झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

धरती का श्रृंगार

धरती का श्रृंगार
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झूमर, कजरी लिख दिया, कुछ सावन के गीत।
गाऊँ जिसके साथ मैं, मिला नहीं वो मीत।।

प्रीतम बादल से मिलन, चाह धरा की खास।
तब रोता बादल जहाँ, जगी धरा की प्यास।।

बीज अंकुरित हो रहे, देख धरा का प्यार।
हरियाली ने कर दिया, धरती का श्रृंगार।।

प्रेम सृजन का मूल है, सृजन धरा का काज।
वर्षा है रानी अगर, है वसंत ऋतुराज।।

सावन, फागुन में सुमन, पिया मिलन की आस।
सावन में बारिश हुई, फागुन है मधुमास।।

श्यामल सुमन