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लेनदारों की समिति और परिसमापक शशि अग्रवाल के अधिवक्ताओं ने अदालत को गुमराह किया

आज दिनांक 08.04.2021 को एनसीएलटी द्वारा 07.02.2020 को इंकैब इंडस्ट्रीज लिमिटेड के खिलाफ दिये गये परिसमापन आदेश के खिलाफ दिल्ली स्थित अपीलीय न्यायाधीकरण में इंकैब इंडस्ट्रीज के मजदूरों द्वारा दायर अपील पिटीशन पर सुनवाई हुई।
बहस की शुरुआत करते हुए कोलकाता के मजदूरों के अधिवक्ता रिशभ बनर्जी ने कहा कि कमला मिल्रस के मालिक और निदेशक रमेश घमंडीराम गोवानी इंकैब इंडस्ट्रीज के भी निदेशक रहे हैं अतः कमला मिल्स और फस्का इन्वेस्टमेंट लेनदारों की समिति (कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स) के सदस्य नहीं हो सकते। यह बात परिसमापन शशि अग्रवाल को पूरी तरह पता था और उन्होंने रमेश घमंडीराम गोवानी को इससे अवगत भी करा दिया था कि कमला मिल्स और फस्का इन्वेस्टमेंट संबंधित पार्टियां हैं अतः वे (लेनदारों की समिति (कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स) के सदस्य नहीं हो सकते हैं। पर एम वी साह जिन्हें रमेश घमंडीराम ने इंकैब कंपनी का निदेशक बनवाया था, ने माननीय बंबई उच्च न्यायालय में एक हलफनामे के द्वारा इस बात का खुलासा कर दिया कि परिसमापक शशि अग्रवाल की रमेश घमंडीराम गोवानी और उनकी पत्नी के साथ दो बार मुलाकात हुई और उसके बाद परिसमापक शशि अग्रवाल के साथ मिलकर रमेश घमंडीराम गोवानी ने कमला मिल्स और फस्का इन्वेस्टमेंट को लेनदारों की समिति का सदस्य बनाकर एनसीएलटी में लेनदारों की फर्जी समिति द्वारा एक फर्जी आवेदन देकर धोखाधड़ी से इंकैब कंपनी के परिसमापन का आदेश पारित करवा लिया। उन्होंने कहा कि परिसमापक शशि अग्रवाल रमेश घमंडीराम गोवानी का एजेंट है और उसने बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा किया है इसे तुरंत हटाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि नहीं केवल कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स का गठन गलत हुआ है बल्कि कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स ने परिसमापक के साथ साजिश कर इंकैब कंपनी के परिसमापन का रिजोल्यूशन पारित कर लिया और माननीय एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी, एनसीएलटी ने स्थापित कानूनों की अवहेलना कर कंपनी का गैरवाजिब परिसमापन आदेश पारित कर दिया। उन्होंने अपीलीय न्यायाधीकरण से उक्त आदेश को रद्द करने की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि बैंकों का अपनी देनदारियों को प्राईवेट कंपनियों को बेचना गलत है।
जमशेदपुर के मजदूरों के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने बहस का समापन करते हुए
उन्होंने कहा कि लेनदारों की समिति (कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स) और परिसमापक शशि अग्रवाल के अधिवक्ताओं ने अदालत को गुमराह किया है और इन्होंने अपनी पूरी बहस में रमेश घमंडीराम गोवानी का बचाव किया है और यह साबित करने की कोशिश की है रमेश घमंडीराम गोवानी इंकैब कंपनी का निदेशक नहीं रहा है जबकि रमेश घमंडीराम गोवानी ने इन दोनों अधिवक्ताओं को कोई वकालतनामा नहीं दिया है। उन्होंने कहा अपीलीय न्यायाधीकरण में वरीय अधिवक्ताओं को झूठ बोलते देखना दयनीय स्थिति है। उन्होंने एनसीएलटी के 07.02.2020 आदेश के अनुच्छेद 72 का जिक्र करते हुए कहा कि एनसीएलटी ने अपने आदेश में यह लिखा है कि रमेश घमंडीराम गोवानी ने इंकैब कंपनी की संपत्तियों से होने वाली आय, किराये और पुणे की विनिर्माण इकाई से होने वाली आय को हिसाब किताब में नहीं दिखाया है और सारे पैसे हड़प लिये हैं। इस मामले में हमें यह निर्देशित करने में कोई हिचक नहीं है कि परिसमापक शशि अग्रवाल उसकी जांच करेंगे और उसकी रपट माननीय एनसीएलटी को सौंपेंगे। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि अगर रमेश घमंडीराम गोवानी इंकैब का निदेशक नहीं रहा है तब उसने इंकैब के पैसे कैसे हड़प लिये? उन्होंने अपीलीय न्यायाधीकरण को बताया कि परिसमापक शशि अग्रवाल ने एनसीएलटी के उक्त आदेश के बाद भी न तो इसने इंकैब के पैसे हड़पे जाने की जांच की न ही एनसीएलटी को कोई जांच रपट सौंपी जबकि इस आदेश को पारित किये हुए एक वर्ष से ज्यादा हो गया। उन्होंने कहा की वरीय अधिवक्ता श्री दत्ता ने अदालत में सरेआम झूठ बोला है क्योंकि इसी परिसमापक शशि अग्रवाल ने एनसीएलटी को यह बताया था कि रमेश घमंडीराम गोवानी ने इंकैब के तथाकथित निदेशकों की एक फर्जी बैठक द्वारा इंकैब कंपनी की पुणे में स्थित 50 करोड़ के दो फ्लैटों को दो करोड़ से भी कम में खुद को बेच दिया। उन्होंने आगे कहा कि इस परिसमापक शशि अग्रवाल ने एनसीएलटी में आवेदन देकर उस हस्तांतरण को रद्द करने की मांग नहीं की बल्कि एनसीएलटी को सिर्फ इतल्ला दिया इससे यह स्पष्ट है कि परिसमापक शशि अग्रवाल रमेश घमंडीराम गोवानी के आर्थिक हितों के पक्ष में और इंकैब इंडस्ट्रीज कंपनी के आर्थिक हितों के खिलाफ काम करता रहा है।
इसके साथ ही अपीलीय न्यायाधीकरण ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। न्यायाधीकरण ने अधिवक्ताओं से संक्षेप में अपनी अपनी जिरह की नोधें देने को कहा। कर्मचारियों की तरफ से उक्त सुनवाई में अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव, संजीव मोहंती, चन्द्रलेखा और आकाश शर्मा ने हिस्सा लिया।