मुझको, मेरा पता नहीं है
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वो कहते मैं तुझको जानूँ,
उनकी बात भला क्यूँ मानूँ,
अपने अपने तर्क सभी के, किसी की कोई खता नहीं है।
लेकिन अबतक सचमुच यारो, मुझको, मेरा पता नहीं है।।
जान सका ना कहाँ से आया, क्या क्या मेरा काम यहाँ?
या फिर खाना और कमाना, जिन्दा जबतक नाम यहाँ।
कुछ ना कुछ ये मर्ज सभी को जिसकी कोई दवा नहीं है।
लेकिन अबतक सचमुच ———-
बड़ी बड़ी नित बातें करते, खुद को ज्ञानी मान लिया।
कौन यहाँ पर उनकी सुनता जिसने जीवन जान लिया।
सब जीते अपनी मर्जी से जबकि वैसी हवा नहीं है।
लेकिन अबतक सचमुच ———–
हैं अपने हालात सभी के, अलग सभी के सपने हैं।
बिनु बोले सब कुछ कह देता, सुमन काम जो अपने हैं।
नहीं जरूरत साबित करना कुछ दुनिया से छिपा नहीं है।
लेकिन अबतक सचमुच ———-
श्यामल सुमन
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