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सार्वजनिक क्षेत्र की पारंपरिक भूमिका में आधारभूत बदलाव सुरभि जैन और तुलसीप्रिया राजकुमारी

सार्वजनिक क्षेत्र की पारंपरिक भूमिका में आधारभूत बदलाव सुरभि जैन और तुलसीप्रिया राजकुमारी

केंद्रीय बजट 2021-22 विचारधारा और विज़न के अनूठे संगम का प्रतीक है जो इसे अतीत के बंधनयुक्त विरासतों से अलग एक निर्णायक अवसर प्रदान करता है। यह भारत को जीवंत पुनरुत्थान के रास्ते पर आगे ले जाने के लिए भारतीय उद्यमशीलता की योग्यता और क्षमता में अपने विश्वास को दोहराता है। बजट में आधुनिक भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को फिर से परिभाषित करने की क्षमता है इस नीति-स्पष्टता के साथ कि ‘आत्मनिर्भर भारत का निर्माण निष्क्रिय संपत्ति की नींव पर नहीं किया जा सकता है
भारत सरकार द्वारा नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव किये गए हैं सरकार का कहना है कि कारोबार करना सरकार का काम नहीं है और इसे ही नया नियम माना जाना चाहिए तथा कारोबार में सरकार की भागीदारी अपवाद के तौर पर होनी चाहिए। आत्मनिर्भर पैकेज की घोषणा के अनुरूप, बजट में गैर-रणनीतिक और रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक उद्यमों (पीएसई) के विनिवेश के लिए एक स्पष्ट रोड मैप है। पीएसई की न्यूनतम उपस्थिति के लिए पहचान किये गए रणनीतिक क्षेत्रों में शामिल हैं (क) परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और रक्षा; (ख) परिवहन और दूरसंचार; (ग) बिजली, पेट्रोलियम, कोयला और अन्य खनिज; एवं (घ) बैंकिंग, बीमा और वित्तीय सेवाएं। यह कदम स्वतंत्रता के बाद से भारत द्वारा अपनाई गई विचारधारा में एक निश्चित बदलाव का प्रतीक है। इससे पीएसई के अर्थव्यवस्था के शीर्ष पर रहने की स्थिति में बदलाव आएगा और सार्वजनिक उद्यमों को अपनी विरासत निजी क्षेत्र को सौपने के लिए मार्ग प्रशस्त होगा।
यदि हम विनिवेश की दिशा में अब तक किए गए प्रयासों पर गौर करें तो पाते हैं कि भारत की नई विनिवेश नीति की निर्भीकता की सराहना की जानी चाहिए। पीएसई, 1956 के औद्योगिक नीति संकल्प से लेकर 1980 के दशक की शुरुआत तक भारतीय अर्थव्यवस्था के शीर्ष पर थे। इनपर 1991 के उदारीकरण सुधारों के दौरान फिर से विचार किया गया। पूंजी के कुशल उपयोग और समान अवसर की बढ़ती मांग के साथ नए दौर की शुरुआत हुई।
विनिवेश शुरू में नीलामी के जरिये अल्पसंख्यक हिस्सेदारी की बिक्री के माध्यम से किया गया था इसके बाद के वर्षों में, 1999-2000 तक लोकप्रिय तरीके को अपनाते हुए प्रत्येक कंपनी के लिए अलग-अलग बिक्री की गयी। रणनीतिक विनिवेश, पहली बार 1999-2000 में एक नीतिगत उपाय के रूप में उभरा, जिसमें सार्वजनिक उपक्रमों में 50 प्रतिशत या अधिक की सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री की गयी तथा इसके साथ ही प्रबंधन नियंत्रण का भी हस्तांतरण किया गया। 2004 के बाद विनिवेश, ज्यादातर नीलामी की विधि की बजाय एक सार्वजनिक प्रस्ताव के माध्यम से किया गया। 