लेखक संदीप मुरारका लिख रहे हैं आदिवासियों की नई कहानियां
जमशेदपुर- जब भी हम आदिवासियों की बात करते हैं तो बताया जाता है कि उनकी दुनिया हाशिए पर है वे भूखे नंगे वंचित हैं वे शहर कस्बे की बजाए जंगलों, नदी तालाब के पास या पर्वतों और कंदराओं में रहते हैं. वे दुनिया के तमाम आधुनिक सुख सुविधाओं से महरूम हैं और समाज की मुख्यधारा से अलग विचरते हैं. किंतु वास्तविकता में ऐसा कुछ नहीं है. जनजातीय संस्कृति सदैव से समृद्व रही है एवं यह समुदाय सामाजिक गतिशील रहा है. शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जिसमें जनजातियों की महत्वपूर्ण भूमिका ना हो. विशेषकर संस्कृति, नृत्य, गीत, प्राकृतिक अनुसंधान, खेल एवं अन्य साहसिक कार्यों में इनका योगदान अतुलनीय है. जमशेदपुर के लेखक संदीप मुरारका ने वैसे आदिवासी व्यक्तित्वों पर लेखन कार्य किया है जो देश के सर्वोच्च सम्मान प्राप्त कर चुके हैं अथवा देश के सर्वोच्च पदों को सुशोभित कर रहे हैं संदीप मुरारका हमें बताते हैं कि आदिवासी हमारे लिये प्रेरणास्त्रोत हैं, क्योंकि परस्थितियों के विपरीत होने के बावजूद अपने कठिन संघर्ष के द्वारा वे सफलताओं का परचम लहरा रहे हैं. शॉर्ट बॉयोग्राफी एवं फीचर के जरीये संदीप मुरारका लगातार प्रेरक आदिवासी चरित्रों से पाठकों को रुबरु करा रहे हैं. उन्होंने तेईस राज्यों की लगभग बावन जनजातियों के विख्यात आदिवासियों पर कॉफी टेबल बुक का लेखन किया है. देश के एक सौ पांच विशिष्ट जनजातीय व्यक्तित्व शीर्षक के नाम से प्रकाशित कॉफी टेबल बुक में वैसे आदिवासियों का परिचय समाहित है, जो भले स्वयं कभी स्कूल ना गए हों, परंतु आज उनके अनुकरणीय जीवन और कार्यों पर पीएचडी की जा रही है. संदीप मुरारका पूर्व में भी आदिवासियों पर तीन पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं. उनकी पुस्तकें शिखर को छूते ट्राइबल्स भाग एक से तीन शोधार्थियों एवं यूपीएससी के छात्र छात्राओं के मध्य काफी लोकप्रिय हो चुकी हैं. संदीप मुरारका पाठकों को बताते हैं कि सफलता के लिये संसाधनों की नहीं बल्कि संकल्प की आवश्यकता है.
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