेम चन्द्र ने मिलकर गठन किया। चारों मानवाधिकार कार्यकर्ता आपातकाल की विभीषिका से पीड़ित थे ।देश में उस समय निशुल्क कानूनी सहायता का कोई भी प्रावधान नहीं था ।यह प्रावधान1980 में भारतीय संविधान में लागू किया गया ।जेल में हजारों निर्दोष लोग बन्द थे ,फ्री लीगल एड कमिटी मानवाधिकार के क्षेत्र में अनेकों निर्देश सर्वोच्च न्यायालय से पारित कराने में सफल रही 1982ई. में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री पी एन भगवती तथा1987 ई. मुख्य न्यायाधीश श्री रंग नाथ मिश्र ने संस्था के क्रार्यक्रम में शामिल होकर संस्था का उत्साहवर्द्धक बढ़ाया था । डायन समस्या की जानकारी संस्था के लोगों को सर्वप्रथम1991ई. में हुई । जमशेदपुर के करनडीह क्षेत्र की महिला मानी कुई पर पड़ोसियों ने डायन का आरोप लगाया और उसे जान से मारने की कोशिश की मानी कुई तो बची पर उनके पति और बेटे को जान से मार दिया गया। जेल में बंद आरोपियों से मिलने पर उनलोगो ने कहा कि मानी कुई ने डायन विधा से उनके बेटे को मार दिया है । उनलोगों ने भी मानी कुई को मारकर घायल कर दिया था ।उनलोगों का कहना था कि उन्हें विश्वास है कि मानी कुई का रक्तपात हुआ और रक्त जमीन पर गिरा , उससे उसकी डायन विधा समाप्त हो गई।

आंदोलन के शिल्पकार प्रेम चन्द्र चेयरमैन फ्री लीगल एड कमिटी

इस घटना के बाद संस्था के लोगों ने अगले कुछ वर्षों इस संदर्भ में व्यापक खोजबीन की गई, अंधविश्वास की जड़ों तक पहुंचने का प्रयास किया गया तब अंधविश्वास की भयावहता का असली चेहरा सामने आया और इसके बाद1994ई. में संस्था ने निर्णय लिया कि डायन समस्या पर प्रतिरोधात्मक कानून बनवाने के लिए कार्य करना है , संस्था के सचिव जी.एस.जायसवाल ने कानूनी कार्रवाई मसविदा बनाया “डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 1995” प्रस्तावित कानून का व्यापक रूप से प्रचार किया गया । मामला सामाजिक-राजनैतिक होने के कारण अनेकों क्षेत्रों से विरोध भी किया गया।

इसके बावजूद फ्री लीगल एड कमिटी ने इसके लिए संस्था के चेयरमैन प्रेम चन्द्र को जिम्मेदारी दी गई और वे इस अभियान में अनवरत लगे रहे। पत्रकारों , प्रबुद्ध जनों, स्वयंसेवी संस्थाओं के सक्रिय सहयोग के अतिरिक्त व्यक्तिगत राजनैतिक सम्पर्क साधे गये, अंत में हमलोग सत्ता प्रतिष्ठान को सहमत करने में सफल रहे ।बीस अक्टूबर 1999ई.को डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम अस्तित्व में आया ।अब प्रशन उसकी व्यापकता एवं सघनता से समाज एवं सरकार को अवगत कराना था । इसके लिए यूनिसेफ के सहयोग से झारखण्ड के चार विकसित जिलों जमशेदपुर, बोकारो, रांची एवं देवघर के 26 प्रखंड के190पंचायत के 332 गांवों में जन जागरण सह सर्वेक्षण का अभियान सन2000ई.में चलाया गया,332 गांव में176 पीड़ित महिलाएं मिली । राज्य में32615 ग्राम हैं अतः आनुपातिक ढंग से यह संख्या 150000 से भी अधिक होती है ।


अब मामला सरकार की झोली में था 2004ई. से फ्री लीगल एड कमिटी लगातार विभिन्न सरकारों को उस ओर ध्यान आकृष्ट करता रहा है । सरकार की ओर से कुछ पहल भी हुआ पर यह पहल नाकाफी था 2016ई.में वर्तमान सरकार को भी एक प्रतिवेदन दिया गया था जिसके बाद सरकार ने एक बजटीय प्रावधान बनाया और अपने एजेंसियों के द्वारा जन जागरण अभियान करवाया, ओझाओं की गणना भी करवाती। लेकिन समस्या इतनी गहरी और व्यापक है कि इसके लिए विशेष स्तर की सेवाएं भी अपेक्षित है इसके लिए बहुआयामी प्रयास करने होंगे ।

