ये जीवन पाठशाला है
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मृत्यु को आमतौर पर अशुभ माना जाता है और उससे संबंधित हर सामाजिक क्रिया कर्म को बहुत सादगी से सम्पन्न किये जाने की परम्परा हमारे यहां सदियों से है।
एक सामाजिक और साहित्यिक सोच के धनी बुजुर्ग की मृत्यु के पश्चात् दो दिन पूर्व पारम्परिक रूप से आयोजित भोज में शामिल होने का अवसर मिला।
वहां पहुंचते ही देखा कि वो पूरा का पूरा फ्लैट रौशनी में नहा रहा है और उसी फ्लैट में श्राद्ध-भोज का आयोजन भी था जहां एक शादी भी हो रही थी। बैण्ड पार्टी वाले तरह तरह के शादी के गीत अपने वाद्ययंत्रों के साथ बजा रहे हैं। फ्लैट की सीढ़ियों के रैलिंग भी तरह तरह के फूलों से सजे थे।
मैं एक विचित्र सी मन:स्थिति में उलझा उस भोज में भी शामिल था और कानों में आवाज आ रही थी कि – आज मेरे यार की शादी है
अपने एक बहुत पुराने मुक्तक से बात समाप्त करूं कि -कहीं बजती है शहनाई बगल में चीख मिलती है यहाँ अधिकार के बदले हमेशा भीख मिलती है हकीकत से उलट है जिन्दगी का फलसफा यारो ये जीवन पाठशाला है जहाँ नित सीख मिलती है
श्यामल सुमन
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