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पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा तृणमूल कांग्रेस में शामिल प्रशंसकों ने दी प्रतिक्रया

पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा तृणमूल कांग्रेस में शामिल प्रशंसकों ने दी प्रतिक्रया

पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है. उन्होंने हजारीबाग से अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया था. इस दौरान कई लोगों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी है.
हजारीबाग: देश के पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है. पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी के बेहद खास माने जाने वाले यशवंत सिन्हा भाजपा के कार्यकाल में वित्त और विदेश मंत्री भी रह चुके हैं. हालांकि उन्होंने हजारीबाग में सक्रिय राजनीति में नहीं हिस्सा लेने की बात भी कह चुके हैं. इसके बावजूद आज उन्होंने कोलकाता में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है.
उन्होंने कोलकाता में कहा है कि प्रजातंत्र की ताकत प्रजातंत्र की संस्थाएं होती हैं. आज लगभग हर संस्था कमजोर हो गई है. उसमें देश की न्यायपालिका भी शामिल है. हमारे देश के लिए यह सबसे बड़ा खतरा पैदा हो गया है. प्रकृति को देखते हुए मैंने तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है.
यशवंत सिन्हा का हजारीबाग से राजनीतिक कैरियर की शुरुआत किया है. हजारीबाग संसदीय क्षेत्र से तीन बार सांसद निर्वाचित हुए हैं. 1998 1999 और 2009 में वह सांसद बने. 2004 में हजारीबाग के संसदीय चुनाव में उनकी हार हुई थी और भुनेश्वर प्रसाद मेहता विजय हुए थे. 1998 में 13 माह की भाजपा की सरकार थी उस समय यह वित्त मंत्री भी रहे. 1999 से 2004 तक केंद्रीय वित्त और विदेश मंत्री का कार्यभार संभाला था.
यशवंत सिन्हा ने हजारीबाग से राजनीतिक कैरियर की शुरुआत कि है. हजारीबाग संसदीय क्षेत्र से तीन बार सांसद निर्वाचित हुए हैं. 1998 1999 और 2009 में वह सांसद बने. 2004 में हजारीबाग के संसदीय चुनाव में उनकी हार हुई थी और भुनेश्वर प्रसाद मेहता विजय हुए थे. 1998 में 13 माह की भाजपा की सरकार थी उस समय वह वित्त मंत्री भी रहे. 1999 से 2004 के तक केंद्रीय वित्त और विदेश मंत्री का कार्यभार संभाला था.
हाल के दिनों में यशवंत सिन्हा मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा था और उन्हें विफल सरकार घोषित किया था. यही नहीं कई अलग-अलग मंचों से उन्होंने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा किए थे.इसके साथ ही देश की वित्तीय स्थिति पर चिंता जाहिर की थी. ऐसे में यह माना जा रहा था कि यशवंत सिन्हा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच तालुकात भी ठीक नहीं चल रहे है.
यशयंत सिन्हा ने 1984 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दिया और जनता पार्टी के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति से जुड़ गए. 1986 में उनको पार्टी का अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त किया गया और 1988 में राज्यसभा का सदस्य चुना गया. 1989 में जनता दल का गठन के बाद उनको पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया. उन्होंने चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल से 1990 से 1991 तक वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया.
जून 1996 में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने मार्च 1998 में उनको वित्त मंत्री नियुक्त किया गया उस दिन से लेकर 22 मई 2004 तक संसदीय चुनावों के बाद नई सरकार के गठन तक में विदेश मंत्री रहे. उन्होंने भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में बिहार वर्तमान में झारखंड हजारीबाग निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. हालांकि 2004 के चुनाव में हजारीबाग से उनकी हार हुई. 2009 में फिर से संसद में प्रवेश किया. 13 जून 2019 को उन्होंने भाजपा के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.
उन्होंने हजारीबाग में घोषणा किया था कि उन्हें अब वह सक्रिय राजनीति में नहीं रहेंगे. इसके बाद उनके पुत्र जयंत सिन्हा ने हजारीबाग से लोकसभा चुनाव लड़ा और दो बार लगातार सांसद चुने गए. पहले कार्यकाल में उन्हें राज्य वित्त मंत्री का भी दर्जा मिला.
हजारीबाग में समाजसेवी, पत्रकार और यशवंत सिन्हा को चुनाव हराने वाले पूर्व सांसद भुनेश्वर प्रसाद मेहता ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. मनोज गुप्ता का कहना है कि यशवंत सिन्हा को मान सम्मान पार्टी में नहीं मिल रहा था. इस कारण उन्होंंने टीएमसी का दामन थामा है. जीवन के इस मोड़ पर उन्हें पार्टी से सिर्फ और सिर्फ दुख मिला है.
दूसरी ओर पत्रकार टीपी सिंह का कहना है कि हर राजनेता अवसरवादी होता है. यशवंत सिन्हा ने भी अपना अवसर तलाश करते हुए टीएमसी का दामन थामा था. उनका कहना है कि उनके जाने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लाभ मिलेगा और उनका कद को कितना टीएमसी भुना पाती है राजनीति में यह महत्वपूर्ण होगी.
हजारीबाग के पूर्व सांसद और यशवंत सिन्हा को शिकस्त देने वाले भुनेश्वर प्रसाद मेहता का कहना है कि टीएमसी का दामन थामने से पार्टी को लाभ मिलने जा रहा है क्योंकि यशवंत सिन्हा एक कद्दावर नेता के रूप में पूरे देश भर में जाने जाते हैं. भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें मान,सम्मान और प्रतिष्ठा नहीं दी. इस कारण वह दुखी होकर टीएमसी का दामन थामा है.