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बीएयू पलास और गेंदा फूल से गुलाल बनाने पर करेगा शोध

रांची में आईसीएआर–पुष्प अनुसंधान निदेशालय, पुणे की ओर से अखिल भारतीय पुष्प अनुसंधान परियोजनाओं का राष्ट्रीय स्तर पर 29वां कार्यशाला का आयोजन किया गया. इसमें देश के 22 परियोजना केंद्रों के कुल 84 उद्यान वैज्ञानिकों ने भाग लिया.

रांचीः आईसीएआर–पुष्प अनुसंधान निदेशालय, पुणे की ओर से अखिल भारतीय पुष्प अनुसंधान परियोजनाओं का राष्ट्रीय स्तर पर तीन दिवसीय 29वां कार्यशाला का आयोजन किया गया. वर्चुअल माध्यम से आयोजित इस कार्यशाला में देश के 22 परियोजना केंद्रों के कुल 84 उद्यान वैज्ञानिकों ने भाग लिया. कार्यशाला में सभी केंद्रों के वैज्ञानिकों ने पुष्प क्षेत्र में शोध उपलब्धियों को प्रस्तुत किया. कार्यशाला में सभी केंद्रों के शोध कार्यों की समीक्षा की गई. इस दौरान आईसीएआर उपनिदेशक बागवानी डॉ ए के सिंह ने पुष्प वैज्ञानिकों से कोविड-19 की वजह से पुष्पों को हुए नुकसान और मौसम में आ रहे बदलाव को देखते हुए पुष्पों के मूल्यवर्धन पर शोध को प्राथमिकता देने की बात कही आईसीएआर उपनिदेशक बागवानी डॉ ए के सिंह ने वैज्ञानिकों को गेंदा और स्थानीय फूल से अगरबत्ती का निर्माण, फूलों और इसकी पत्तियों के अवशेषों के मूल्यवर्धन से किसानों की आय को बढ़ावा देने की तकनीकों को विकसित करने की बात कही. पुष्प अनुसंधान निदेशालय, पुणे के निदेशक डॉ के बीच गर्म प्रसाद ने आगामी वर्ष से सभी 22 परियोजना केंद्रों को पलास, गेंदा और स्थानीय फूल से गुलाल बनाने पर शोध शुरू करने की बात कही कार्यशाला में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय केंद्र के परियोजना प्रभारी डॉ पूनम होरो ने केंद्र की पुष्प सबंधी शोध उपलब्धियों की प्रस्तुति दी. उन्होंने बताया कि परियोजना के अधीन गुलाब की 150 प्रजाति, गलेडुलस की 50 प्रजाति और गेंदा की स्थानीय प्रजाति को एकत्र कर शोध किया जा रहा है. पुष्प उत्पादन में मल्चिंग तकनीक से तापक्रम नियंत्रण पर शोध जारी है. दो वर्षों से केंद्र की ओर से फूलों के प्रजनन पर शोध कार्य चल रहे हैं और दो वर्षो बाद केंद्र की ओर से फूलों की किस्मे विकसित की जा सकेगी. डॉ होरो ने बताया कि टीएसपी के तहत रांची, खूंटी और लोहरदगा जिले के कुल 200 आदिवासी किसानों के खेतों में गेंदा और गलेडुलस पर अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण कराए गए हैं. इससे किसान सालोभर गेंदा और गलेडुलस की खेती की ओर प्रेरित हुए है.
बरसात में गेंदा की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा. इससे किसानों को जाड़े की तुलना में तीन गुना अधिक लाभ मिल रहा है. झारखंड की जलवायु सालोभर गलेडुलस की खेती के अनुकूल है. इसके कद आकार में बड़े होने के कारण री-प्रोडक्शन आसानी से किए जाने की वजह से किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. झारखंड में पलास का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है. केंद्र की ओर से पलास के मूल्यवर्धन पर शोध से प्रदेश के किसानों को आजीविका का नया अवसर मिलेगा.