कुड़मी, कुर्मी और महतो को अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदिवासी संगठन ने किया विरोध, कहा- पंरपरा है अलग
कुड़मी, कुर्मी और महतो को अनुसूचित जाति में शामिल करने के प्रस्ताव का आदिवासी समाज ने विरोध किया है. आदिवासी संगठन का कहना है कि कुड़मी, कुर्मी और महतो जाति की परंपरा, वेशभूषा और धार्मिक अनुष्ठान से बिल्कुल अलग है.
रांचीः कुड़मी, कुर्मी और महतो को अनुसूचित जाति में शामिल करने के प्रस्ताव लाए जाने के विरोध में आदिवासी समाज के लोग एकजुट होते नजर आ रहे हैं और इसका विरोध कर रहे हैं. इसी कड़ी में समस्त आदिवासी संगठन के तत्वाधान में रांची के प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता कर कुड़मी, कुर्मी और महतो को अनुसूचित जाति में शामिल करने का विरोध किया गया.
केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा कि कुड़मी, कुर्मी और महतो जाति अपनी परंपरा वेशभूषा और धार्मिक अनुष्ठान से बिल्कुल अलग है, आदिवासियों में दहेज प्रथा नहीं है, लेकिन इन तीनों जाति में दहेज परंपरा है, ऐसे में उनकी तमाम चीजें आदिवासियों से भिन्न है. इस लिहाज से अनुसूचित जाति में शामिल करना कहीं से भी सही नहीं है. इसको लेकर आदिवासी संगठनों की ओर से विरोध दर्ज किया जाएगा. वहीं आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के संयोजक प्रेम चंद्र मुर्मू ने कहा कि अगर राज्य सरकार कुड़मी कुर्मी और महतो को अनुसूचित जाति में शामिल करने की अनुशंसा केंद्र को भेजती है तो यह आदिवासी समाज की भावनाओं को आहत करने की बात होगी, जिसका आदिवासी समाज पूरे राज्य भर में विरोध करेगा.
आदिवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना
झारखंड की कुड़मी, कुर्मी और महतो जाति में आदि विशेषताओं का अभाव है. वर्तमान समय में सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टिकोण से यह लोग मजबूत हैं, हर चौकी आदिवासी समाज के लोग आज भी आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं और उनकी वेशभूषा रहन-सहन पूजा पाठ की परंपरा अलग है. ऐसे में कुड़मी, कुर्मी और महतो को अनुसूचित जाति में शामिल करना आदिवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसा है.
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