2014 के बाद रणनीतिक बिक्री पर नए सिरे से जोर दिया गया, जिससे कुल आय का लगभग एक तिहाई 2016-2017 से 2018-2019 के दौरान हुए विनिवेश से प्राप्त हुआ। जिन विभिन्न विनिवेश तरीकों को हाल में अपनाया गया है, उनमें शामिल हैं बड़े पीएसई द्वारा शेयरों की पुनर्खरीद और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ)। नवंबर, 2019 में, भारत ने एक दशक से अधिक समय का अपना सबसे बड़ा निजीकरण अभियान शुरू किया, जिसमें केंद्रीय पीएसई (सीपीएसई) में भारत सरकार की शेयर पूंजी को 51 प्रतिशत से कम करने के लिए “सिद्धांत” के तौर पर स्वीकृति दी गई थी। तीन दशकों तक अपनाये गए विनिवेश के इन प्रयासों को टुकड़ों में बंटे प्रयासों के रूप में ही देखा जा सकता है। इसके विपरीत हाल के बजट में विनिवेश के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया गया है।
यह दृष्टिकोण, आर्थिक समीक्षा 2019-20 में निजीकरण के लाभ के विश्लेषण के महत्वपूर्ण साक्ष्य पर आधारित है। 1999-2000 से 2003-04 तक रणनीतिक विनिवेश किये गए 11 सार्वजनिक उपक्रमों के ‘विनिवेश से पहले विनिवेश के बाद’ के प्रदर्शन पर एक विस्तृत विश्लेषण तैयार किया गया था। विश्लेषण से पता चला कि निजीकरण किये गए इन सीपीएसई ने औसतन, कुल पूंजी, शुद्ध लाभ, परिसंपत्ति पर आय (आरओए), इक्विटी पर आय (आरओई), सकल राजस्व, शुद्ध लाभ अंतर, बिक्री में वृद्धि और प्रति कर्मचारी सकल लाभ के सन्दर्भ में निजीकरण के बाद की अवधि में इसी क्षेत्र के अन्य सरकारी उद्यमों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया। विशेष रूप से, आरओए और शुद्ध लाभ अंतर ऋणात्मक से धनात्मक हो गया। इसी क्षेत्र के अन्य सरकारी उद्यमों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन स्पष्ट संकेत है कि सीपीएसई का निजीकरण समान संसाधनों से अधिक धन अर्जन करने में सक्षम है। इस बेहतर प्रदर्शन का आकलन, प्रत्येक सीपीएसई के लिए व्यक्तिगत तौर पर भी किया गया था। इससे स्पष्ट साक्ष्य मिलता है कि निजीकरण, संसाधनों के अधिक कुशल उपयोग के जरिये सीपीएसई की क्षमता को नए अवसर प्रदान करता है। यह महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और सामाजिक पूंजी के विकास के लिए सार्वजनिक संसाधन भी उपलब्ध कराएगा – जिसे सरकार का ‘व्यवसाय’ कहा जा सकता है।
विनिवेश की विचारधारा में आधारभूत बदलाव और बजट में प्रस्तुत संसाधन उपयोग की दक्षता की नई सोच के बीच बेहतर तालमेल दिखाई पड़ता है। ऐसे समय में जब राजस्व के पारंपरिक स्रोतों में कमी आई है, केंद्रीय बजट 2021-22 में समझदारी से उपायों की एक श्रृंखला सामने रखी गयी है, जो नवोन्मेषी है विचारशील है और सरकारी स्वामित्व वाली संपत्तियों के विमुद्रीकरण जैसे अवसरों से संसाधन प्राप्त करने की सोच को रेखांकित करती है। निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि पारंपरिक रास्ते से अलग होकर सरकार, कारोबार के नए मानक स्थापित करना चाहती है। इसके लिए सरकार ने यह दृष्टिकोण अपनाया है कि सरकार का काम कारोबार करना नहीं है और अपवाद के तौर पर ही सरकार व्यवसाय में हिस्सा लेगी। इससे सभी हितधारकों को सही संकेत जाएगा और सभी सार्वजनिक और निजी उद्यमों से उत्पादकता और दक्षता लाभ को अधिकतम करने में मदद मिलेगी। यह एक स्थायी व्यवहार परिवर्तन होगा, जिसके महामारी के बाद भी जारी रहने की उम्मीद है!

लेखक-द्वय वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग में अधिकारी हैं।