बिहार विधानसभा चुनाव पर ईसी की गाइडलाइन के बाद झारखंड की दो सीटों के लिए उपचुनाव पर चर्चाएं तेज होती नजर आ रही है. इसके तहत बेरमो और दुमका विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव संपन्न कराया जाएगा.
रांची: बिहार में संभावित विधानसभा चुनावों को लेकर चुनाव आयोग के गाइडलाइन के बाद अब झारखंड की खाली पड़ी दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है. प्रदेश के बेरमो और दुमका विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव संपन्न कराया जाएगा. यह उपचुनाव झामुमो और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनने जा रहा है. वहीं प्रदेश के एनडीए और महागठबंधन की एकजुटता का टेस्ट भी इस उपचुनाव में होगा.
दरअसल, बेरमो सीट पर सीटिंग कांग्रेस विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह की मौत के बाद उप चुनाव होगा. वहीं दुमका विधानसभा सीट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने छोड़ी है. सोरेन बरहेट और दुमका से विधायक चुने गए थे और उन्होंने बरहेट सीट पर ही विधायक बने रहना पसंद किया है. दुमका सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, जबकि बेरमो सामान्य सीट है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव व प्रवक्ता विनोद पांडे ने कहा कि सांगठनिक स्तर पर उपचुनाव की तैयारी हो रही है. बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर जो गाइडलाइन जारी किए गए हैं उसको फॉलो करते हुए झारखंड में भी होने वाले उपचुनाव में भी उनका अनुसरण किया जाएगा.
2019 में विधानसभा चुनाव में जेएमएम के खाते में गई दुमका सीट पर अब हेमंत सोरेन के अल्टरनेटिव के रूप में उनके भाई बसंत सोरेन पर निगाहें टिकी हुई हैं. झामुमो के अंदरूनी सूत्रों की माने तो इस बाबत तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं. एक तरफ जहां संगठन की सक्रियता बढ़ा दी गई है, वहीं दूसरी तरफ पार्टी के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता बसंत सोरेन के संपर्क में हैं. राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो दुमका विधानसभा झामुमो के लिए महत्वपूर्ण है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि दुमका झारखंड मुक्ति मोर्चा का ‘हर्टलैंड’ माना जाता है.
दरअसल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की उम्मीदवार लुईस मरांडी ने राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पटखनी दी थी. 2014 में भी सोरेन बरहेट और दुमका दोनों विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे. बरहेट से उन्हें जीत हासिल हुई थी, जबकि दुमका से मरांडी ने उन्हें हराया. वहीं दूसरी तरफ 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में सोरेन ने मरांडी से इसका बदला लिया और उन्हें पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में हराया. लुईस मरांडी 2014 में चुनाव जीतने के बाद राज्य में महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री बनी थी. राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो दोनों विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में विपक्षी खेमे एनडीए के लिए खोने के लिए कुछ नहीं है, चूंकि दोनों सीट महागठबंधन के खेमे में रही, ऐसे में महागठबंधन के लिए दोनों सीटों पर होने वाले उपचुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बनेगा. इसके बावजूद बीजेपी सूत्रों की माने तो बेरमो और दुमका में पार्टी मजबूत प्रत्याशी उतारने के मूड में है. ऐसी परिस्थिति में दुमका में पूर्व मंत्री लुईस मरांडी पर पार्टी दांव खेलने के मूड में है. साथ ही एकीकृत बिहार में मंत्री रहे महादेव मरांडी के पोते गुंजन मरांडी के नाम की चर्चा भी चल रही है. गुंजन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी में शर्मिला सोरेन का नाम भी चर्चा में है. जबकि बेरमो के लिए इस बार पूर्व बीजेपी विधायक सत्यानंद झा बाटुल के अलावे, गिरिडीह से सांसद रहे रविंद्र पांडे के बेटे विक्रम पांडे की उम्मीदवारी को लेकर भी जोड़-तोड़ जारी है. विक्रम पिछला चुनाव टुंडी विधानसभा से लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था.
[महागठबंधन खेमे की बात करें तो दुमका में झारखंड मुक्ति मोर्चा में युवा मोर्चा का नेतृत्व कर रहे और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन के नाम की चर्चा तेज है. जेएमएम के सूत्रों का यकीन करें तो बसंत सोरेन चुनाव तैयारी को लेकर सक्रिय भी नजर आ रहे हैं. वहीं बेरमो विधानसभा सीट पर कांग्रेस अपना उम्मीदवार उतारेगी. झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी का साफ मानना है कि यह कांग्रेस की सिटिंग सीट है. ऐसे में कांग्रेस के उम्मीदवार ही उपचुनाव लड़ेंगे. सूत्रों के अनुसार इस सीट पर पूर्व मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह के बड़े बेटे और झारखंड यूथ कांग्रेस के नेता रह चुके जय मंगल सिंह का नाम चर्चा में है.
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