झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

जमशेदपुर पूर्वी विधायक सरयू राय ने मुख्यमंत्री झारखण्ड सरकार को पत्र लिखकर जून-जुलाई माह में राज्य सरकार के अधिकारियों के स्थानांतरण-पदस्थापन में कार्यपालिका नियमावली के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुपालन के संबंध में उल्लेख किया है

जमशेदपुर- जमशेदपुर पूर्वी विधायक सरयू राय ने मुख्यमंत्री झारखण्ड सरकार को पत्र लिखकर जून-जुलाई माह में राज्य सरकार के अधिकारियों के स्थानांतरण-पदस्थापन में कार्यपालिका नियमावली के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुपालन के संबंध में उल्लेख किया है
इस संबंध में विधानसभा के गत बजट सत्र में श्री राय ने सरकार से एक सवाल पूछा था। सदन पटल पर प्रश्नोत्तर एवं वाद-विवाद की छायाप्रति संलग्न है। जून-जुलाई माह में सरकार के विभिन्न विभागों में ट्रांसफ़र-पोस्टिंग का मौसम एक बार फिर आ गया है। आप अवगत हैं कि कार्यपालिका नियमावली के प्रासंगिक प्रावधान के अनुसार पहले सरकार में पदाधिकारियों का स्थानांतरण-पदस्थापन साल में दो बार दिसम्बर माह और जून माह में होता था। बाद में नियमावली के इस प्रावधान को संशोधित कर जून और जुलाई के दो महीनों में सरकारी कर्मियों पदाधिकारियों का स्थानांतरण-पदस्थापन का प्रावधान किया गया है।
एक भ्रांति है कि जून-जुलाई में किसी भी सरकारी अधिकारी का स्थानांतरण-पदस्थापन करने की शक्ति संबंधित विभाग के मंत्री में निहित हो जाती है। इन दो महीनों में किए गए स्थानांतरण-पदस्थापन की संचिका मुख्यमंत्री के पास नहीं भेजनी पड़ती है। परंतु वास्तविकता इससे भिन्न है। सुलभ संदर्भ हेतु कार्यपालिका नियमावली के प्रासंगिक प्रावधान उद्धृत कर रहा हूँ। उपर्युक्त प्रावधानों की मीमांसा निम्नवत है:-
1.स्थानांतरण, पदस्थापन के लिए विभाग में एक स्थापना समिति होगी. प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से इस बारे में एक मार्गदर्शक सिद्धांत बनाया जाएगा

2.ऐसे कर्मी, जिनका वेतनमान ₹2900 से कम है, का स्थानांतरण, पदस्थापन स्थापना समिति के अनुमोदन से विभागाध्यक्ष करेंगे।

3 2900 और ₹4500 के बीच वेतनमान वाले अधिकारियों का स्थानांतरण, पदस्थापन की सूची स्थापना समिति द्वारा तैयार की जाएगी, जिसे सचिव के माध्यम से मंत्री के अनुमोदन के लिए भेजा जाएगा।

4.परंतु ऐसे अधिकारी, जिनका वेतनमान ₹4500 से अधिक और ₹5000 से कम है, के स्थानांतरण/पदस्थापन/प्रतिनियुक्ति के बारे में स्थापना समिति प्रारूप प्रस्ताव तैयार करेगी जो निर्णय के लिए एक समिति के पास जाएगा, जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री रहेंगे। राज्य के मुख्य सचिव इस समिति के सदस्य सचिव होंगे। यह समिति इस श्रेणी के पदाधिकारियों का स्थानांतरण, पदस्थापन करेगी।

5.अपने प्रासंगिक प्रश्न में मैंने यही विषय उठाया था कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री उपर्युक्त कंडिका-4 की श्रेणी के विभागीय अधिकारियों के स्थानांतरण, पदस्थापन में कार्यपालिका नियमावली के प्रासंगिक प्रावधानों का घोर उल्लंघन कर रहे हैं। न केवल जून-जुलाई माह में बल्कि पूरे वर्ष में वे आदतन इस श्रेणी के अधिकारियों का स्थानांतरण, पदस्थापन और थोक भाव से इनकी यत्र-तत्र प्रतिनियुक्ति करते रहते हैं। इसके कारण विभागीय अधिकारियों में भय व्याप्त है, उनका दोहन हो रहा है। वे भयभीत हैं कि एक बार फिर स्थानांतरण-पदस्थापन का मौसम आ गया है। फिर उनका कैरियर अस्थिर करने की कोशिशों के संवाद उन तक प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से पहुँचने लगे हैं।
विधानसभा के एकादश (बजट) सत्र में मेरे प्रासंगिक प्रश्न के उत्तर मंे स्वास्थ्य मंत्री निरुत्तर हो गये थे, उनकी गलती सामने आ गई थी, वे थेथरोलॉजी का सहारा लेने लगे थे। माननीय अध्यक्ष, विधानसभा ने हस्तक्षेप किया और नियमन दिया की संबंधित संचिकाएँ जाँच के लिए माननीय मुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुत की जाएँगी। जहाँ तक मेरी जानकारी है, ये संचिकाएँ अब तक मुख्यमंत्री तक नहीं पहुँची हैं। प्रतीक्षा है विधानसभा के अगले (मानसून) सत्र में प्रस्तुत किये जानेवाले कृत कार्य प्रतिवेदन (एटीआर) में सरकार इस बारे में क्या कहती है ?
इस बीच स्वास्थ्य मंत्री ने एक महिला चिकित्सक के स्थानांतरण-पदस्थापन में एक बार फिर कार्यपालिका नियमावली के प्रावधानों की अवहेलना की है, विभागीय स्थापना समिति की अनुशंसा के मुताबिक़ संचिका मुख्यमंत्री के पास भेजने के बदले उन्होंने स्थापना समिति की अनुशंसा को अपने स्तर पर ही उलट दिया है। कई माह तक संचिका अपने पास रखने के बाद जुलाई के आरंभ में उन्होंने संचिका मुख्यमंत्री के पास भेजने की बजाय विभाग में वापस कर देने की धृष्टता किया है। विधानसभा में सवाल उठने और माननीय सभाध्यक्ष के स्पष्ट नियमन के बावजूद स्वास्थ्य मंत्री ने संचिका मुख्यमंत्री के पास नहीं भेजा बल्कि मुख्यमंत्री का अधिकार स्वयं अपने हाथ में ले लिया है।
स्वास्थ्य मंत्री का यह आचरण सरकार संचालन में गीता-बाइबिल-क़ुरान कही जाने वाली कार्यपालिका नियमावली की न केवल धज्जियाँ उड़ाया है, भ्रष्ट आचरण का परिचय दिया है, मंत्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व का उल्लंघन किया है बल्कि माननीय विधानसभा अध्यक्ष के नियमन की अवहेलना कर सभा के विशेषाधिकार का भी हनन किया है। सवाल उठता है कि क्या राज्य का कोई मंत्री सरकार के विधि-विधान से ऊपर है ?
श्री राय ने इस बारे में आवश्यक कारवाई करने की कृपा करने की मांग की है ताकि राज्य का शासन संविधान और क़ानून के मुताबिक़ चल सके