न्यून रूप है प्यार का
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मत छोटाकर देखना, यार कभी तुम प्यार|
ये दुनिया है प्यार से, प्यार सृजन आधार||
अक्सर बोले लोग सब, प्यार एक है रोग|
शायद वही मरीज जो, ऐसा कहते लोग||
जीव जगत भी प्यार से, प्यार सभी का मूल|
हर रिश्ते से प्यार कर, जो जिसके अनुकूल||
विस्तारित हो प्यार तब, अगर मूल में नेह|
न्यून रूप है प्यार का, आकर्षण जब देह||
जीव, नदी, पर्वत सुमन, हर चीजों से प्यार|
इहलौकिक इस प्यार में, परलौकिक संसार||
श्यामल सुमन
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