दो दशक बीत गये परंतु डायन प्रथा रोकथाम की दिशा में कोई असर नहीं पड़ा ।न ही निर्दोष महिलाओं पर होने वाला अत्याचार थमने का नाम लेता, अंधविश्वास की व्यापकता अभी भी बरकरार है अतः निवारण के दिशा में अब मिशन स्तर पर पहल की आवश्यकता है “अंधविश्वास उन्मूलन मिशन” अब वक्त की ताकाजा है डायन कहकर एक महिला निरंतर प्रताड़ित होती है,वह भी विभत्स रुप से, पेशाब पिलाना, मानव शौच खिलाना,बाल काटकर और नंगे करके गांव में घुमाना आदि। पूरे विश्व में नारी शक्ति और सम्मान की चर्चा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान देने के लिए देश द्वारा करार करने के बावजूद महिलाएं अंधविश्वास और डायन प्रथा के नाम पर यातनाएं सह रही है । उनकी गरिमा , स्वतंत्रता,सम्मान, स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ हो रहा है, यह भारतीय संविधान का भी उल्लंघन है। अंधविश्वास के नाम पर हो रहे यह सामाजिक कुकृत्य न केवल उस क्षेत्र और राज्य के मर्यादा पर प्रहार है । अपितु यह पुरे देश के मर्यादा पर प्रहार है। यह पूरी मानवता के साथ दुर्व्यवहार है ‌। आज हमारा देश विश्व महाशक्ति की दिशा में आर्थिक और वैज्ञानिक क्षेत्र में तेजी से अग्रसर है तो ऐसे समय में हमारे समाज के कुछ क्षेत्रों में मध्यकालीन कुरीतियां हमें शर्मसार कर रही है।अब तक आंकड़े के अनुसार हमारे देश के सोलह राज्यों में यह समस्या है। जिसमें सात राज्यों ने अपने यहां इस विषय में कानून बनाये लेकिन उन्मूलन की दिशा में व्यापक संगठित अभियान कहीं भी प्रारंभ नहीं हुआ है।नौ राज्य ऐसे हैं जहां राज्य स्तरीय कानून भी नहीं बना है।2046ई.में हमलोग अपने देश में भी सौंवी स्वतंत्रता वर्षगांठ मनाने वाले हैं। अपने देश को अन्य विकास के अतिरिक्त अंधविश्वास मुक्त बनाना भी उतना ही आवश्यक है। अभी हमारे पास सत्ताईस वर्ष का समय है अगर सभी वर्ग विशेष कर सरकार यह निश्चय कर ले तो यह कार्य नामुमकिन नहीं है अंधविश्वास उन्मूलन मिशन को एक परियोजना की तरह चलाकर और युद्ध स्तर में कार्य कर यह मुकाम पाया जा सकता है।

यहां पर एक बात और स्पष्ट करना जरूरी है कि जब हम अंधविश्वास की बात करते हैं तो इसका अर्थ है किसी के व्यक्ति के उस विकृत विश्वास से है। जिसके चलते एक व्यक्ति का या समाज की शारीरिक, आर्थिक, मानसिक, क्षति होती है । जैसे तीन साल पहले लोहरदगा जिले में एक गांव की पंचायत ने पांच महिलाओं को डायन घोषित कर उन्हें रातभर प्रताड़ित किया फिर उन पांचों महिलाओं की हत्या भी कर दी ,इस कुकृत्य में दर्जन भर पढ़े-लिखे लोग भी शामिल थे।
फिर इसी वर्ष लातेहार में एक व्यक्ति ने तांत्रिक सिद्धि के नाम पर दो मासूमों की बलि चढ़ा दी ।इस घटना के दस दिन बाद एक लड़की ने पढ़ाई में श्रेष्ठता हासिल करने के मंशा से अंधविश्वास को चरम पर पहुंचाने का काम किया, उसने अपनी ही चाची की त्रिशूल से मारकर बलि चढ़ाई अतः जब हम अंधविश्वास उन्मूलन की बात करते हैं तो इन्हीं कुरीतियों कि बात करते हैं ।जिस राज्य में डायन प्रथा रोकथाम हेतु कानून बना है वह राज्य है बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र असम और ओडिशा में बना है । लेकिन अभी भी नौ राज्यों में डायन प्रथा रोकथाम हेतु कानून लागू नहीं किया गया है। इस अंधविश्वास के लिए राष्ट्रीय कानून बनाने की आवश्यकता है । ताकि 2046ई. स्वतंत्रता की सौवीं वर्षगांठ तक डायन अंधविश्वास उन्मूलन प्रथा को खत्म किया जा सके । जिससे भारत महाशक्ति और विश्व गुरु के रूप में शामिल हो सके।