झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

महफिल में मरहम बाँटे है

महफिल में मरहम बाँटे है
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नहीं किसीका गम बाँटे है
सब अपना परचम बाँटे है

हाल अभी बेहाल खबर में
प्यासे को शबनम बाँटे है

घायल करके फिर घायल को
महफिल में मरहम बाँटे है

लोक – लुभावन वादे ऐसे
ज्यों कुदरत मौसम बाँटे है

आमजनों का छीन उजाला
फिर घर घर में तम बाँटे है

हम गरीब जीने को हरदिन
आपस में दमखम बाँटे है

बाँट चेतना, प्यार सुमन तू
जितना बाँटो, कम बाँटे है

श्यामल सुमन