झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

कम से कम खाता जनधन हो

कम से कम खाता जनधन हो
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खुला खुला सा घर आँगन हो
और पंछी सा नित जीवन हो

मुक्त गगन उड़ने की खातिर
नहीं कहीं कोई बन्धन हो

घटे वही जीवन में नित नित
जो चाहत में अपने मन हो

फूटी कौड़ी पास नहीं पर
कम से कम खाता जनधन हो

आती जाती दौलत पर भी
नेक सोच हरदम चिन्तन हो

हर विरोध से मिल टकराना
भूल आपसी जो अनबन हो

सुमन विचारों के बल उड़ना
आदम तुम हो या गोधन हो

श्यामल सुमन

अगन की जरूरत
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मिलना उन्हीं से जो, मन की जरूरत
वो झुकना धरा पे, गगन की जरूरत

जरा देख रिश्तों में, ठंडक बढ़ी क्यों
मुहब्बत में होती है, अगन की जरूरत

कभी हार मिलती, कभी हार मिलता
अगर जीतना है तो, सपन की जरूरत

अक्सर निकलते सब, पहन के मुखौटे
बुरा कौन अच्छा ये, चयन की जरूरत

बता यार भूखे क्या, भजन कर सकेंगे
मगर रोटी खातिर है, धन की जरूरत

अपने गमों को क्या, गिनना, गिनाना
चाहत खुशी की तो, जतन की जरूरत

सुमन बात कहना, मुश्किल है सारी
होती नयन को भी, नयन की जरूरत

श्यामल सुमन

पर शासक रक्षक से तक्षक
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करो सियासत पर तल्खी का, है कोई स्थान नहीं।
लोकतंत्र में जाग रहे सब, सोया हिन्दुस्तान नहीं।।

चुना आपको पाँच बरस तक, आप अभी के आका हो।
तब तो ये कर्तव्य आपका, किसी के घर ना फाका हो।
कहीं कमी तो सुन लोगों की, आप करो अभिमान नहीं।।
लोकतंत्र में जाग रहे —–

सभी दलों ने शासन पाया, प्रायः सबका मान हुआ।
दिन बहुरे केवल शासक के, लोगों का नुकसान हुआ।
कभी नहीं ये सोचे शासक, और कोई विद्वान नहीं।।
लोकतंत्र में जाग रहे —–

जनमत से सहमत होकर ही, लोकतंत्र चल पाता है।
पर शासक रक्षक से तक्षक, बनकर के डंस जाता है।
जो पलाश का सुमन बनेगा, होगा शेष निशान नहीं।।
लोकतंत्र में जाग रहे —–

श्यामल सुमन