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नानी बाई रो मायरो एक प्रेरणादायी कहानी : भक्त के वश में हैं भगवान आज से राजस्थानी फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत

नानी बाई रो मायरो एक प्रेरणादायी कहानी : भक्त के वश में हैं भगवान आज से राजस्थानी फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत

तीन दिवसीय फिल्म फेस्टिवल के पहले शो में फिल्म नानी बाई रो मायरो का प्रदर्शन किया जा रहा है. यह फिल्म अटूट श्रद्धा पर आधारित प्रेरणादायी कहानी पर आधारित है. इस राजस्थानी फिल्म में मारवाड़ी भाषा में भगवान श्रीकृष्ण का गुणगान किया गया है. निर्देशक ने यह बतलाने का प्रयास किया है कि भगवान को यदि सच्चे मन से याद किया जाए तो वे अपने भक्तों की रक्षा करने स्वयं आते हैं. नानी बाई रो मायरो की शुरूआत नरसी भगत के जीवन से होती है. नरसी मेहता का जन्म गुजरात राज्य में गिरपर्वत के पास जुनागढ़ नगर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था जब ये बहुत ही छोटे थे तब ही इनके माता पिता का देहांत हो गया था. नरसी मेहता का पालन पोषण नरसी जी के बड़े भाई ने किया था. नरसी मेहता को साधुओं की सेवा करने में बड़ा आनन्द आता था. उन्हीं साधुओं की सेवा करते करते नरसी जी ने भी सत्संग में भगवान की भक्ति शुरू कर दी. नरसी मेहता का विवाह भी बहुत छोटी आयु में माणिकबाई से करा दिया गया था. नरसी मेहता की अटूट भक्ति से प्रेरित होकर बहुत से साधु संत उनके साथ भक्ति में लग गये. मगर कुछ लोगों को नरसी जी का प्रसिद्ध होना अच्छा नहीं लगता था. वह लोग नरसी जी को परेशान करने के नित नए बहाने ढूंढते थे.

नानी बाई नरसी जी की पुत्री थी और सुलोचना बाई नानी बाई की पुत्री थी, सुलोचना बाई का विवाह जब तय हुआ, तब नानी बाई के ससुराल वालों ने यह सोचा कि नरसी एक गरीब व्यक्ति है तो वह शादी के लिये भात नहीं भर पायेगा. उनको लगा कि अगर वह साधुओं की टोली को लेकर पहुँचे तो उनकी बहुत बदनामी हो जायेगी इसलिये उन्होंने एक बहुत लम्बी सूची भात के सामान की बनाई उस सूची में करोड़ों का सामान लिख दिया गया जिससे कि नरसी उस सूची को देखकर खुद ही न आये. नानी बाई का मायरा की असल कहानी यहीं शुरू होती है. जिसमें ’मायरो’ अर्थात ’भात’ जो कि मामा या नाना द्वारा कन्या को उसकी शादी में दिया जाता है वह भात स्वयं श्री कृष्ण लाते हैं.

नरसी जी को निमंत्रण भेजा गया साथ ही मायरा भरने की सूची भी भेजी गई परन्तु नरसी के पास केवल थी केवल कृष्ण की भक्ति, इसलिये वे उनपर भरोसा करते हुए अपने संतों की टोली के साथ सुलोचना बाई को अपना आशीर्वाद देने के लिये अंजार नगर पहुँच गये. उन्हें आता देख नानी बाई के ससुराल वाले भड़क गये और उनका अपमान करने लगे. अपने इस अपमान से नरसी जी व्यथित हो गये और रोते हुए श्री कृष्ण को याद करने लगे. नानी बाई भी अपने पिता के इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाई और आत्महत्या करने दौड़ पड़ी. परन्तु श्री कृष्ण ने नानी बाई को रोक दिया और उसे यह कहा कि कल वह स्वयं नरसी के साथ मायरा भरने के लिये आयेंगे. दूसरे दिन नानी बाई बड़ी ही उत्सुकता के साथ श्री कृष्ण और नरसी जी का इंतज़ार करने लगी और तभी सामने देखती है कि नरसी जी संतों की टोली और कृष्ण जी के साथ चले आ रहे हैं और उनके पीछे ऊँटों और घोड़ों की लम्बी कतार आ रही है. जिनमें सामान लदा हुआ है. दूर तक बैलगाड़ियाँ ही बैलगाड़ियाँ नज़र आ रही थी. ऐसा मायरा न अभी तक किसी ने देखा था न ही देखेगा. यह सब देखकर ससुराल वाले अपने किये पर पछताने लगे, उनके लोभ को भरने के लिये द्वारिकाधीश ने बारह घण्टे तक स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा की. नानी बाई के ससुराल वाले उस सेठ को देखते ही रहे और सोचने लगे कि कौन है ये सेठ और ये क्यों नरसी जी की मदद कर रहा है, जब उनसे रहा न गया तो उन्होंने पूछा कि कृपा करके अपना परिचय दीजिये और आप क्यों नरसी जी की सहायता कर रहे हैं.उनके इस प्रश्न के उत्तर में जो जवाब सेठ ने दिया वही इस फिल्म की कहानी का सम्पूर्ण सार है. सेठ जी का उत्तर था ’मैं नरसी जी का सेवक हूँ, मुझपर इनका अधिकार चलता है. जब कभी भी ये मुझे पुकारते हैं मैं दौड़ा चला आता हूँ. ये उत्तर सुनकर सभी हैरान रह गये और किसी के समझ में कुछ नहीं आ रहा था बस नानी बाई ही समझती थी कि भक्त के वश में हैं भगवान.

*आज प्रदर्शित होने वाली दूसरी फिल्म है बाबुल थारी लाडली*

यह एक ऐसे आदमी की कहानी है, जिसे बेटा ही चाहिए. बेटे की चाहत इतनी है कि वह डॉटर के नाम से ही नफरत करता है. इसी सोच के चलते चलते  यह पता चलने पर कि उसके यहां बेटी होने वाली है वह पत्नी के गर्भ में ही उसे खत्म करवा देता है. ऐसा वह एक बार नहीं दो बार करता है.

ऐसा क्या होता है, ऐसे क्या हालात पैदा होते हैं कि बेटी और इस शब्द से नफरत करने वाले इस आदमी के मन में उसके प्रति प्यार जाग उठता है. कैसे उसे आदमी के जीवन में बेटी का महत्व समझ में आता है. कैसे उसके मन में बरसों से पल रही यह नफरत खत्म होती, यही इस मूवी की कहानी है. समाज को बेटियों के प्रति सकारात्मक संदेश देने के उद्देश्य से इस फिल्म का प्रदर्शन किया जा रहा है.

*आज के सम्मानित अतिथिगण होंगे -*
बन्ना गुप्ता, माननीय मंत्री, झारखंड सरकार, सुधा गुप्ता, समाजसेवी, बसंत मित्तल, प्रदेश अध्यक्ष, झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन, संजीव चौधरी टुन्नू, अध्यक्ष, टाटा वर्कर्स यूनियन, शंकर सिंघल, समाजसेवी, ओम प्रकाश रिंगसिया, प्रांतीय उपाध्यक्ष, झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन, दीपक पारीक, प्रांतीय सयुंक्त महामंत्री, झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन एवं अरुण बाकरेवाल, प्रमंडलीय अध्यक्ष, झारखंड प्रांतीय अग्रवाल सम्मेलन