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अयोध्या मंदिर शिलान्यास: मुहूर्त, कोरोना और बिहार चुनाव को लेकर उठते सवाल

नई दिल्ली। पाँच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखेंगे. उन्हें चांदी की बनी पांच ईंटों को सिर्फ 32 सेकंड में मंदिर की नींव में रखना है.

इस अनुष्ठान की तिथि और समय को लेकर भी काफ़ी बहस चल रही है, हालांकि शिलान्यास का मुहूर्त आचार्य गणेश्वर राज राजेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने निकाला है जिन्हें ज्योतिष का प्रख्यात विद्वान माना जाता है, वे काशी के राजघराने के गुरुपरिवार का हिस्सा भी हैं.

वैसे तो भूमि पूजन का अनुष्ठान राखी के दिन से ही शुरू हो जाएगा लेकिन आधारशिला रखने के लिए जो मुहूर्त निकाला गया है वो 5 अगस्त का है वो भी दोपहर के 12.15.15से लेकर 12.15.47 के बीच.

मुहूर्त पर विवाद भी शुरू हो गया है क्योंकि आचार्य द्रविड़ ने शिलान्यास के लिए जो मुहूर्त निकाला है उसका विरोध ज्योतिष्पीठाधीश्वर और द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने किया है.

एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए उनका कहना था कि मंदिर का निर्माण ‘ठीक ढंग से होना चाहिए और और ‘आधारशिला भी सही समय पर रखी जानी चाहिए.’

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के अनुसार अभी जो तिथि तय की गई है वह ‘अशुभ घड़ी’ है. मगर आचार्य गणेश्वर राज राजेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने मुहूर्त पर सवाल खड़े करने वालों को चुनौती देते हुए अपने साथ शास्त्रार्थ करने को कहा है. हालांकि अभी तक कोई भी आचार्य द्रविड़ से शास्त्रार्थ करने को सामने नहीं आया है.

काशी के योग गुरु चक्रवर्ती विजय नावड़ ने  कहा, “नक्षत्र विज्ञान के देश के चोटी के विद्वान आचार्य द्रविड़ अत्यंत सूक्ष्म ज्योतिषीय गणना करने के लिए प्रसिद्ध हैं. उनकी इसी प्रसिद्धि के चलते श्रीराम जन्मभूमि न्यास ट्रस्ट ने चातुर्मास काल में ही यथाशीघ्र मुहूर्त निकालने का पंडित गणेश्वर शास्त्री जी से अनुरोध किया था.”

हालांकि वो कहते हैं कि हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास काल (यानि भगवान विष्णु के शयन करने के चार मास) में किसी भी प्रकार का मंगल कार्य करना निषिद्ध है. मगर, विशेष परिस्थितियों में दोष का परिहार करके व्यवस्था की जा सकती है.

नावड कहते हैं, “पंडित गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने ज्योतिष के दुर्लभ ग्रंथों मुहूर्त चिंतामणि, ज्योतिर्विदाभरण, मुहूर्त पारिजात, राज मार्तंड, पीयूषधारा सहित श्रीकृष्ण यजुर्वेद, अमरकोष, शब्द कल्पद्रुम कोश आदि शास्त्रीय ग्रंथों के आधार पर विशेष परिस्थिति में 5 अगस्त को शुभ मुहूर्त निकाला है.”

विश्व हिंदू परिषद् के प्रवक्ता विनोद बंसल कहते हैं कि वो साधुओं और संतों के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे. मगर जो मुहूर्त निकाला गया है वो उसको सही मानते हैं.

फ़ोन पर बीबीसी से चर्चा करते हुए वो कहते हैं, “वैसे श्रीराम के मंदिर के निर्माण के लिए किसी भी मुहूर्त की कोई आवश्यकता है ही नहीं. वो न सिर्फ हिन्दुओं बल्कि पूरी सभ्यता के लिए आस्था का केंद्र हैं इसीलिए मंदिर निर्माण में हर पवित्र स्थल की मिट्टी और पवित्र नदियों का जल मंगाया गया है. इसके अलावा तीन लाख शिलाएं पहले से ही अयोध्या पहुँच चुकी हैं.”

राजनीतिक एंगल

अनुष्ठान की तैयारियाँ भी ज़ोरों पर हैं लेकिन राजनीतिक दलों ने भी इस मौके पर केंद्र और उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाते हुए कहा है कि इस अनुष्ठान का इस्तेमाल वो राजनीतिक लाभ के लिए करना चाहती है.

उनका कहना है कि खास तौर पर ऐसे समय में जब ‘बिहार में चुनाव होने हैं और देश में महामारी फैल रही है तब यह उचित समय नहीं है.

