सम्मानों की बारिश देख
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ज्ञान हमारा बड़ा है सबसे इस जिद पे क्यूँ अड़े हुए हैं
आसपास के दुखियारी सँग मिलते कम जो खड़े हुए हैं
हवा मनचली अभी चली यूँ , बहके बहके लोग मिले
और बड़ाई खुद की खुद से करके कहते बड़े हुए हैं
दूर धर्म से मगर धर्म पर भाषण की नित आतिश देख
उलझाते हैं आमजनों को रोज सियासी साजिश देख
मूल जरूरत क्या है, किसकी उसको भटकाने खातिर
हर साहित्यिक क्षेत्र में जबरन, सम्मानों की बारिश देख
झूठ, फरेबी, भ्रष्टाचारी, बम के लगे पलीते हैं
प्रायः लोग यही कहते कि ज़हर गमों का पीते हैं
भले जिन्दगी छोटी हो पर सदा अर्थ हो जीवन का
कुछ तो जीते जी मरते पर कितने मर के जीते हैं
कलमकार भी गलती करते दिखलाओ तो रुष्ट हुए
झूठ – मूठ की वाह वाह से बाहर बाहर पुष्ट हुए
कलम हाथ में सुमन जो तेरे रोज सत्य लिखना होगा
या लिख लो फिर खुद से पूछो क्या सचमुच संतुष्ट हुए
श्यामल सुमन
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