दिन का सूरज कैद में
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रात अँधियारे में अपनी, दिन का सूरज कैद में
जो रचा दुनिया को वो भी बन के मूरत कैद में
एक ही दुनिया में जी कर, ढंग सबके हैं अलग
फिक्र जनता की हमें पर उसकी नीयत कैद में
टूटते सपनों को यारो, जोड़ना तू सीख ले
एकता किस्मत हमारी और किस्मत कैद में
जंग सरहद पर अगर तो खेत में भी जंग है
इक शहादत याद करते इक शहादत कैद में
देख लो संगीन के साये में क्यों आवाम है
कैमरे के संग कलम की आज फितरत कैद में
खूबसूरत झील, नदियां, सरजमीं और वादियां
कहते हम जन्नत जिसे है आज जन्नत कैद में
दूर तक देखो तो लगता आसमाँ झुकता सुमन
खुद झुका ले आसमाँ क्या तेरी ताकत कैद में
श्यामल सुमन
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