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बालासोर रेल दुर्घटना मृतक की पहचान में हो रही परेशानी कंट्रोल रुम में आ रहे हैं लगातार फोन

बालासोर रेल दुर्घटना मृतक की पहचान में हो रही परेशानी कंट्रोल रुम में आ रहे हैं लगातार फोन

ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे के छह दिन बीत जाने के बाद भी कई शवों की पहचान नहीं हो पाई है. माना जा रहा है इनमें से दस शव ऐसे यात्रियों के हैं जो झारखंड के रहने वाले थे. अब इन शवों की डीएनए जांच के बाद पहचान साफ हो पाएगी.

रांची: ओडिशा के बालासोर में हुए दो जून को भीषण रेल दुर्घटना में मारे गए यात्रियों की पहचान अभी तक पूरी नहीं हो पायी है. कोरोमंडल एक्सप्रेस के मृत यात्रियों की पहचान के लिए झारखंड से भी एक टीम बालासोर गई हुई है. राजधानी रांची के प्रवासी सहायता केन्द्र में बने कंट्रोल रूम से मिली जानकारी के अनुसार अभी तक 10 ऐसे शव हैं जिनकी शिनाख्त नहीं हो पायी है. ऐसे शव के लिए अलग-अलग लोगों के द्वारा दावेदारी की जा रही है. हालत यह है कि ऐसे यात्रियों के शव की पहचान में बेहद ही मुश्किलें आ रही हैं.
जानकारी के मुताबिक बालासोर रेल दुर्घटना में झारखंड के कुल 89 यात्रियों के बारे में जानकारी कंट्रोल रूम को प्राप्त हुई है जिसमें सर्वाधिक दुमका के हैं. इन यात्रियों में 60 वापस आ चुके हैं जिनमें कई घायल होने के बाद इलाजरत हैं और कुछ के शव झारखंड के विभिन्न जिलों में शिनाख्त के बाद भेजा गया है.
बालासोर रेल दुर्घटना में मारे गए यात्रियों के वैसे शव जिसकी पहचान नहीं हो पाई है उसका डीएनए टेस्ट कराकर ही परिजनों को सौपा जायेगा. मिली जानकारी के मुताबिक केन्द्र सरकार के द्वारा इस घटना का सीबीआई से जांच कराने के फैसले के बाद यह कदम उठाया गया है. ऐसे में शव की पहचान होने में स्वभाविक रूप से देरी हो रही है.
इन सबके बीच रांची रेलमंडल से भी बालासोर में राहत सहायता के लिए करीब 50 कर्मचारियों की टीम भेजी गई है जिसमें कुछ लौट आए हैं और कुछ अभी भी बालासोर में हैं. सीनियर डीसीएम निशांत कुमार ने कहा कि घटना के बाद रेलवे की प्राथमिकता राहत बचाव के बाद परिजनों को जल्द से जल्द मुआवजा पहुंचाने का है. झारखंड और रांची मंडल क्षेत्र के यात्रियों के बारे में जैसे जैसे जानकारी मिल रही है वैसे -वैसे रेलवे द्वारा मुआवजे की राशि उनके घर तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है, जिससे उन्हें कोई परेशानी नहीं हो.
गौरतलब है कि इस भीषण रेल दुर्घटना में दुमका के एक ही परिवार के तीन लोग शिकार हो गए. सोनवा मरांडी के दो बेटे और एक दामाद भी दो जून को इसी कोरोमंडल एक्सप्रेस से सफर कर रहे थे. घर से प्रदेश में मजदूरी करने जा रहे ये मजदूर अब कभी नहीं लौट नहीं पाएंगे.