झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

आज कमला मिल्स की बहस पूरी हो गई

माननीय उच्च न्यायालय, कलकत्ता में टाटा स्टील लिमिटेड द्वारा इन्कैब इंडस्ट्रीज लिमिटेड की सुरक्षित देनदारियों (त्रृणों) को आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक और एसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा गैरकानूनी तरीके से प्राईवेट कंपनियों (कमला मिल्स, फस्का इन्वेस्टमेंट, पेगाशस एसेट रिकन्सट्रक्शन) को सौंप देने के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय में 2018 में दायर रिट पिटीशन नंबर 14251, 14253 और 15541 में आज कमला मिल्स की बहस पूरी हो गयी। अगली सुनवाई 13.05.2021 को होगी जिसमें टाटा स्टील की ओर से वरीय अधिवक्ता एस कुंडू अपनी बहस समाप्त करेंगे। उसके बाद अदालत अपना निर्णय सुरक्षित कर लेगी।
कमला मिल्स के अधिवक्ता ने फिर से कहा कि आई सी आई सी आई बैंक लिमिटेड (2010 10 SCC 1) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में बैंकों द्वारा अपनी गैरनिष्पादित त्रृणों को प्राईवेट कंपनियों को बेचने पर रोक नहीं लगायी है। उन्होंने यह भी कहा कि खरदा कंपनी (AIR 1962 SC 1810) मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फैसला भी उन पर लागू नहीं होता है। उन्हें बैंकों ने संपत्ति स्थानांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 6 के तहत अपने गैरनिष्पादित त्रृणों की बिक्री की है। उन्होंने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक के 13.07.2005 और 28.06.2019 के नोटिफिकेशन केवल बैंकों और संपत्ति पूनर्निमाण कंपनियों पर लागू हैं प्राईवेट कंपनियों पर नहीं।

ज्ञातव्य है कि जमशेदपुर कर्मचारियों के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने अदालत में कहा था कि 1993 से पहले और उसके बाद 2002 तक बैंक अपनी गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) का प्रतिभूतिकरण नहीं कर सकती थी। वे अपने त्रृणों की वसूली के लिए दीवानी अदालत या कंपनी के परिसमापन के लिए कंपनी कोर्ट जा सकती थी। 1993 में त्रृण वसूली न्यायाधीकरण अधिनियम के तहत त्रृण वसूली न्यायाधीकरण की स्थापना हुई और इस त्रृण वसूली न्यायाधिकरण को गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) पर निर्णय देने का पूर्ण अधिकार मिला। उन्होंने आगे बताया कि 2002 में पहली बार नये कानून वित्तीय परिसंपत्तियों का सुरक्षितिकरण और पुनर्निर्माण अधिनियम, 2002 (Seciritization & and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002) के तहत बैंकों को अपनी गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) के प्रतिभूतिकरण (securitization) करने की व्यवस्था नये अधिनियम में की गयी। इस अधिनियम के तहत परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (ARCs) के रिजर्व बैंक से पंजीकरण की व्यवस्था की गयी। ये कंपनियां बैंकों के गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) को खरीद सकती हैं और बैंकों से त्रृण लेने वाली कंपनियों से कानूनी प्रक्रिया द्वारा वसूली कर सकती हैं।

अधिवक्ता ने आगे बताया कि 2002 से 2005 तक केवल परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियाँ ही बैंकों की गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) खरीद सकती थी। उन्होंने आगे कहा कि 13.07.2005 से रिजर्व बैंक ने बैंकों को भी दूसरे बैंकों से उनकी गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) को खरीदने और उसे कानूनी प्रक्रिया द्वारा वसूलने का अधिकार दिया। पर 2019 तक परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों को बैंकों की गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) को दूसरी परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों को बेचने को मंजूरी नहीं दी। यह मंजूरी केवल 28.06.2019 से दी गयी। उन्होंने आगे कहा कि बैंकों की गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) के प्रतिभूतिकरण और निष्पादन का कानून यहीं तक है। इसमें प्राईवेट कंपनियों को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।

