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मानसिक दिव्यांगों के जिनके दीये विदेशों तक भारतीय घरों में बिखेरते हैं दीवाली की रोशनी

मानसिक दिव्यांगों के जिनके दीये विदेशों तक भारतीय घरों में बिखेरते हैं दीवाली की रोशनी

जमशेदपुर-:आमतौर पर मानसिक दिव्यांग लोगों को समाज में और परिवार में वह सम्मान नहीं मिलता, जिसके वे सही हकदार होते है. समाज में इन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है. लेकिन यह बहुत कम लोगों को ही पता होता है कि अगर इन्हें सही रूप से देखभाल व ट्रेनिंग दी जाए, तो यह भी काम करके आत्मनिर्भर बन सकते हैं. हम बात कर रहे है जमशेदपुर के सोनारी इन्क्लेव वेस्ट रोड नंबर चार में स्थित संस्था जीविका में स्किल सीख रहे मानसिक दिव्यांगों की, जो दीवाली व अन्य त्योहारों पर लोगों के घरों में उजाला लाने का काम कर रहे हैं. इनके द्वारा  बनाये जानेवाले विभिन्न वेराइटी के दीयों की डिमांड बहुत है. यहां तक कि इनके बनाये दीवाली के दीये विदेशों तक जाते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, नार्वे समेत कई देशों में रहने वाले भारतीय इनसे बनाये दीयों समेत पेपर व कपड़ों के बैग तथा शगुन के लिफाफे मंगाते हैं. देश के भी कई शहरों में इन चीजों की अच्छी मांग है. जीविका से जुड़े सभी मानसिक दिव्यांग जमशेदपुर शहर से ही संबंध रखते हैं. संस्था द्वारा पिछले 12 वर्षों से इन्हें आत्मनिर्भर बनाने का काम किया जा रहा है.
जीविका संस्था की शुरुआत 2008 में हुई थी. संस्था में कुल 22 बौद्धिक दिव्यांगों का इनरोलमेंट है.हालांकि कोरोना के चलते अभी 15 ही आ रहे हैं. सुबह आठ से बारह बजे तक यह लोग डिजाइनर दीया, पेपर बैग और मास्क बनाने का काम करते हैं. साथ ही उन्हें खूबसूरत रंगों से रंगते भी हैं. इन दिव्यांग लोगों की कारीगरी  बेजोड़ है. संस्था द्वारा इन्हें प्रत्येक महीने इनकी मेहनत के एवज में एक हजार से दो हजार रुपये तक दिये जाते हैं. इनके द्वारा बनाये डिजाइनर दीयों की कीमत 10 रुपये से लेकर 120 रुपये तक है. वहीं पेपर बैग की कीमत 5 रुपये से 200 रुपये तक है. मास्क की कीमत 40 रुपये तक हैं. इस साल संस्था के माध्यम से नौ हजार दीवाली के दिये बनाये गये है, जिसमें 80 प्रतिशत बिक्री हो चुकी है
संस्था के संस्थापक अवतार सिंह ने बताया कि संस्था का मुख्य उद्देश्य खेलकूद के माध्यम से मंदबुद्धि  बच्चों की शारीरिक क्षमता बढ़ाना और उनका  स्किल डेवलपमेंट कर मुख्य धारा में लाना है. इसमें दो महीने से एक साल तक का समय लगता है. अवतार सिंह बताते हैं कि जीविका से जुड़े दस बच्चे राष्ट्रीय-अंततराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पदक हासिल कर चुके हैं. और उनकी नौकरी भी लग चुकी है.श्री सिंह  ने कहा कि संस्था में इन मंदबुद्धि बच्चों को खुशनुमा माहौल प्रदान किया जाता है. उसके बाद धीरे-धीरे उन्हें पेंटिंग, स्टिचिंग, पेपर बैग, कपड़े के बैग, शगुन लिफाफा आदि बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है. उन्होंने कहा कि कई बौद्धिक दिव्यांग बच्चे यहां से स्किल सीखकर बाहर काम भी कर रहे हैं. इनके बनाये दिवाली के दीयों की विदेशों में भी डिमांड रहती है. हर साल लोग अमेरिका, कनाडा में बसे भारतीय  इन्हें भावनात्मक लगाव से मंगाते हैं. इस साल 80 प्रतिशत दीयों, पेपर बैग तथा शगुन लिफाफों का बिक्री हो चुकी है उन्होंने बताया कि इन्हें प्रतिदिन खुश रखने के लिए विभिन्न प्रकार की एक्टिविटी करायी जाती है.उन्होंने बताया कि संस्था में  दिव्यांग साईं कृष्णा 2019 में स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम में 200 मीटर दौड़ में ब्रांज मेडल जीत चुका है. उन्होंने बताया कि दिव्यांगों द्वारा शादी-विवाह के लिए शगुन लिफाफा बनाया जाता है. उन्होंने बताया कि दिये, पेपर बैग, मास्क आदि का रॉ मैटेरियल बाहर से मंगाया जाता है. संस्था के स्टाफ उन्हें यह सब बनाने की ट्रेनिंग देते है. उन्होंने बताया कि बच्चों को शिष्टाचार, साफ-सफाई समेत कई तरह के अच्छे आचरण सिखाये जाते हैं.
संस्था की सचिव सुखदीप कौर ने बताया कि दिव्यांग बच्चों को उनकी क्षमता के अनुसार काम दिया जाता है. उनके काम में यहां के स्टाफ भी सहयोग करते हैं. उन्होंने बताया कि यहां के दीये की डिमांड स्कूलों में ज्यादा होती थी. लेकिन कोरोना के चलते पिछले दो सालों से डिमांड कम है. उन्होंने बताया कि संस्था द्वारा आसनबनी के कुम्हारों से दीयों के लिए कच्चा माल मंगाया जाता है. उन्होंने बताया कि पहले कोलकाता से भी रॉ मैटेरियल मंगाया जाता था. उन्होंने बताया कि क्लब और स्मॉल इंडस्ट्रीज वाले दीयों के साथ कपड़ों और पेपर के बने बैग की खरीददारी करते हैं. उन्होंने बताया संस्था सुबह आठ से दोपहर 12 बजे तक खुली रहती है.
संस्था से जुड़े दिव्यांग पंकज मंडल ने बताया कि उनका घर सोनारी में है. उन्हें यहां दीया बनाना, लिखना तथा पेंटिंग करना बहुत अच्छा लगता है. उन्हें यहां बहुत खुशी मिलती है. वहीं दिव्यांग उमेश ने बताया कि पेंटिंग करना, ठोंगा बनाना और गिफ्ट पैक करना उन्हें बहुत अच्छा लगता है.