कांग्रेस के नेता और पूर्व कानून मंत्री वीरप्पा मोइली कहते हैं कि राम मंदिर का निर्माण के लिए भगवान राम के तीर-धनुष वाले रूप की जगह राम, सीता और हनुमान का चित्र का इस्तेमाल किया जाना चाहिए था. मोइली कहते हैं कि ‘भगवान राम आक्रामक नहीं बल्कि करुणावतार थे’.

वहीं कांग्रेस के दूसरे नेता सलमान खुर्शीद मानते हैं कि शिलान्यास समारोह के लिए सभी राजनीतिक दलों को न्योता भेजना चाहिए था.

राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मनोज झा ने बीबीसी से चर्चा में कहा कि उन्हें इस अनुष्ठान के समय को लेकर आश्चर्य है. वो कहते हैं, “भगवान राम केवल दशरथ पुत्र ही नहीं थे. वो सभी की आस्था हैं इसलिए उनके मंदिर का निर्माण कभी भी हो सकता है. जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे दिया तो फिर निर्माण कभी भी किया जा सकता है. इसमें जल्दबाजी की आवश्यकता नहीं थी.”

झा का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री को मिसाल पेश करनी चाहिए थी. वे कहते हैं, “जब महामारी फैल रही है और कई राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह चरमरा गई हैं. जब बिहार जैसे राज्यों में अस्पतालों में संक्रमित मरीज़ों को भर्ती करने की जगह नहीं है. जब सामाजिक दूरी बनाना बहुत आवश्यक है. ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सही निर्णय लेना चाहिए था.”

इस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह प्रांत संघचालक अलोक कुमार ने बीबीसी से कहा कि कोई भी मुख्यधारा का राजनीतिक दल मंदिर निर्माण का विरोध नहीं कर रहा है. उन्होंने कांग्रेस पार्टी का भी नाम लिया और कहा कि शुरू में शरद पवार ने कुछ बयान ज़रूर दिया था मगर बाद में उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उन्हें ग़लतफहमी हो गई थी.

जहां तक रही बात सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रित करने की तो आलोक कुमार कहते हैं कि सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए सिर्फ 150 लोगों को ही अनुष्ठान में शामिल किया गया है. वरना लाखों लोग इस समारोह में पहुँच जाते. उन्होंने कहा कि श्रीराम की पहचान ही तीर धनुष है इसलिए आमंत्रण में उनकी इसी छवि को इस्तेमाल किया गया है.

अहम मुद्दों से जुड़े सवाल

इन सबके अलावा, पाँच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बाँटने का एक वर्ष पूरा हो रहा है, ऐसे में माना जा रहा है कि मंदिर के शिलान्यास की धूम में कश्मीर की सफलता और नाकामी पर होने वाली कोई भी चर्चा दबकर रह जाएगी.

यह आयोजन ऐसे समय में हो रहा है जब कोरोना की वजह से देश की बुरी हालत और अर्थव्यवस्था से जुड़े गंभीर सवाल भी कुछ समय के लिए पूरी तरह से टल जाएंगे, टीवी पर राम मंदिर के शिलान्यास का लाइव प्रसारण मीडिया का एजेंडा तय कर देगा.

राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि कोई भी विपक्षी दल इस समय या इस आयोजन पर कोई बयान नहीं दे सकता क्योंकि इससे उन दलों को राजनीतिक नुक़सान होगा इसीलिए बड़े नेता कोई बयान नहीं दे रहे हैं.

लखनऊ में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार वीरेन्द्रनाथ भट्ट कहते हैं, “आजादी के बाद से ही राजनीतिक दलों ने ऐसी राजनीति की जिससे समाज को नुक़सान ज़्यादा हुआ और लोग आपस में वैचारिक या धार्मिक और जाति के आधार पर बँटे हुए ही रहे. सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने भी इसका फायदा उठाया और क्षेत्रीय दलों ने भी”.

उन्होंने समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और वाम दलों का ज़िक्र करते हुए कहा कि “अल्पसंख्यकों के बीच असुरक्षा का भय पैदा करके नेताओं ने राजनीतिक लाभ ज़रूर उठाए. हालांकि वो कहते हैं कि पूरे प्रकरण में अगर सबसे ज्यादा नुक़सान किसी राजनीतिक दल को हुआ है वो है कांग्रेस”.

भट्ट मानते हैं कि मंदिर की आधारशिला रखे जाने के बाद सरकार को चाहिए कि “दक्षिण अफ़्रीका के तर्ज़ पर भारत में भी ऐसा आयोग बनाया जाए जिससे धर्मों और जातियों के लोग मतभेद भुलाकर एक साथ आ जाएँ और विभाजित करने की दूसरी लकीरों को मिटाया जा सके. समाज में मौजूद टकराव को ख़त्म किया जा सके”.