सेवक है एक प्रधान, हमारे भारत में।
छीनी सबकी मुस्कान, हमारे भारत में।
जो भरते सबकी थाली, अब थाली उनके खाली।
पूर्वज के दोष गिनाकर, बजवाते खुद पे ताली।
हैं लोग-बाग हलकान, हमारे भारत में।
छीनी सबकी —–
झूठे वादों से नाता, सपने भी खूब दिखाता।
जब प्रश्न पूछती जनता, कोई मुद्दा और उठाता।
सड़कों पर खड़े किसान, हमारे भारत में।
छीनी सबकी ——
अब चेत समय पर प्यारे, बस छोड़ो नकली नारे।
तू बातें सुनो सुमन की, गर्दिश में तेरे सितारे।
मत जन का कर अपमान, हमारे भारत में।
छीनी सबकी —–
श्यामल सुमन
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