ज्ञातव्य है कि कमला मिल्स और उसकी सहायक कंपनियों और पेगासस एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी ने इंकैब कंपनी के बैंकों की गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) को गैरकानूनी ढंग से 2006 में अपने नाम कर लिया और उन्होंने एनसीएलटी में 21.63/- करोड़ की जगह 2339/- करोड़ का दावा ठोक दिया। इतना ही नहीं इन प्राईवेट कंपनियों ने बैंकों की इन्हीं गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) के असाईन्मेन्ट का दावा कर गैरकानूनी तरीके से एनसीएलटी में लेनदारों की कमिटी में शामिल होकर फर्जीवाड़ा कर एनसीएलटी में एक आवेदन देकर इंकैब कंपनी के परिसमापन का आदेश पारित करा लिया।

ज्ञातव्य है कि पिछली बहस में अधिवक्ता ने माननीय कलकत्ता उच्च न्यायालय को बताया था कि माननीय उच्च न्यायालय, दिल्ली ने अपने 06.01.2016 के आदेश में टाटा स्टील को इंकैब कंपनी का अधिकार संभालने को कहा था और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सभी देनदार बैंकों के कंसोर्शियम के कस्टोडियन की हैसियत से इंकैब कंपनी से पूर्ण और अंतिम भुगतान के रूप 21.63 करोड़ रूपया लेना स्वीकार किया था। उन्होंने बताया कि उक्त आदेश में बैंकों की सुरक्षित देनदारियों को प्राईवेट कंपनियों को सौंपने की कोई बात नहीं है। माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के इस आदेश को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 01.07.2016 अपने के फैसले में सही भी ठहरा दिया तो कमला मिल्स, फस्का इंवेस्टमेंट और पेगासश एसेट रिकंस्ट्रक्शन जैसी प्राईवेट कंपनियाँ, बैंकों द्वारा अपनी सुरक्षित देनदारियों को इन्हें सौंप देने का दावा कैसे कर सकती हैं? उन्होंने आगे बताया था कि माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के उक्त दोनों आदेशों के आधार पर इन प्राईवेट कंपनियों का कोई दावा इंकैब कंपनी पर नहीं बनता है। उन्होंने माननीय अदालत को सूचित किया था कि माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने 06.01.2016 के अपने उक्त आदेश द्वारा इंकैब की देनदार बैंकों की कुल सुरक्षित देनदारियों को जहाँ 21.63/- करोड़ रूपये पक्का कर दिया था वही आज कमला मिल्स, पेगासश और फस्का जैसे फर्जी दावेदारों द्वारा एनसीएलटी में उसे अविश्वसनीय तरीके से बढ़ा कर 2339/- करोड़ रूपये का दावा किया गया है। इससे यह पता लगता है कि इंकैब कंपनी, इसके मजदूरों, कर्मचारियों और तमाम हितधारकों के खिलाफ कितनी बड़ी धोखाधड़ी इन प्राईवेट कंपनियों द्वारा की गयी है।

अधिवक्ता ने माननीय अदालत को यह भी बताया था कि दस्तावेजों को देखने पर पता चलता है कि आईसीआईसीआई बैंक ने एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी को इंकैब की अपनी सुरक्षित देनदारियां सौंप दी, जो कानूनन सही था। पर एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी ने इन सुरक्षित देनदारियों को रमेश घमंडीराम गोवानी की कंपनी आर आर केबल्स को सौंप दिया जिसने फिर उसी रमेश घमंडीराम गोवानी की दूसरी कंपनियों – कमला मिल्स और फस्का इनवेस्टमेंट नामक की कंपनियों को बेच दिया। फिर एक्सिस बैंक ने इंकैब की अपनी सुरक्षित देनदारियों को पेगासश एसेट रिकंस्ट्रक्शन नाम की कंपनी को बेच दिया जबकि एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी 28.06.2019 तक इन सुरक्षित देनदारियों को तो दूसरी किसी एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी को भी नहीं बेच सकती थी।

इंकैब कर्मचारियों की तरफ से आज की सुनवाई में कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव और आकाश शर्मा ने हिस्सा लिया।