एक तरफ मौजा ही मौजा
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एक तरफ मौजा ही मौजा, एक तरफ है जेल प्रिये!
बात नहीं बिल्कुल अचरज की, ये सरकारी खेल प्रिये।
लुटी गयी है जनता सब दिन, दशकों से हमने देखा।
रोटी मुश्किल आमलोग को, नेता घर तक रेल प्रिये!
पत्रकार, अधिकारीगण में, फिकर शेष थी जनता की।
सब गुलाम-सा अभी दिखे हैं, सोचो, कहाँ नकेल प्रिये?
लड़ते साथ चुनाव मगर है, दोनों को डर दोनों से!
सत्ता खातिर ताक में पहले, देगा कौन धकेल प्रिये?
पोल खोलते लूट-तंत्र की, जो समाज में लोग सजग।
झट सिंहासन पर जाने को, मची है रेलमपेल प्रिये!!
संवैधानिक तंत्र आजकल, दिखे त्रस्त मनमानी से!
चारण बन दे आज मिडिया, खबरें ठेलमठेल प्रिये।
नित्य जगाना, लोक चेतना, तब समाज आगे बढ़ता!
जीती है मानवता हरदम, हुआ सुमन कब फेल प्रिये?
श्यामल सुमन
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