झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

पत्थर से भी तुम बदतर हो

पत्थर से भी तुम बदतर हो
********************
साहब! हम मूरख, तू ज्ञानी।
फिर क्यों तेरी आँखों का नित, सूख रहा है पानी।।
साहब! हम मूरख —–

तुमसे आस लगी तो हमने, सर पे तुझे बिठाया।
देव समझकर पत्थर को भी, दोनों हाथ उठाया।
पत्थर से भी तुम बदतर हो, बने रहे अभिमानी।
साहब! हम मूरख —–

मोह लिया मोहक बातों से, क्या अंदाज निराले?
सच दिखता सबको अब तेरे, सभी इरादे काले।
जनता की आवाज दबाना, ये आदत सुल्तानी।
साहब! हम मूरख —–

वक्त माफ किसको करता जो, तुझको माफ करेगा?
जीवन – मूल्य बचे रस्ते का, कंटक साफ करेगा।
सत्य सुमन ये सदियों का पर, तुम करते नादानी।
साहब! हम मूरख —–

श्यामल सुमन