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मुंडा आदिवासी नहीं लेंगे पंचायत चुनाव में भाग बंदगांव बाजार टांड़ में घोषणा

मुंडा आदिवासी नहीं लेंगे पंचायत चुनाव में भाग बंदगांव बाजार टांड़ में घोषणा

झारखंड में पंचायत चुनाव नजदीक आते ही दबाव समूह सक्रिय हो गए हैं और अपने मांगों को पूरा कराने के लिए बहिष्कार का घोषणा करने लगे हैं. इस कड़ी में खूंटी चाईबासा सीमा के पास बंदगांव में सोमवार को मुंडा मानकी और ग्राम प्रधानों ने बैठक की.
खूंटीः मुंडा मानकी शासन व्यवस्था को लागू करने की मांग को लेकर बंदगांव बाजार टांड़ में आदिवासी नेताओं और ग्रामीणों का जुटान हुआ यहां आदिवासी नेताओं ने कहा कि जब तक मुंडा शासन व्यवस्था को सरकार लागू नहीं करती तब तक पंचायत चुनाव नहीं होने देंगे और न ही कोई आदिवासी पंचायत चुनाव में भाग लेगा
खूंटी चाईबासा सीमा के पास बंदगांव में सोमवार को मुंडा मानकी और ग्राम प्रधानों ने संयुक्त बैठक की. बैठक में निर्णय लिया गया कि वर्तमान सरकार झारखंड के अनुसूचित इलाकों में पांचवी अनुसूची के प्रावधानों का कड़ाई से पालन नहीं करा रही है. ऐसे में पंचायत चुनाव का विरोध किया जाएगा.
बैठक में उपस्थित मानकी मुण्डा समेत कई वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान सरकार भी पूर्व की सरकारों की तरह पांचवी अनुसूची को अनुसूचित इलाकों में लागू नहीं करवा पा रही है.
बैठक में वक्ताओं ने कहा कि झारखंड राज्य बने हुए 21 साल हो गए, इसके बावजूद गांवों का विकास नहीं हो पाया है. विकास की योजनाएं गांवों में अधूरी हैं. वक्ताओं ने कहा कि अनुसूचित इलाकों में विकास के लिए दी जाने वाली राशि सीधे ग्राम सभा को मिले ताकि ग्रामसभा अपनी इच्छा अनुसार गांव में विकास कार्य चला सके.
ऐसे में लोगों में भटकाव आया था इसलिए इन सभी इलाकों में पांचवी अनुसूची को सख्ती से लागू करने के लिए सरकार से कहा जाएगा. अगर इस पर सरकार कोई पहल नहीं करती है तो आगे मुंडा समाज पंचायत चुनाव का बहिष्कार करेगा. बता दें कि तीन वर्ष पूर्व भी आदिवासी नेताओं का जुटान इसी तरह हुआ था. बंदगांव बाजार टांड की बैठक में भाग लेने चाईबासा जिले के बंदगांव प्रखंड क्षेत्र से जलसार, सिंदूरबेड़ा, उषाडीह, साओनेया, बंदगांव, मेरोंगगुटु पंचायत, जबकि खूंटी जिले के अड़की प्रखंड से कोचांग बीरबांकी, कुरुंगा और मुरहू पंचायत क्षेत्र के सैकड़ों ग्रामीण जुटे.
पंचायत चुनाव के बहिष्कार की धमकी देकर अपनी मांग पूरा कराने की कोशिश करने वाले और भी हैं. बीते दिन आदिवासी समाज की 22 पड़हा समिति ने राजभवन के सामने प्रदर्शन कर पंचायत चुनाव का विरोध किया था और पांचवी अनुसूची का कड़ाई से पालन करने की मांग की थी.
भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची देश के दस राज्यों के आदिवासी इलाकों में लागू है. संविधान की यह अनुसूची स्थानीय समुदाय का लघु वन उत्पाद, जल और खनिज पर अधिकार सुनिश्चित करती है. 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में आदेश दिया था कि बगैर ग्रामसभा की इजाजत लिए अनुसूचित क्षेत्रों में किए जा रहे सभी प्रकार के खनन और औद्योगिक गतिविधियां गैरकानूनी हैं
इस आदेश में न्यायालय ने ग्रामसभा की भूमिका को भी परिभाषित किया और खनन और अन्य कंपनियों को आदेश दिया कि वे अपने राजस्व को कोऑपरेटिव के माध्यम से स्थानीय लोगों के साथ साझा करें. इसी फैसले के बाद इस अनुसूची के प्रावधान प्रकाश में आए थे.